भारत अन्य देशों के साथ अपने रिश्ते कितनी मजबूती से बना रहा है इसका एक उदाहरण हाल ही में भारत और ईरान के बीच हुआ चाबहार पोर्ट समझौता है। 13 मई को ईरान में स्थित चाबहार के शाहिद बेहिश्ती बंदरगाह के संचालन के लिए 10 वर्ष के लिए यह समझौता तय हुआ है। लेकिन समझौते के कुछ ही दिनों बाद ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की एक हेलिकॉप्टर हादसे में मौत हो गई।
भारत के जहाज़रानी मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने ईरान पहुंचकर अपने समकक्ष के साथ इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। मीडिया एजेंसी एएनआई के एक ट्वीट के मुताबिक, केंद्रीय मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने कहा था कि पीएम मोदी के नेतृत्व में, 23 मई, 2016 को शुरू हुआ महत्वपूर्ण समझौता आज एक लॉन्ग टर्म कॉन्ट्रेक्ट में बदल रहा है। उन्होंने कहा कि हमने ईरान में शाहिद-बेहिश्ती पोर्ट टर्मिनल के परिचालन के लिए लॉन्ग टर्म कॉन्ट्रेक्ट कर लिया गया है।
#WATCH | Union Minister of Ports, Shipping and Waterways Sarbananda Sonowal says, ” Under the leadership of PM Modi, the momentous agreement that began on 23rd May, 2016, is culminating today into a long term contract, symbolising the enduring trust and depending partnership… https://t.co/uoV2yeUYVg pic.twitter.com/qDMSxxbwcC
— ANI (@ANI) May 13, 2024
ये पोस्ट मीडिया एजेंसी @ANI से लिया गया है।
भारत की तरफ से यह डील इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड और ईरान की तरफ से पोर्ट्स एंड मैरीटाइम ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ ईरान के बीच हुई है। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड कंपनी का निर्माण चाबहार स्थित बेहेस्ती बंदरगाह को विकसित करने के लिए ही किया गया था। इस समझौते के तहत इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड करीब 120 मिलियन डॉलर का निवेश करेगी। इस निवेश के अलावा 250 मिलियन डॉलर की वित्तीय मदद की जाएगी। इससे ये समझौता लगभग 370 मिलियन डॉलर का हो जाएगा।
ऐसे में जहां एक तरफ इस पोर्ट का पूरा संचालन अपने हाथ में लेना भारत के लिए किसी जीत से कम नहीं था वहीं दूसरी तरफ अमेरिका ने इस समझौते के बाद भारत पर भी प्रतिबंध लगाने की धमकी दे दी है। ऐसे में आइए जानते हैं कि भारत के लिए ये समझौता कितना महत्वपूर्ण क्यों है, अमेरिका ने भारत को क्यों प्रतिबंध की चेतावनी दी है और रईसी की मौत के बाद इस डील पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
क्यों चाबहार पोर्ट समझौता भारत के लिए है जरूरी?
ईरान का चाबहार बंदरगाह कई मायनों में भारत के लिए अहम है। इस समझौते से ऐसा पहली बार होगा जब भारत किसी विदेशी धरती पर किसी पोर्ट का प्रबंधन अपने हाथ में लेगा। हिंदुस्तान की एक रिपोर्ट के अनुसार, चाबहार का निकटतम पोर्ट गुजरात में कांडला है, जिसकी दूरी महज 500 समुद्री मील है। वहीं मुंबई से चाबहार की दूरी 786 समुद्री मील है। यह डील लागत कम करने के साथ ही अन्य देशों के साथ कनेक्टिविटी बढ़ाने में मदद मिलेगी।
द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार, चाबहार बंदरगाह भारत की कनेक्टिविटी योजनाओं के लिए जरूरी है। सबसे पहले, यह पाकिस्तान को दरकिनार करके अफगानिस्तान और मध्य एशिया के लिए एक वैकल्पिक मार्ग खोलता है, जिससे मध्य एशिया के साथ बेहतर व्यापार हो सकेगा। बता दें, चाबहार बंदरगार पाकिस्तान के ग्वादर से लगभग 200 किमी दूर है, जहां चीन अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के हिस्से के रूप में एक पोर्ट विकसित कर रहा है। लेकिन इस समझौते से भारत अपना खुद का रास्ता तय कर सकता है।
इसके अलावा चाबहार के अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (एनएसटीसी) से जुड़ने की उम्मीद है, जो भारत को ईरान, अजरबैजान और रूस के माध्यम से यूरोप के करीब लाएगा। इससे ये कहा जा सकता है कि भारत न केवल अपने आर्थिक हितों को सुरक्षित कर रहा है, बल्कि यूरेशियन टेपेस्ट्री में खुद को एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में भी स्थापित कर रहा है।
अमेरिका की भारत को चेतावनी और इसका प्रभाव
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, ईरान के तटीय शहर चाबहार में बंदरगाह के विकास के लिए भारत और ईरान के बीच साल 2003 में सहमति बनी थी। वहीं, एबीपी की पब्लिश एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2014 में विदेश मंत्री एस जयशंकर की तेहरान यात्रा के दौरान भी चाबहार पोर्ट का मुद्दा प्रमुखता से उठा था। इसके बाद जब साल 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ईरान की यात्रा पर गए तो उस समय चाबहार पोर्ट को विकसित किए जाने को लेकर समझौता तय हुआ था। फिर साल 2018 में जब ईरान के तत्कालीन राष्ट्रपति हसन रुहानी नई दिल्ली आए तो चाबहार बंदरगाह पर भारत की भूमिका पर बातचीत हुई थी।
लेकिन अब जैसे ही 10 साल के लिए भारत को चाबहार पोर्ट संचालन का मौका मिला तो अमेरिका ने चेतावनी दे दी कि अगर भारत ने इस डील को बरकरार रखा तो उसपर भी प्रतिबंध लगा दिए जाएंगे। बीबीसी की पब्लिश एक रिपोर्ट के मुताबिक ईरान के परमाणु कार्यक्रम, चरमपंथी संगठनों को मदद और मानवाधिकार उल्लंघन करने के आरोप में अमेरिका ने उस पर बड़े पैमाने पर प्रतिबंध लगाए हुए हैं। और इन प्रतिबंधों के दायरे में वे बिजनेस और देश भी शामिल हैं जो ईरान के साथ मिलकर काम करते हैं।
अमेरिका के लगाए गए प्रतिबंधों के चलते कई बड़ी अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने ईरान के साथ व्यापार करना पहले ही बंद कर दिया है। रिपोर्ट के मुताबिक, विदेशी मामलों के जानकार और ‘द इमेज इंडिया इंस्टीट्यूट’ के अध्यक्ष रॉबिंद्र सचदेव कहते हैं कि फिलहाल यह साफ नहीं है कि अमेरिका भारतीय कंपनी ‘इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड’ पर प्रतिबंध लगाए या नहीं, लेकिन इसकी संभावना बनी रहेगी। वे कहते हैं, ” ईरान के साथ व्यापार करने पर कई तरह के प्रतिबंध लग सकते हैं। अगर भारतीय कंपनी पर अमेरिकी प्रतिबंध लगे तो उसके कर्मचारियों को अमेरिकी वीज़ा नहीं मिलेगा और वह अमेरिका के साथ कोई व्यापार नहीं कर पाएगी।”
आगे सचदेव कहते हैं, “अगर कंपनी की संपत्तियां अमेरिका या उसके सहयोगी देश में हैं, तो उन्हें वह फ्रीज कर सकती है। ” उन्होंने बताया कि व्यापार में बैंकिंग सिस्टम का बड़ा काम होता है। इन प्रतिबंधों की कहर उन बैंकों पर उतरेगा जहां कंपनी के बैंक एकाउंट हैं।”। प्रतिबंध की स्थिति में अमेरिका उस बैंक को ‘स्विफ्ट नेटवर्क’ से ब्लॉक कर देता है। “सचदेव कहते हैं कि पोर्ट चलाने के लिए बड़ी-बड़ी क्रेन चाहिए होती है जो जर्मनी और हॉलैंड जैसे देशों से किराए पर मिलती है, लेकिन प्रतिबंधों के बाद इनका मिल पाना मुश्किल है”।
राष्ट्रपति रईसी के बाद समझौते पर क्या होगा असर?
ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी और विदेश मंत्री की 19 मई को हेलिकॉप्टर क्रैश में मौत हो गई। इस खबर के सामने आने के बाद जहां दुनियाभर के नेताओं ने घटना पर दुख जताया वहीं भारत ने एक दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया था। इससे यह बात तो सामने आई कि भारत और ईरान के बीच रिश्ते काफी अच्छे थे। लेकिन चाबहार डील के सूत्रधार रईसी की मौत क बाद से ही सवाल उठने लगे कि अब उनकी मृत्यु के बाद डील का क्या होगा। क्या नए राष्ट्रपति इस समझौते को वैसा ही रहने देंगे या फिर इसमें कुछ बदलाव आएगा।
एबीपी की रिपोर्ट के अनुसार, भारत और ईरान के संबंध काफी अच्छे रहे है। चाबहार पोर्ट जब तैयार हुआ तो सवाल उठा कि अब इसका संचालन कौन करेगा। लेकिन 13 मई को भारत को इसे संचालित करने का अधिकार मिल गया। हालांकि अब रईसी के जाने के बाद ईरान के साथ संबंध पहले की तरह ही रहने की संभावना है, क्योंकि देश में नीतियों पर कोई भी फैसला पहले की तरह सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली खामेनेई ही लेंगे। क्योंकि हेलिकॉप्टर हादसे में हुई रईसी की मौत के बाद ही खामेनेई ने कह दिया था कि ईरान के लोगों को चिंता करने की जरूरत नहीं है। सरकार बिना किसी व्यवधान के काम करेगी।
वहीं, न्यूज़ 18 की रिपोर्ट के मुताबिक, ईरान में सुप्रीम लीडर यानी अयातुल्लाह अली खामेनेई की मर्जी के बिना कुछ भी संभव नहीं है और चुनाव के बाद ईरान का अगला राष्ट्रपति जो भी चुना जाएगा वह भी उनका वफादार ही होगा। ऐसे में भारत अभी से ही अपने इन कदमों से ईराना को यह बताने की कोशिश कर रहा है कि भारत उसके साथ खड़ा है। भारत की कोशिश है कि रईसी की मौत के बाद चाबहार पोर्ट डील पर किसी तरह का असर न पड़े और ईरान पहले की ही तरह भारत का साथ देता रहे।
संपादक – शिज्जु शकूर