देव आनंद की फिल्म ‘गाइड‘ का गाना युवाओं की जुबान पर चढ़ गया था। गाने का बोल था ‘तेरे मेरे सपने अब एक रंग हैं।’ हालांकि, 50 से अधिक वर्षों में बहुत कुछ बदल चुका है। संबंधों में भावुकता के मुकाबले ‘प्रैक्टिकैलिटी’ ने स्थान बना लिया। वैवाहिक संबंध भी इससे अछूते नहीं हैं। ऐसा भी देखने को मिलता है कि शादियां पहले की तुलना में जल्द ही तलाक तक पहुंच जा रही हैं। वैवाहिक संबंधों में स्थायी होने का भाव समय के साथ कम होता जा रहा है। समाज में पति-पत्नी से संबंधित कई क्राइम की घटनाएं भी सामने आ रही हैं।
इसी साल राजा रघुवंशी केस और ड्रम केस जैसी घटनाओं को देखते हुए कोई भी युवा सोच समझ कर वैवाहिक जीवन में जाना चाहता है। इसी तरह के समाज में फैल रहे डर को देखते हुए राष्ट्रीय महिला आयोग ने मार्च महीने में ‘तेरे मेरे सपने’ नाम की पहल की शुरुआत की।
राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर अपने मेंटरशिप कार्यक्रम के अंतर्गत ‘तेरे मेरे सपने,’ प्री-मैरिटल कम्युनिकेशन सेंटर्स (PMCCs) को भारत के 9 राज्यों में लॉन्च किया था। इस पहल के तहत महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, केरल, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, राजस्थान, ओडिशा और उत्तर प्रदेश में कुल 23 केंद्रों का उद्घाटन किया गया, जो बढ़कर वर्तमान में 11 राज्यों तक जा पंहुच चुका है। इसमें अब बिहार और पंजाब राज्य भी शामिल हो गए हैं।। साथ ही, 56 प्री-मैरिटल कम्युनिकेशन सेंटर्स लोगों का मार्गदर्शन कर रहे हैं।
राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष विजया रहाटकर ने 22 अगस्त को महाराष्ट्र में ‘शक्ति संवाद’ कार्यक्रम के दौरान कहा, “आज हम देख रहे हैं कि हमारे देश की विवाह संस्था पूरी दुनिया के लिए एक प्रेरणादायक उदाहरण बन गई है। इस विषय पर संवाद करने के लिए हमने ‘तेरे मेरे सपने’ प्रीमेरिटल कम्युनिकेशन सेंटर खोले है। मुझे आज कहते हुए बहुत अच्छा लग रहा है कि हमने देश के कलेक्टर्स, इसी के साथ-साथ म्युनिसिपल कमिश्नर, यूनिवर्सिटीज और कुछ एनजीओ से इनको स्थापित करने के लिए कहा था और आज देश में करीबन 11 स्टेट में हमारे 60 प्रीमैरिटल कम्युनिकेशन सेंटर शुरू हो गए हैं। इसमें से अच्छी संख्या महाराष्ट्र की है। मैं ये कहना चाहूंगी कि मुंबई में एक सेंटर शुरू हो गया है, जो मेट्रो सिटी है, पर सोलापुर में सांगोला जैसा गांव है, जो कि बहुत छोटा है। पहले मुझे ही लगता था कि इतने छोटे गांव में इसकी क्या जरूरत है। पर अगर मैं आज कहती हूं कि सबसे अच्छा अगर सेंटर कहीं चल रहा है, तो हमारे सांगोला का सेंटर चल रहा है। यानी कि यह भी अधोरेखित होता है कि मेट्रो में तो इसकी जरूरत है। पर छोटे गांवों में भी उसकी बहुत जरूरत है।”
राष्ट्रीय महिला आयोग की ओर से इस बारे में कहा गया है कि हम पारिवारिक मूल्यों में विश्वास रखते हैं, परिवार के साथ मिलकर जीते हैं और एक-दूसरे का साथ रिश्ते निभाते हैं। विवाह के बाद कोई समस्या आती है, तो हमारे पास पोस्ट-मैरिटल कम्युनिकेशन के लिए कई व्यवस्थाएं मौजूद हैं, जिनमें पुलिस, आयोग, नालसा (National Legal Services Authority), डालसा (Digital Addressable Lighting Interface) और फैमिली कोर्ट्स शामिल हैं।
क्यों लेना पड़ा महिला आयोग को फैसला?
NCW की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक घरेलू विवादों से जुड़ी शिकायतें सबसे ज्यादा होती हैं, जिसकी वजह अवास्तविक अपेक्षाएं, कमजोर संवाद होना और विवाह से पहले की तैयारियों में कमी होना है। आयोग ने यह भी कहा कि संयुक्त परिवारों में गिरावट, सोशल मीडिया का प्रभाव और बदलते सामाजिक मानदंडों के चलते आज के युवा जोड़े कई नई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। यह पहल NCW की इस प्रतिबद्धता से प्रेरित है कि स्वस्थ रिश्तों को बढ़ावा दिया जाए, व्यक्तियों को सशक्त बनाया जाए और परिवारों को मजबूत किया जाए।
‘विजया रहटाकर ने कहा, “हम अक्सर शादी से जुड़े सतही सवालों पर ध्यान देते हैं। कहां शादी होगी? कौन से मेहमान आएंगे? मेन्यू में क्या होगा? सजावट कैसी होगी? पर क्या हम यह सोचते हैं कि शादी के बाद जीवन कैसे चलेगा? दोनों व्यक्ति मानसिक रूप से तैयार हैं या नहीं? उनके बीच संवाद, समझ, और सम्मान की नींव कितनी मजबूत है? ‘तेरे मेरे सपने’ केंद्रों की स्थापना इसी सोच को साकार करने के लिए की गई। यहां युवाओं को भावनात्मक बुद्धिमत्ता, संवाद कौशल, आपसी सम्मान, वित्तीय योजना, और परिवार की भूमिका जैसे विषयों पर मार्गदर्शन दिया जाता है।
वहीं, राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य ममता कुमारी ने बिहार में उद्घाटन समारोह के दौरान कहा, “ये केंद्र भावनात्मक निकटता और वैवाहिक चुनौतियों के समाधान के प्रभावी तरीकों को बढ़ावा देते हैं।” इसके साथ ही उन्होंने इस प्रयास को एक अधिक समरस समाज के निर्माण के लिए आवश्यक बताया।
प्री-मैरिटल कम्युनिकेशन क्यों है जरूरी?
आज के समय में, जहां सामाजिक संरचनाएं और वैवाहिक अपेक्षाएं तेजी से बदल रही हैं, वहां यह जरूरी हो जाता है कि लोगों को ऐसे कौशल से लैस किया जाए जो उन्हें मजबूत, सम्मानजनक और टिकाऊ रिश्ते बनाए रखने में योग्य बनाएं। उस कौशल को बनाने के लिए विवाहपूर्व संवाद (pre-marital communication) एक माध्यम है।
प्री-मैरेटियल काउंसलिंग स्वस्थ रिश्तों की नींव रखने में अहम भूमिका निभाता है। यह लोगों और जोड़ों को शादी से पहले आने वाली मुश्किलों के लिए तैयार करता है, झगड़े सुलझाने के तरीके सिखाता है और उन्हें भावनात्मक रूप से मजबूत बनाता है। इससे घरेलू हिंसा और तलाक के मामलों की संभावना कम होती है। साथ ही, यह पति-पत्नी के बीच जिम्मेदारियों को बराबरी से निभाने की समझ बढ़ाता है, जिससे लड़का-लड़की में समानता आती है और परिवार और समाज मजबूत बनते हैं।
वहीं, प्री-मैरिटल कम्युनिकेशन सेंटर्स (PMCCs) का काम युवाओं को शादी से पहले अच्छे और सम्मान से भरे रिश्ते बनाने की तैयारी में मदद करना है। इन केंद्रों पर युवाओं के लिए काउंसलिंग सेशन, खेल-कूद और बातचीत जैसी इंटरैक्टिव गतिविधियाँ, जनजागरूकता अभियान, और सामुदायिक कार्यक्रम चलाए जाते हैं। इतना ही नहीं, इस कार्यक्रम में मानसिक स्वास्थ्य, शादी को लेकर उम्मीदें, पैसों की प्लानिंग और परिवार से जुड़ी बातों पर खुलकर चर्चा की जाती है। इससे युवाओं को सोचने और समझने का मौका मिलता है, वे ज्यादा समझदार और आत्मनिर्भर बनते हैं।
राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष विजया रहाटकर ने ‘तेरे मेरे सपने’ पहल के उदघाटन के दौरान कहा, ‘तेरे मेरे सपने’ प्री-मैरिटल कम्युनिकेशन सेंटर्स (PMCCs) को पूरे देश में विवाह पंजीकरण कार्यालयों के पास शुरू किया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा, “हमारी योजना है कि देश के हर जिले में केंद्र स्थापित किए जाएं। हर केंद्र के लिए लगभग 150 से 200 वर्ग फुट जगह की जरूरत होगी और वहां प्रशिक्षित परामर्शदाता (काउंसलर) मौजूद रहेंगे।”
क्या कहते हैं एक्सपर्ट?

गुजरात के सूरत से प्री-मैरिटल काउंसलर एक्सपर्ट क्रितीका श्रीश्रीमाल ने The Voices के स्टूडेंट के साथ बातचीत में कहा, “किसी भी काउंसलिंग के लिए संवाद (कम्युनिकेशन) का होना बेहद जरूरी होता है। खासकर जब शादी जैसे विषय की बात हो तो काउंसलिंग बेहद जरूरी साबित होती है, क्योंकि काउंसलिंग से ना सिर्फ सामने वाले को समझने में मदद मिलती है बल्कि ये खुद को समझने, सुधार करने और दूसरों के साथ सामंजस्य बनाने में भी सहयोग करती है।
क्रितीका श्रीश्रीमाल आगे कहती हैं कि ऐसी पहल समाज में रिश्तों को मजबूती देने का काम करेंगी और एक स्वस्थ व संतुलित पारिवारिक वातावरण बनाने में मदद करेंगी। क्योंकि अगर शुरुआत अच्छी होगी, तो जीवन भी सुंदर और संतुलित होगा। शादी सिर्फ दो लोगों का मिलन नहीं, दो सोचों, दो संस्कृतियों, और दो सपनों का मिलन है। और इन सपनों को सफल बनाने के लिए, संवाद सबसे पहला कदम है।

वहीं, हरियाणा राज्य महिला आयोग के कानूनी सलाहकार भानू प्रताप सिंह ने आयोग की कई पहल पर बात करने के दौरान बताया कि बहुत सारी शिकायतें आती हैं, बहुत सारे लोग अब काउंसलिंग के लिए आ रहे हैं। पहले लोगों को दिक्कत होती थी, शर्मिंदगी महसूस होती थी, लेकिन जगह-जगह काउंसलिंग सेंटर खुलने से लोगों से जुड़ना ज्यादा आसान हो गया है। लोग कम्पैटिबिलिटी को समझ पा रहे हैं। प्री-मैरेटियल काउंसलिंग में दोनों ही पक्षों पर ध्यान दिया जाता है और कई तरह के सवाल पूछे जाते हैं, जिससे समझदारी और परिपक्वता का पता चलता है। ग्रामीण क्षेत्रों में भी ‘तेरे मेरे सपने’ का सेंटर खोले जा रहे हैं।
व्यापक मतलब से रूबरू होना जरूरी
“तेरे मेरे सपने” केवल एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि समाज में बदलते रिश्तों की जरूरतों को समझने और उन्हें संभालने का एक संवेदनशील प्रयास है। यह पहल युवाओं को विवाह जैसे महत्वपूर्ण निर्णय के लिए मानसिक, भावनात्मक और व्यवहारिक रूप से तैयार करने की दिशा में एक ठोस कदम है। जहां आज के दौर में रिश्तों में तेजी से बदलाव आ रहा है, वहीं यह जरूरी हो गया है कि हम संवाद, समझ और सम्मान को केंद्र में रखकर वैवाहिक जीवन की शुरुआत करें।
राष्ट्रीय महिला आयोग का यह प्रयास इस सोच को साकार करता है कि शादी सिर्फ रस्मों का नहीं, बल्कि जिम्मेदार रिश्तों का नाम है और इन रिश्तों को मजबूती देने का पहला कदम है। समाज, नीति-निर्माताओं और संस्थानों को चाहिए कि वे इस पहल को सिर्फ कार्यक्रम के रूप में न देखें, बल्कि इसे एक सांस्कृतिक सुधार के रूप में अपनाएं ताकि आने वाली पीढ़ियां सिर्फ शादियां न करें, बल्कि बेहतर और टिकाऊ रिश्ते बना सकें।
कॉपी एडिटर – विकास कुमार उपाध्याय