सर्विक्स (cervix), गर्भाशय ग्रीवा या बच्चेदानी के मुंह से शुरू होने वाले कैंसर को सर्वाइकल कैंसर कहा जाता है, यह कैंसर ह्यूमन पैपिलोमा वायरस के करण होता है। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के मुताबिक, दुनिया भर में, सर्वाइकल कैंसर महिलाओं में चौथा सबसे आम कैंसर है जबकि भारतीय महिलाओं में ये दूसरे नंबर का सबसे घातक कैंसर है।
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के मुताबिक, 2020 में वैश्विक स्तर पर करीब 6 लाख महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर के केस मिले जबकि लगभग 3 लाख महिलाओं की इस बीमारी से मृत्यु हुई। भारतीय महिलाओं में वैश्विक अनुमानों की तुलना में ये दरें काफी ज्यादा हैं। भारत में, आयु-मानकीकृत घटना दर प्रति 100,000 महिलाओं पर 14.7 है, और आयु-मानकीकृत मृत्यु दर प्रति 100,000 महिलाओं पर 9.2 है।
भारत में सर्वाइकल कैंसर की रोकथाम के लिए फरवरी में अंतरिम बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एचपीवी वैक्सीन की घोषण की थी। सीरम इंस्टीट्यूट द्वारा बनाई गई ये वैक्सीन 9 से 14 साल की लड़कियों को मुफ्त में लगाई जाएगी। महिला सशक्तिकरण और सेफ्टी पर अहम फ़ैसला लेते हुए सर्वाइकल कैंसर से बचाव करने वाली इस वैक्सीन को निः शुल्क रखा गया है।
सर्वाइकल कैंसर और एचपीवी का संबंध
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के मुताबिक, स्किन और जेनिटल वार्ट्स सहित एचपीवी से जुड़े घाव काफी पहले से सामने आते रहे हैं। लेकिन 19वीं शताब्दी में संक्रमण के कारण सर्विक्स में कैंसर का संदेह एक इतालवी वैज्ञानिक, सर्जन एंटोनियो डोमेनिको रिगोनी-स्टर्न द्वारा किया गया था। 1949 में HPV का पहला विवरण करते हुए स्ट्रॉस एवं अन्य ने मस्सा टिश्यू के एक्वस एक्सट्रैक्ट्स की जांच करने के लिए इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी का इस्तेमाल किया था, जबकि 1963 में क्रॉफर्ड और क्रॉफर्ड द्वारा अध्ययन में एचपीवी डीएनए के भौतिक गुणों के बारे में बताया था।
हालांकि सर्वाइकल कैंसर में एचपीवी की भूमिका की जानकारी पहली बार 1970 के दशक में ‘एचपीवी वायरोलॉजी के जनक’ प्रोफेसर हेराल्ड ज़्यूर हॉसेन ने दी थी। वर्तमान में यह अच्छी तरह से स्थापित है कि एचपीवी मानव कैंसर जनन में शामिल है और यह न सिर्फ सर्विक्स बल्कि अन्य गैर-जननांग कैंसर का भी एक बड़ा हिस्सा है।
1996 में उन्होंने अपनी थ्योरी में बताया था कि यह एचपीवी था जो सर्वाइकल कैंसर का कारण था एचएसवी नहीं। बाद के प्रयोगों ने उनके सिद्धांत को सही साबित कर दिया, क्योंकि उन्होंने एचपीवी-16 और एचपीवी-18 की पहचान की, जो आमतौर पर गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर का कारण बनते हैं।
गर्भाशय ग्रीवा में होने वाले कैंसर के कारण का पता लगने के बाद 2006 में संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में सर्वाइकल कैंसर की रोकथाम के लिए एचपीवी वैक्सीन बनाई गई। सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रेवेंशन के मुताबिक, एचवीपी टीकाकरण के बाद किशोर लड़कियों में 88% तो युवा एडल्ट महिलाओं में 81% कम हो गए। वहीं, वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक़, क़रीब 140 देशों ने एचपीवी वैक्सीन देने की शुरुआत कर दी है। कई देशों में लड़कों को भी एचपीवी वैक्सीन दी जा रही है।
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार, अभी तक केवल 6 एचपीवी टीकों को लाइसेंस मिला है, जिसमें तीन बिवालेंट, दो क्वाड्रिवेलेंट, और एक नॉनवैलेंट वैक्सीन है। जो वैक्सीन प्री-क्वालिफाइड है, उन्हें दुनिया भर के देशों में मार्केट किया जा रहा है। सभी टीके वायरस टाइप 16 और 18 के संक्रमण को रोकने में अत्यधिक प्रभावशाली हैं, जो वैश्विक स्तर पर गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर के लगभग 70% मामलों के लिए जिम्मेदार हैं।
भारत में क्या है सर्वाइकल कैंसर के आंकड़े?
नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में सर्वाइकल कैंसर के मामले और इससे होने वाली मौतों के आंकड़े साल दर साल बढ़ते ही जा रहे हैं।
‘प्रिवेंटिव मेडिसिन: रिसर्च एंड रिव्यू’ में प्रकाशित एक शोध रिपोर्ट के मुताबिक, सर्वाइकल कैंसर के वैश्विक मामलों में से 20% मामले भारत के हैं। यह एक सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिज़ीज़ है। 95% से अधिक मामले एचपीवी संक्रमण के दीर्घावधि तक रहने के कारण होते हैं।
वर्ष 2015 में भारत में 65,978 सर्वाइकल कैंसर के मामले दर्ज किए गए, जिनमें से 29,029 पीड़ितों की मृत्यु हो गई। इसके पाँच वर्ष बाद वर्ष 2020 में सर्वाइकल कैंसर के मामले बढ़कर 75,209 हो गए। इनमें 33,095 मरीज़ों की मृत्यु हो गई। उपरोक्त आंकड़े भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम (आईसीएमआर-एनसीआरपी) से प्राप्त किए गए हैं।
वहीं, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम (आईसीएमआर-एनसीआरपी) के अनुसार, 2023 में देश में सर्वाइकल कैंसर के मामलों की अनुमानित संख्या 3.4 लाख से अधिक थी।
हरियाणा के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों की महिलाओं के बीच गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर पर जागरूकता डेटा के लिए रितु यादव व साथियों द्वारा शोध किया गया था। इस शोध पर आधारित रिपोर्ट साइंस डायरेक्ट में प्रकाशित हुई थी।
1000 महिलाओं में किए गए इस अध्ययन के मुताबिक, 45.6 प्रतिशत शहरी महिलाओं को सर्वाइकल कैंसर की जानकारी थी। वहीं, 48.6 प्रतिशत ग्रामीण महिलाएँ इस घातक बीमारी के बारे में जानती थीं।
भारत में एचपीवी वैक्सीन
भारत में सर्वाइकल कैंसर की रोकथाम के लिए एचपीवी वैक्सीन को 9-14 साल की लड़कियों के बीच लगाई जा रही है। मालूम हो, पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ने केंद्र सरकार से सर्वाइकल कैंसर के खिलाफ बनी क्वाड्रिवेलेंट ह्यूमन पैपिलोमावायरस वैक्सीन (qHPV) के लिए मंजूरी मांगी थी। वैक्सीन के ट्रायल के बाद गृह मंत्री अमित शाह ने 24 जनवरी 2023 पर बालिका दिवस के दिन ‘सर्वावैक’ टीका को लॉन्च किया।
बता दें, भारत में गार्डासिल 9 और गार्डासिल वैक्सिन की कीमत 10,850 रुपये से लेकर 2000 रुपये प्रति खुराक मार्केट में उपलब्ध हैं। यह वैक्सीन एसपीवी के कई स्ट्रेंस को टारगेट करता है।वहीं, सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा बनाई गई ‘सर्वावैक’ वैक्सीन की दो डोज 4000 रुपये में उपलब्ध है।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अगले तीन वर्षों में 9 से 14 वर्ष की आयु की सभी लड़कियों को उनके स्कूलों या नजदीकी सरकारी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में टीके लगाए जाएँगे। देश भर में नौ से 14 वर्ष की आयु के लगभग आठ करोड़ बच्चे टीके के लिए पात्र होंगे। तीन वर्षों में विभाजित होने पर, पहले साल के दौरान कम से कम 2.6 करोड़ बच्चे पात्र होंगे। इन 2.6 करोड़ बच्चों के अलावा, अन्य 50 लाख से 1 करोड़ बच्चे, जो उन स्थानों पर नौ साल के हो जाएंगे जहां अभियान पहले ही शुरू हो चुका है, उन्हें दूसरे और तीसरे वर्ष के दौरान टीके की डोज की जरूरत होगी। स्वास्थ्य मंत्रालय, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और शिक्षा मंत्रालय अभियान को चलाने में मदद करेंगे।
सर्वाइकल कैंसर और इसके वैक्सीन की उपयोगिता को लेकर द वॉइसेज़ की टीम ने डॉ. प्रियता गुप्ता से बात की। डॉक्टर प्रियता गुप्ता पूर्वी दिल्ली स्थित परमानंद मेडिकल सेंटर में प्रसूति व स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं।
स्टोरी एवं रिपोर्टिंग – रितिका शर्मा
संपादन – शिज्जु शकूर
वीडियो एडिटिंग – विशाल मनसुखानी