“आज के दिन मेरे मन में एक विचार जन्मा है कि अत्याचार के खिलाफ लड़ो चाहे फिर आपकी जान ही क्यों ना चली जाए।”
ये किसी फिल्म का संवाद नहीं है। ये बात लगभग 20 साल की स्नेहा गुप्ता ने कही जो अभी-अभी मंच पर जनजातीय चेतना के महानायक भीमा नायक के संग अंग्रेजी शासन के विरुद्ध संघर्ष में एक भाग लेकर आई हैं।
क्या आदि विद्रोही नाट्य समारोह वर्तमान पीढ़ी में स्वतंत्रता सेनानियों और उनके संघर्ष के प्रति ऐसी ही जागृति पैदा करने के लिए शुरू हुआ था?
इस प्रश्न का उत्तर ढूंढने के लिए- जानते हैं एक ऐसे अनोखे नाट्य समारोह के बारे में, जो विगत 15 वर्षों से स्वतंत्रता संग्राम और जनजातीय चेतना की भूली-बिसरी कथाओं को मंच देकर लोगों तक पहुंचा रहा है।
आरंभ आसान नहीं था
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 8 दिवसीय ‘जनयोद्धा नाट्य समारोह’ शनिवार, 29 जनवरी को अंतिम नाट्य प्रस्तुति के साथ खत्म हुआ। यह आयोजन पिछले शनिवार, 22 जनवरी से शुरू हुआ था। मध्य प्रदेश संस्कृति विभाग के अंतर्गत आने वाले स्वराज संस्थान संचालनालय द्वारा इस नाट्य समारोह का आरंभ “आदि विद्रोही नाट्य समारोह” नाम से सन 2005 में हुआ था। उस समय इसकी रूपरेखा तैयार करने में प्रमुख भूमिका निभाने वाले स्वराज संस्थान संचालनालय के तत्कालीन संचालक श्रीराम तिवारी थे।इस नाट्य समारोह को शुरू करने के पीछे के उद्देश्य और इसमें आने वाली समस्याओं के बारे में बात करते हुए उन्होंने कुछ बातें साझा की।
“जब हमने शुरू किया तो इसके पीछे हमारी दृष्टि स्वाधीनता संग्राम और जनजातीय चेतना इन दो विषयों पर फोकस करने की थी। परंतु तब मुश्किल यह थी कि उस समय स्वाधीनता संग्राम और जनजातीय चेतना पर नाट्य आलेखों और और नाट्य प्रस्तुतियों का अभाव था, तो शुरू के दो तीन वर्षों में हमें विशेष रंग निर्देशकों से कहना पड़ा कि हम चाहते हैं इस विषय पर नाटक हो, लेकिन अगले दो तीन वर्षों में हमें लगा कि अब हमें किसी को अप्रोच करने कि ज़रूरत नहीं है क्योंकि अब लोग स्वयं प्रस्तुतियाँ तैयार करने लगे थे।”
श्रीराम तिवारी, भूतपूर्व संचालक, स्वराज संस्थान संचालनालय (संस्कृति विभाग मध्यप्रदेश के अधीन)
समारोह में जननायकों और वीरांगनाओं पर नाटक ने उनकी स्मृति को मानस पटल पर फिर से उभारा
श्रीराम तिवारी का वक्तव्य यह बताता है कि किस तरह से इस समारोह ने रंगमंच और रंग निर्देशकों को प्रभावित किया। 15 वर्षों के सफर में 100 से अधिक नाट्य प्रस्तुतियों को इस समारोह में शामिल किया जा चुका है। इनमें से कई नाटक ऐसे हैं जिनको इसी नाट्य समारोह के लिए रचा गया और इसके बाद ही उसे किसी दूसरे मंच पर खेला गया।
वर्तमान में स्वराज संस्थान संचालनालय के सह-संचालक संजय यादव बताते हैं कि एक सुखद अनुभव है कि इस समारोह के लिए जो नाटक रचे गए वो आज दूसरे मंचों पर प्रस्तुत किए जा रहे हैं और उनकी प्रशंसा भी हो रही है।
“अब देश भर से इस नाट्य समारोह में भाग लेने के लिए प्रविष्टियाँ आती हैं। कुछ प्रस्तुतियाँ ऐसी भी हैं जो इस समारोह के लिए तैयार हुईं और अब अन्य समारोहों में प्रस्तुत की जा रही हैं और प्रशंसा पा रही हैं।”
संजय यादव, सह-संचालक, स्वराज संस्थान संचालनालय
जनयोद्धा नाट्य समारोह दर्शकों को दे रहा है नई दृष्टि
दर्शकों का एक बड़ा समूह है जो इस समारोह को विगत 15 वर्षों से देख रहा है। दर्शक मानते हैं कि इस समारोह में देशभर से प्रस्तुतियाँ आती है और मन में स्वाधीनता संग्राम से जुडी कहानियों को ताज़ा करती हैं।
“बड़ी खुशी होती है कि हमारे शहर में जननायकों को लेकर एक समारोह चलता है और युवाओं को जो खो गए हैं उन जननायकों के बारे में जानने को मिलता है।”
गणेश सिंघम (दर्शक)
समारोह में आदिवासी क्रान्तिकारी ‘टंट्या भील’ पर आयोजित नाटक का भी मंचन हुआ, जिसने दर्शकों को बहुत प्रभावित किया।
“आज मैंने टंट्या भील पर नाटक देखा। समझ आया कि कैसे छोटे-छोटे अंचलों में रहने वालों ने स्वाधीनता संग्राम में भाग लिया। मतलब देश के लिए कुछ करने के लिए आपका आर्मी में होना ज़रूरी नहीं है। आप जहां हैं छोटी या बड़ी जगह वहाँ से भी बहुत कुछ कर सकते हैं।”
आरती राजपूत, पूर्व शिक्षिका(मंचित नाटक टंट्या भील की दर्शक)
जननायकों के किरदार लाते हैं जागृति
“जनयोद्धा नाट्य समारोह” में स्वाधीनता संग्राम में शामिल कहानियों में प्रस्तुत जननायकों और वीरांगनाओं ने अपने समय पर जो असर छोड़ा उसका एक कारण उनका किरदार था। उन किरदारों को जीने वाले भी मानते हैं कि ये किरदार जीने के बाद उनके अंदर कुछ अलग सा जागा है। इसकी अभिव्यक्ति कठिन है लेकिन वे अनुभव कर रहे हैं कि उनके व्यक्तित्व में बहुत कुछ ऐसा जुड़ गया है जो समाज को देखने के लिए एक अलग नज़र देता है।
नाटक “भीमा नायक” में भीमा की भूमिका निभाने वाले प्रयाग साहू ने भी अपने विचार साझा किए।
“भीमा में एक जज़्बा था लोगों को बचाने के लिए, लोगों को जगाने के लिए, रियल लाइफ में अगर मुझे मौका मिला तो मैं ज़रूर वही करुंगा जैसा भीमा नायक ने किया।”
कुछ ऐसे ही विचार हर्ष दोण्ड के भी थे जिन्होंने आई एम सुभाष में नेताजी सुभाषचंद्र बोस का किरदार निभाया था।
“सुभाष जी किरदार करने के बाद मुझे लगा कि हमें समय के साथ सामंजस्य बिठाना चाहिए, कर्म की प्रधानता रखनी चाहिए और हमारे विचार व्यक्तिगत न होकर विश्वव्यापी होने चाहिए।”
हर्ष दोण्ड (‘आई एम सुभाष’ के अभिनेता)
कठिन मगर संतुष्टिदायक
1947 के पूर्व की पृष्ठभूमि पर आधारित नाटकों का लेखन और मंचन के काफी शोध की ज़रूरत होती है, यह एक श्रमसाध्य कार्य है। समारोह के आयोजकों के साथ नाटककारों के लिए ऐसे दर्शक वर्ग के सामने नाटक प्रस्तुत करना आसान नहीं होता जो स्वाधीनता संग्राम के समय से बहुत आगे आ चुका है।
मंचन से जुड़े लोगों के लिए वो पल बहुत संतोषजनक होता है, जब नाटक का मंचन सफलतापूर्वक हो जाता है। समारोह में शामिल एक नाटक की प्रकाश सज्जा संभाल रहींं, आज की पीढ़ी की अधिशा भी ऐसा ही कुछ अनुभव साझा करती हैं।
“हमने 1857 के युग को नाटक में दिखाया। आज 21 शताब्दी में हम उस युग में नहीं हैं तो उस युग में जाना कठिन था लेकिन खुशी है उस कालखंड को हम प्रस्तुत कर पाये।”
अधिशा, प्रकाश व्यवस्थापक(जनयोद्धा नाट्य समारोह)
जनयोद्धा नाट्य समारोह का सफर जारी रहे
“अपनी संस्कृति बचाने, किसानों के गीत बचाने, पुरानी किताबों के अंदर लिखे को बचाने के लिए, स्वराज्य पाने के लिए लड़ना होगा।”
समारोह में मंचित एक नाटक का ये संवाद जैसे समारोह की सारी महत्ता बता देता है। यह नाट्य समारोह पुरानी किताबों में लिखी स्वाधीनता संग्राम की कहानियों को बचाने का ही एक प्रयास है। किताबों में लिखी या वाचिक परंपरा में जीवित स्वाधीनता संग्राम की कहानियाँ जब मंच पर आती हैं तो वो मन तक पहुँचती हैं। मन पर छपी उनकी आकृति बहुत देर तक और दूर तक साथ रहती है।
“नाट्य समारोह बहुत होते हैं लेकिन साल में एक बार ऐसा स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों पर आधारित नाट्य समारोह जब होता है तो जो लोगों के अवचेतन से निकल गया होता है वो वापस आता है। तो ऐसे नाट्य समारोह होते रहना चाहिए।”
दिनेश नायर, समारोह में मंचित नाटक ‘कारतूस-1857 क्रांति’ के निर्देशक
ये समारोह एक रिले दौड़ की तरह है जिसमें नाटककार अपने नाटकों द्वारा स्वाधीनता की कहानियों की बेटन आगे की पीढ़ी को सौंपते जाते हैं और दौड़ चलती रहती है। दर्शक, आयोजक, नाटककार सभी चाहते भी यही हैं कि ये सफर जारी रहे।
विडियो: देवेश कुमार शर्मा
संपादक – शिज्जु शकूर