वैसे तो भारत एक कृषि प्रधान देश है परंतु इस देश की अर्थव्यवस्था जिन ट्रकों के पहियों पर दौड़ती है, उसके चालक समुदाय की अपनी एक कहानी है। अफ़सोस की बात है कि ट्रकों के पीछे लिखे नारे तो पढ़े गए हैं, लेकिन उन्हें चलाने वालों के संघर्षों की कहानियां न लिखी गयीं, न पढ़ी गयीं।
ट्रक चालक देश की अर्थव्यवस्था में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। हर मौसम में घंटों चलते हैं, चाहे गर्मी हो या सर्दी, बारिश हो या बर्फबारी ताकि माल समय पर पहुँच सके। लॉजिस्टिक क्षेत्र का 92% हिस्सा असंगठित है जिसमें ट्रक चालकों की हिस्सेदारी बहुत बड़ी है। भारत में ट्रकों की संख्या लगभग 10 अरब है। लेकिन ट्रक चालकों का जीवन काफी कठिनाइयों से भरा हुआ है। कई कई दिन तक ट्रक के केबिन में ही रहना, वहीं खाना, वहीं सोना और अगर माल ना उतरे तो सारी रात उसकी चौकसी करना, लंबे समय तक परिवार वालों से नहीं मिलना। खराबी होने पर जोखिम उठा कर भी वे लम्बी दूरी तक ट्रक चलाते रहते हैं।
पिछले ढाई वर्षो में कोरोना जैसी वैश्विक महामारी की विभीषिका के दौर में दौर में ट्रक चालकों ने अत्यंत महत्वपुर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने अपनी जान की परवाह न करते हुए इस संकट के दौर में देश में खाद्य एवं आवश्यक सामग्रियों की आपूर्ति को सुनिश्चित रखा।
ट्रक चालकों के बारे में जाने के लिए द वॉयसेज़ की टीम बहादुरगढ़ ट्रक यूनियन पहुँची। बहादुरगढ़ को गेटवे ऑफ हरियाणा भी बोला जाता है। भारत में सबसे ज्यादा फुटवियर कारखाने बहादुरगढ़ में ही मौजूद हैं। वहाँ हमारी मुलाकात ट्रक चालक राजेन्द्र दलाल, रामनिवास,अनिल,सतबीर जून, रमेश मलिक, बहादुरगढ़ ट्रक यूनियन के महासचिव प्रवीण मान और कोषाध्यक्ष हरबीर जून से हुई। राजेन्द दलाल ने बताया कि वे काफी परेशानियों का सामना करते हैं। ना खाने के लिए अच्छा खाना, ना आराम करने के लिए कोई सुविधा।
“हमारे लिए सब बराबर रहा कोरोना से पहले भी और अब भी, ना लोग पहले बात करना पसंद करते थे ना अब। अगर किसी गोदाम या कंपनी में माल उतारने चले जाते हैं तो गेट पर ही हमारा फोन जब्त कर लिया जाता है। वहां अंदर क्या हो रहा है? कब तक माल उतरेगा? हम किसी से भी नही पूछ सकते। हमारी बातचीत सिर्फ माल उतारने वाले मजदूरों से ही होती हैं। हमें कंपनी के अंदर भी नही जाने दिया जाता।”
राजेंद्र दलाल, ट्रक ड्राइवर
कोरोना काल में नहीं दिया किसी ने भी साथ
आगे जब बात हुई तो ट्रक चालकों ने बताया “कोरोना के समय प्रशासन और सरकार से अपेक्षित मदद नहीं मिली; पुलिस प्रशासन ने भी उन्हें काफी जगह रोका। लोगों के बीच डर का माहौल बना हुआ था कोई किसी को छूना भी नहीं चाहता था। इंसान ही इंसान से दूर भाग रहा था, यही हालत हम बरसों से सहन करते आ रहे हैं। दिन में नो एंट्री और ज्यादा यातायात होने की वजह से हम सभी रात को ट्रक चलाते हैं। लेकिन रात के समय लूटपाट होने का डर सताता रहता है।”
एक ट्रक चालक ने बताया कि उसके साथ एक बार ट्रक छीनने की वारदात हो चुकी है। चोरों ने उसका हाथ भी तोड़ दिया था लेकिन किसी तरह वो जान बचाने में कामयाब रहा। बाद में जब उसने NHAI टोल फ्री नंबर पर कॉल की तो वो नंबर लगा ही नहीं।
आर्थिक बोझ डालती डाला प्रथा
सामान्यतः एक ट्रक चालक की औसतन आय 15 से 20 हजार रुपये मासिक तक होती है जिसमें उसको घर का गुजारा भी करना पड़ता है। लेकिन काफी बार माल मंगवाने वाले समय पर पैसे नहीं देते जिसकी वजह से काफी दिक्कतें होती हैं। वहीं मज़दूरों को माल उतारने के एवज में डाला भी देना पड़ता है।
डाला प्रथा एक तरह की रिश्वत है, जो माल उतारने वाले मजदूर ट्रक ड्राइवर से वसूल करते हैं। इसके भुगतान की ज़िम्मेदारी माल भेजने वाले या प्राप्त करने वाले की नहीं होती बल्कि ट्रक ड्राइवर की होती है। इन्कार करने की स्थिति में मज़दूर समय पर माल नहीं उतारते, इसमें वो दो-दो दिन तक ले लेते हैं। अक्सर डाला लेन-देन का हिसाब रखने वाले मुंशी द्वारा भी लिया जाता है। डाला की दर 50 रूपए से लेकर 120 रूपए प्रति टन तक होती है।
लगातार ट्रक चलाने से स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ता है
एक ट्रक चालक पूरे दिन में 12 घण्टे से ज्यादा ट्रक चलता हैं जिसमे वो लगभग 450 किलोमीटर की दूरी तय कर लेता है जिसकी वजह से उन्हें कमर में दर्द रहने की शिकायत रहती है और इस बीच अच्छा खाना ना मिलने से भी पेट खराब रहता हैं। ट्रक चालकों ने बताया कि ना ही सरकार की तरफ से उनके लिए कोई स्वास्थ्य या अन्य सम्बंधित योजना हैं। अगर कोई कोई योजना बनाई भी गई है तो आज तक ना तो उनको लाभ मिला हैं और ना ही उन्हें उस से अवगत कराया गया है।
जीवन का हिस्सा बनता मानसिक तनाव
एक ट्रक का चक्र कम से कम 2 दिन का होता है। जिसे वे लंबे समय तक परिवार वालो से नहीं मिल पाते, यह काफी तनावपूर्ण होता है। ट्रक चालकों ने बताया कि लोगों के मन में एक तरह की कहानी बुन दी गई है कि ट्रक चलाने वाले नशा करते हैं, जिससे सभी हमें गलत नज़रों से देखते हैं, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है। हमें समाज में अच्छी नज़रों से नहीं देखा जाता है और यह भेदभाव कहीं न कहीं हमें ताउम्र मानसिक तनाव में रखता है।
आईएमएआरसी की रिपोर्ट के अनुसार 2020 में भारतीय ट्रक बाज़ार ने 10850 अरब डॉलर की ऊंचाई को छुआ। 2021 से 2026 के बीच इस बाज़र के 12% की दर से बढ़ने की सम्भावना है। कोरोना के दौर में गिरावट अवश्य आयी पर हाल के दिनों में इसमें तेज़ी देखी गयी है। पुराने ट्रकों को बदलना में भी इस क्षेत्र के लिए एक बड़ी चुनौती है। सम्भावना है कि नवीनीकरण मात्र से यह क्षेत्र 10 ख़रब डॉलर तक की कीमत को छू सकता है। ऐसे में एक समुदाय के रूप में ट्रक चालकों की व्यथा का निवारण एक संवेदनशील समाज और सरकार का सामूहिक दायित्व है।
फ़ोटो क्रेडिट: विशाल
संपादक – शिज्जु शकूर