दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने राजधानी की राजनीति का पूरा परिदृश्य बदल दिया है। इस बार का चुनावी संघर्ष बेहद दिलचस्प और कड़ा रहा, जिसमें आम आदमी पार्टी (AAP) के संयोजक और पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, भारतीय जनता पार्टी (BJP) के प्रवेश वर्मा और कांग्रेस के संदीप दीक्षित के बीच जबरदस्त मुकाबला देखने को मिला। यह चुनाव कई महत्वपूर्ण राजनीतिक समीकरणों को बदलने वाला साबित हुआ।
केजरीवाल की चुनौती: क्या मजबूत पकड़ बनी रह पाई?
अरविंद केजरीवाल पिछले तीन चुनावों—2013, 2015 और 2020—में लगातार नई दिल्ली विधानसभा सीट से जीत दर्ज करते आए थे। उनकी सरकार ने बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में कई योजनाएं लागू कीं, जिससे उन्हें व्यापक जनसमर्थन मिला। लेकिन इस बार परिस्थितियां बदली हुई थीं।
- मुख्यमंत्री पद से हटना:
- दिल्ली के मुख्यमंत्री का पद छोड़ने के बाद अरविंद केजरीवाल के प्रभाव में कमी आई।
- भ्रष्टाचार के आरोप:
- शराब नीति घोटाले से जुड़ी जांच और उनके सहयोगियों पर लगे आरोपों ने उनकी छवि पर असर डाला।
- केंद्र सरकार से टकराव:
- दिल्ली सरकार और केंद्र के बीच लंबे समय से सत्ता के अधिकारों को लेकर विवाद चल रहा है, जिससे प्रशासनिक फैसलों पर भी असर पड़ा।
भले ही केजरीवाल की योजनाओं का लाभ उठाने वाली जनता उनके पक्ष में थी, लेकिन बीजेपी ने इस बार उनके खिलाफ आक्रामक रणनीति अपनाई।
बीजेपी की दांव-पेच: प्रवेश वर्मा को कितना लाभ?
इस चुनाव में बीजेपी ने साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश वर्मा को मैदान में उतारा। बीजेपी की पूरी रणनीति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और हिंदुत्व के एजेंडे के इर्द-गिर्द रही।
- मोदी लहर का असर:
- लोकसभा चुनावों में बीजेपी का प्रदर्शन दिल्ली में हमेशा मजबूत रहा है। इस बार भी चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ा गया और दिल्ली भाजपा अध्यक्ष प्रवेश वर्मा को इसका लाभ मिला।
- भ्रष्टाचार को चुनावी मुद्दा बनाना:
- बीजेपी ने आम आदमी पार्टी पर भ्रष्टाचार के आरोपों को ज़ोर-शोर से उठाया और इसे अपने प्रचार का केंद्र बिंदु बनाया।
- हिंदुत्व और राष्ट्रवाद:
- हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के मुद्दे को बीजेपी के नेता प्रवेश वर्मा मज़बूती से पकड़े रहे।
प्रवेश वर्मा केजरीवाल को उनके ही गढ़ में चुनौती देने में सफल रहे, यह बीजेपी के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। उल्लेखनीय है कि केजरीवाल स्वयं पहली बार तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित को हराकर विधानसभा पहुँचे थे।
संदीप दीक्षित की रणनीति काम न आई, कांग्रेस एक बार फिर खाली हाथ रही:
नई दिल्ली सीट कभी कांग्रेस का गढ़ मानी जाती थी, लेकिन आम आदमी पार्टी के उदय के बाद कांग्रेस हाशिए पर चली गई। इस बार संदीप दीक्षित ने पार्टी के लिए वापसी की कोशिश की।
- शीला दीक्षित की विरासत:
- प्रचार में कमज़ोर रहे संदीप दीक्षित शीला दीक्षित की विकासपरक राजनीति का लाभ नहीं उठा पाए।
- कांग्रेस की कमजोर स्थिति:
- कांग्रेस का संगठन दिल्ली में कमजोर हो चुका है और पार्टी को अपने पारंपरिक वोट बैंक को वापस जोड़ने की चुनौती थी।
- AAP विरोधी वोटों का ध्रुवीकरण:
- अगर AAP और बीजेपी के बीच सीधी लड़ाई होती, तो कांग्रेस के पास सीमित संभावनाएं होतीं, लेकिन अगर AAP विरोधी वोट बंटते, तो कांग्रेस को फायदा मिल सकता था।
मतदाताओं का रुख और चुनावी नतीजे
- AAP समर्थक: वे केजरीवाल सरकार की नीतियों पर भरोसा जताते रहे, खासकर शिक्षा और स्वास्थ्य सुधारों पर।
- BJP समर्थक: उन्होंने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व पर विश्वास बनाए रखा और भ्रष्टाचार के आरोपों को बड़ा मुद्दा माना।
- कांग्रेस समर्थक: उन्होंने शीला दीक्षित के कार्यकाल को याद किया, लेकिन पार्टी की कमजोर स्थिति उनके लिए चिंता का विषय बनी रही।
किसकी हुई जीत?
- अरविंद केजरीवाल: AAP के कोर वोटरों में गिरावट देखी गई, जिससे उनकी स्थिति कमजोर हुई।
- प्रवेश वर्मा: मोदी लहर और AAP के खिलाफ बढ़ते माहौल का फायदा उन्हें मिला |
- संदीप दीक्षित: कांग्रेस के पुराने समर्थक अगर संगठित हो जाते, तो नतीजों में बदलाव संभव था।
लेकिन आखिरकार, दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के परिणामों ने राजधानी की राजनीति में जबरदस्त बदलाव ला दिया। बीजेपी ने 27 साल बाद ऐतिहासिक वापसी करते हुए 70 में से 48 सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि आम आदमी पार्टी को केवल 22 सीटों पर संतोष करना पड़ा। कांग्रेस का खाता फिर से नहीं खुल सका। यह नतीजे स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि दिल्ली की जनता ने इस बार बदलाव को प्राथमिकता दी।
संपादन – शिज्जु शकूर
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