बिगड़ जाओ तमन्नाओं, इजाज़त दे रहा हूं…
कब तक शरीफ बन कर , पिंजरे में कैद रहोगे?
तुम मासूम हो, ये बता कर, क्या पा लिया है, तुमने?
थोड़ी शरारत कर लो, शराफ़त के दायरे में!
मैं ये नहीं कहती कि आवारगी अच्छी है…
पर खुलकर सांस ले सके, वही सादगी अच्छी है !
‘वो’,जो तुझ पर लगा रहे हैं पहरा -ए -नजर…
क्या उनकी हरकतें हैं, शराफत के दायरे में ?
बिगड़ जाओ तमन्नाओं ,इजाजत दे रहा हूं…
बचपन गया, जवानी भी , जवानी के बाद क्या…
जीते जी न ले सके साँसें , तो ज़िंदगानी के बाद क्या?
कुछ हौसला तो कर,जीने की बात करते हैं
हर हसरत साँस लेगी,शराफत के दायरे में…
बिगड़ जाओ तमन्नाओं, इजाजत दे रहा हूं…
उड़ानों को हौसला दे ,गर्दन को ऊंची कर…
फड़फड़ा के ‘पर’, अपने आसमाँ को ज़िंदा कर!
ख्वाबों के कदमों को, हकीकत की ज़मीं मिल जाए,
अपना मकाम कर ले हासिल,शराफत के दायरे में…
बिगड़ जाओ तमन्नाओं, इजाजत दे रहा हूं…
2 Comments
it’s beautiful vadini
Vadini ji,
the theme is beautiful and realistic too. Your narration in a matured voice accompanied with light music is a real feast to ears.
Thank you.