The nights were cold The days seemed dull I knew I was awaken But still December was surreal Every morning was a struggle Every night was a nightmare Winters were dark and lonely The nights got longer and misty My ears picked up even the slightest sound Pin drop silence they said? I woke up shook, I knew I was not alone Hey! Hey! Hey! Stop! Yet another nightmare The unconscious mind has been stressing itself for too long now The reality was nonidentical from the “fantasies” And slowly it was time for me to realise The present became past…
Author: Zinia Karmakar
बचपन की बातें याद आती हैं जब दादी से ज़िद किया करते थे आज भी याद है मुझे, जब कलकत्ता आती थी गर्मियों की छुट्टी में और कहती ‘‘दादी, कहीं घुमाने ले चलो‘‘ दादी को अपने नन्हे और बड़े पोते पोतियों से बड़ा प्यार था उनकी मांगों को पूरा करना वह अपने प्यार को जताना समझतीं पर दादी को मेरी बड़ी बहन से ज़्यादा लगाव था ना जाने मैंने ऐसा क्या किया था? अब चलते हैं अपने घर लखनऊ। दादी, जल्दी आना दादी हमसे जब मन चाहे मिलने आ जातीं और गर्मियों में मलिहाबाद के आम खातीं चटपटे अचार के…