13 अप्रैल को एक अधिसूचना में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने सभी मान्यताप्राप्त विश्विद्यालयों को निर्देशित करते हुए कहा है कि इस अधिसूचना की तारीख से कोई भी विद्यार्थी एक साथ दो कार्यक्रमों में नामांकन लेकर पढ़ाई कर सकता है| इसके लिए यू.जी.सी. की तरफ से सभी विश्विद्यालयों के लिए, उनके द्वारा अधिकृत कॉलेजो और संस्थानों को आवश्यक दिशानिर्देश जारी किये गए। इसके तहत सभी संस्थानों से इस आदेश को लागू करने हेतु आवश्यक व्यवस्था सुनिश्चित करने का आग्रह किया गया ताकि इसका लाभ छात्रों को उपलप्ध हो सके।
नियम क्या कहता है?
यू.जी.सी. अधिनियम-1956, यू.जी.सी. को भारत में उच्चतर शिक्षा के नियमन का वैधानिक अधिकार प्रदान करता है। यू.जी.सी. अधिनियम-1956 का सेक्शन-22 यू.जी.सी. को डिग्री देने का अधिकार प्रदान करता है। पहले एक विद्यार्थी एक सत्र में दो डिग्री हासिल नहीं कर सकता था, चाहे डिस्टेंस मोड हो या रेगुलर मोड। ऐसा करने पर डिग्री को मान्यता नहीं दी जाती थी। यद्यपि नए नियम के अनुसार एक साथ दो डिग्री हासिल की जा सकती है। जिसके लिए कुछ शर्तों को मानना अनिवार्य होगा। जैसे –
पृष्ठभूमि
मानव संसाधन विकास मंत्रालय (अब शिक्षा मंत्रालय) ने जून 2017 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मसौदा तैयार करने के लिए डॉ. के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था। समिति ने मई 2019 में अपनी अंतिम रिपोर्ट सरकार को सौंपी । 30 जुलाई 2020 को सरकार ने इस मसौदे को कानूनी रूप प्रदान कर दिया। नई शिक्षा नीति -2020 ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति -1986 (1992 में संसोधन) को प्रतिस्थापित किया है और इकीसवीं सदी में भारत की पहली शिक्षा नीति बनी ।
भारत जब आजाद हुआ तो भारत की शिक्षा दर लगभग 12 प्रतिशत थी और जनसंख्या 36.1 करोड़ थी। उस समय नागरिकों को मूलभुत सुविधाएँ मुहैया कराना सरकार की पहली प्राथमिकता थी। जब भारत ने अपनी पहली राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू की तो उसका मुख्य उद्देश्य सभी नागरिकों तक, शिक्षा की पहुँच को सुगम और बिना भेदभाव के सबके लिए उपलब्ध कराना था।
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग ने जुलाई 2020 में जारी जनसंख्या अनुमान रिपोर्ट 2011-36 में कहा है कि 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की 50.2 प्रतिशत जनसंख्या की उम्र 24 वर्ष या उससे कम है, जिसमें 0-14 आयु वर्ग के 30.9 प्रतिशत और 15-24 आयु वर्ग के 19.3 प्रतिशत में विभाजित है। इस युवा आबादी को कुशल शिक्षा देने के लिए और तकनीक आधारित युवा कार्यबल तैयार करने के लिए नई शिक्षा नीति की आवश्यकता थी।
नई शिक्षा नीति-2020 में कहा गया है, “शिक्षाशास्त्र को ऐसा होना चाहिए जो अनुभवजन्य हो, एकीकृत हो, खोज-उन्मुख (discovery-oriented) हो, चर्चा-आधारित हो, लोचशील और आनंद प्रदान (enjoyable) करने वाला हो।”
यूजीसी ने अपनी अधिसूचना में कहा है, “उच्च शिक्षा की मांग में तेजी से वृद्धि और नियमित संस्थानों के मुख्य विषयों में सीटों की सीमित उपलब्धता ने कई उच्च शिक्षा संस्थानों (HEI) को छात्रों की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए ओपन एंड डिस्टेंस लर्निंग (ODL) मोड में कई कोर्सेज शुरू करने के लिए बाध्य किया है। इस परिस्थिति में ऑनलाइन शिक्षा कार्यक्रमों का भी उद्भव हुआ है, जिससे एक छात्र घर के भीतर बैठकर आराम से पढ़ाई कर सकता है। छात्रों को एक साथ दो शैक्षणिक कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने की अनुमति देने के विषय को राष्ट्रीय शिक्षा नीति में परिकल्पित प्रस्तावों को ध्यान में रखकर मान्यता दी जा रही है ताकि नई शिक्षा नीति के समग्र उद्देश्यों को सफल बनाया जा सके।”
छात्रों की राय
द वॉइसेस ने इसके प्रभाव और मिलने वाले लाभ पर विभिन्न विशेषज्ञों तथा छात्रों से बातचीत किया है। भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, बंगलुरु में प्रोजेक्ट इंजीनियर के पद पर कार्यरत अतुल कुमार ने इस फैसले को एक सराहनीय कदम बताते हुए कहा,
“इससे छात्रों को अपने जीवन में एकेडमिक पढ़ाई में मल्टीडायमेंशनल स्कोप में आगे बढ़ने और बेहतर विकल्प चुनने का मौका मिलेगा। छात्र अब एक सब्जेक्ट या एक स्ट्रीम में अपने आप को बाध्य नहीं कर सकेंगे।”
प्राथमिक विद्यालय छौड़ादानो (बिहार) में शिक्षक के पद पर कार्यरत अविनाश कुमार बताते हैं-
“इस फैसले से कम समय में अकादमिक के साथ -साथ कौशल उन्मुख कोर्स करने का मौका मिलेगा, जिससे छात्रों में प्रतियोगिता की भावना का विकाश होगा और वे जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित होंगें, जो उनको आत्मनिर्भर बनने और परिवार को आर्थिक रूप से सबल बनाने का अवसर देगा।”
अविनाश ने यह भी कहा कि दो कोर्स करने से छात्रों पर बहुत ज्यादा मानसिक दबाव होना एक चिंता का विषय होगा और शैक्षणिक संस्थानों को इसका ध्यान रखना होगा।
दिल्ली के आशीष, जो कि फिस्क्शन मीडिया में फ्रीलांसर के तौर पर कार्य करते हैं, ने हमें बताया
“इस फैसले से मेरे जैसे लाखो प्रोफेशनल्स को अपने स्किल्स को अपग्रेड करने और विविध क्षेत्रों में अपनी उपयोगिता साबित करने का मौका मिलेगा।”
बिहार से प्रशिक्षु उप पुलिस-अधीक्षक आनंद कुमार सिंह कहते हैं
” इस फैसले से भारत के उच्च शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात बढ़ेगा और इससे देश में एक सक्षम कार्यबल का निर्माण होगा।”
महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्व विद्यालय, बिहार से सोशल वर्क विषय में पीएचडी कर रहे छात्र राकेश रौशन ने हमें बताया कि ये फैसला उपयोगी है लेकिन इसके सफल क्रियान्वयन और निगरानी के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एकीकृत संस्थागत संगठन होना चाहिए। बेंगलुरु की एक कंपनी एक्सेंचर (Accenture) में एसोसिएट मैनेजर के पद पर कार्यरत मनदीप सिंह ने इस कदम की सराहना करते हुए इसे यूजीसी का एक बहुत अच्छा कदम बताया, उनका मानना है कि लोगों को निश्चित तौर पर फायदा होगा।
दिल्ली विश्वविद्यालय से पीएचडी राकेश कुमार रजक ने द वॉइसेस को बताया
“इस फैसले से कम समय, और कम खर्च में अलग-अलग क्षेत्रों में कुशलता मिलेगी। जो की वर्तमान समय में भारत जैसे विशाल युवा आबादी वाले देश में जरूरी है। ” आगे उन्होंने बताया कि इससे विषय में विशेषज्ञता हासिल नहीं हो पायेगी।”
भारत एक युवा देश है और यहाँ की युवा आबादी को जनांकिकीय लाभांश में बदलने के लिए एक कुशल कार्यबल के रूप में तैयार करना होगा। इस दिशा में यूजीसी की नई शिक्षा नीति -2020 कितनी सफल होती है, यह आने वाले वर्षों में स्पष्ट होगा।