“मिट्ठड़ी ऐ डोगरें दी बोली, ते खंड मिट्ठे लोग डोगरे ” – प्रसिद्ध गायक महेंद्र कपूर द्वारा गाई गईं इन पंक्तियों में डुग्गर के लोगों की मीठी बोली तथा उनके सरल स्वभाव का सुंदर वर्णन हैI जम्मू क्षेत्र जिसे ” लैंड ऑफ डोगरा ” के नाम से भी जाना जाता है, अपनी अद्वितीय प्राकृतिक सुंदरता का धनी हैI लोक संस्कृति और प्राकृतिक सौंदर्य का संयोग इस क्षेत्र को मनोरम बनाता है।
हाल ही में जम्मू के संभागीय आयुक्त डॉ राघव लांगर ने जम्मू स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के निदेशक मंडल की नौवीं बैठक का नेतृत्व किया। बैठक में पारित होने वाले अन्य प्रस्तावों में मुबारक मंडी हैरिटेज काम्प्लेक्स के पुनर्विकास हेतु निविदा पर चर्चा हुई। मुबारक मंडी हेरिटेज काम्प्लेक्स डोगरा सांस्कृतिक क्षेत्र की विरासत में अद्भुत महत्व रखता है। वही विरासत जिसके विविध आयाम अनछुए हैं और जिनको बचाने की कवायद ज़ोरों पर है।
डुग्गर क्षेत्र में पर्यटन की संभावनाएं
जम्मू संभाग में स्थित भद्रवाह, मांसर और सरुइंसर झीलें, पटनीटॉप, सनासर आदि पर्यटक स्थलों में प्रत्येक वर्ष लाखों लोगों का आना होता है। धार्मिक पर्यटन के नज़रिये से यह क्षेत्र अत्यंत समृद्ध है। श्री माता वैष्णो देवी श्राइन, अमर नाथ श्राइन, शाहदरा शरीफ तीर्थ, शिव खोरी तीर्थ आदि इसी संभाग में स्थित है। गौरतलब है कि गंगा नदी की बड़ी बहन के रूप में लोकप्रिय देविका नदी का उद्गम स्थल भी यही क्षेत्र है।
डोगरा – संस्कृति और समय
डोगरे भारत में एक इंडो-आर्यन समूह हैI उन्नीसवीं शताब्दी से लेकर 1947 तक डोगरा शासकों ने जम्मू पर राज किया। इस क्षेत्र के प्रसिद्ध राजा गुलाब सिंह इसी वंश से सम्बन्ध रखते थे। इस समुदाय की भाषा डोगरी है और अपनी सांस्कृतिक विरासत के लिए हालिया दौर में इस समुदाय में एक नवीनतम चेतना का विस्तार देखा गया है। जहां एक तरफ़ शहरों में यह मान्यताएँ लुप्त हो रही हैं वहीं पहाड़ी इलाक़ों में लोग आज भी इन रंगों में रंगे हुए हैं या फिर यूँ कहें तो इन्होंने ही डुग्गर विरासत को सँभाला हुआ है। गत माह डोगरा सदर सभा ने सरकार से एक विशेष जम्मू महोत्सव आयोजित करने का आग्रह किया जिसमें डोगरा विरासत के विभिन्न पक्षों को दिखाया जाये।
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कुड्ड – लोक नृत्य -
रूट्ट राढ़े – बीज परीक्षण महोत्सव -
ढान – सामूहिक रसोई महोत्सव -
कुड्ड- डोगरा लोक नृत्य
डुग्गर संस्कृति में जीवन के हर पड़ाव को धूमधाम से मनाने की परंपरा है। पारंपरिक उत्सवों में गीतों तथा खान -पान का एक विशेष स्थान है जो कि पर्यावरण के अनुकूल हैं। डुग्गर संस्कृति में नई फसल से मिले अनाज को परंपरागत तरीक़े से पहले देवी देवताओं को अर्पित किया जाता है, जिसे ‘खारका’ कहा जाता है। इस उपलक्ष्य पर एक ख़ास तरह का लोक नृत्य् ‘ कुड्ड ‘ प्रस्तुत किया जाता है। डुग्गर रीति रिवाजों में वैज्ञानिक सूझबूझ के भी उदाहरण देखने को मिलते हैं । ‘रूट्ट-राढे’ नामक त्योहार विशेष रूप से बीज-परीक्षण पर आधारित है।
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सुहाग – विवाह गीत -
पत्तलों में परोसा गया डोगरा भोजन -
डोगरा उत्सव -
भाख़ – लोक गीत
विवाह तथा अन्य उत्सवों में एक ख़ास तरह के पत्तों से बनाए गए बर्तनों में खाना परोसा जाता है जिन्हें ‘डूना-पत्तल’ कहते हैं। खाने के व्यंजन पौष्टिकता को ध्यान में रखते हुए तैयार किए जाते हैं। राजमाश, चना दाल, अबंल (कद्दू की खट्टी सब्ज़ी), ख़मीरा (ख़मीर लगी पूरी), राई लगा दही – औरिया, सफ़ेद चावल तथा मीठे में गुड़ वाले चावल यहाँ प्रचलित हैं। खाना विशेष प्रकार के चूल्हों (ढान) पर पकाया जाता है तथा स्वच्छता का यहाँ विशेष ध्यान रखा जाता है। यहाँ का एक ख़ास तरह का पनीर भी प्रसिद्ध है जिसे “कलाड़ी” कहते हैं।
लड़की की शादी में ‘सुहाग’ तथा लड़के की शादी में ‘कोड़ियाँ’ नामक लोकगीत गाने की परम्परा है। पारंपरिक वेशभूषा तथा आभूषणों की सुंदरता देखते ही बनती है।
विभिन्न सांस्कृतिक और सामाजिक क्षेत्रों में डुग्गर समाज के रत्नों ने अपनी सेवा दी है। पद्मश्री बलंवत ठाकुर (दक्षिण अफ्रीका में सांस्कृतिक राजनयिक), पद्मश्री पद्मा सचदेव (कवयित्री), संतूरवादक पंडित शिव कुमार शर्मा, अभिनेता मुकेश ऋषि इत्यादि इसी धरती से सम्बन्ध रखते हैं।
संरक्षण एवं संवर्धन के स्वर
अमूर्त विरासत का यह वैभव आज अपने संरक्षण एवं संवर्धन के लिए संघर्षरत है। डोगरी भाषा संविधान की आठवीं अनुसूची में होने के बावजूद भी अपना अस्तित्व खो रही है तथा ग्रामीण वर्ग तक ही सीमित होती जा रही है। वशेषज्ञों का मानना है कि है सरकारी, गैर सरकारी और सामूहिक संस्थाओं एवं समाज के सहयोग से विरासत की पहचान के लिए एक व्यापक योजना तैयार की जानी चाहिए जिससे कि डोगरा संस्कृति और विरासत को बचाया जा सके। गत वर्ष डोगरा संस्कृति के प्रचार प्रसार हेतु बिक्रम चौक (जम्मू) में जम्मू कश्मीर पर्यटन विकास प्राधिकरण द्वारा आयोजित महोत्सव की लोकप्रियता ने ऐसे आयोजनों की मांग को और हवा दी है जिससे कि व्यापक स्तर पर संस्कृति का प्रचार प्रसार हो सके। समय समय पर सामाजिक स्तर पर डोगरी भाषा के प्रयोग, उत्सवों में सामूहिक भागीदारी, स्कूलों में डोगरी के अध्ययन अध्यापन की पैरवी होती रही है।
पिछले वर्ष भारत सरकार ने जम्मू कश्मीर राजभाषा विधेयक 2020 को पारित कर कश्मीरी, और हिंदी के अतिरक्त डोगरी को भी संघ राज्य क्षेत्र में आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया। परन्तु सामाजिक स्तर भाषा के साथ साथ डोगरा संस्कृति के प्रचार हेतु व्यापक स्तर पर साझेदारी और रचनात्मक योजना की आवश्यकता है।
संपादक: एन के झा
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The revelations about Dogra Culture were really exciting. Congratulations to the author
Interesting facts about Dogra culture. Congratulations to writer. Thanks to my cousin for recommending this story to me.