कोविड-19 महामारी से एक वैश्विक संकट पैदा हो गया है। अचानक से आई इस आपदा के लिए कोई तैयारी नहीं थी। महामारी रोकथाम की नीतियों में भिन्नता, लॉकडाउन, काम और आश्रय की हानि, अस्पतालों में रोगियों की अचानक बढ़ती भीड़, बंद शैक्षणिक संस्थान और ऐसे अन्य व्यवधानों ने मानव जीवन के विकास और मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डाला है। विशेषज्ञों का मानना है कि इन वजहों से महामारी के इस दौर में मानसिक रोगीयों की संख्या में भारी बढ़ोतरी हुई। मानसिक स्वास्थ्य के संकट से किसी भी आयु अथवा वर्ग के लोग अछूते नहीं रहे।
संघर्ष के स्वर
दी वॉइसेस ने कोविड महामारी के कारण गहराते मानसिक स्वास्थ्य संकट के विविध आयाम जानने हेतु मानसिक समस्याओं से पीड़ित लोगों और उनके परिजनों से बात की।
दरभंगा, बिहार की रहने वाली माया देवी (बदला हुआ नाम) 53, की बेटी शमिता (बदला हुआ नाम) ने पंजाब के एक निजी विश्वविद्यालय से कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग की पढाई की। महामारी ने शमिता के कॉलेज में प्लेसमेंट प्रक्रिया को बाधित कर दिया। एक लम्बे इंतज़ार के बाद उन्हें इंटर्नशिप का अवसर तो मिला परन्तु इंटर्नशिप की अवधि पूर्ण होने के बाद, उन्हें कंपनी में स्थायी नियुक्ति नहीं मिल सकी। इस वजह से उनकी माँ, माया देवी परेशान रहने लगीं। और एक समय के बाद माया देवी में अवसाद के लक्षण विकसित हुए। उनके व्यवहार में परिवर्तन होने लगा। परिवार को समझ में नहीं आ रहा था कि केस कैसे संभाला जाए। और तब उनके रिश्तेदारों ने उन्हें मानसिक स्वास्थ्य चिकित्सक से मिलने का सुझाव दिया और प्रारंभिक जांच में मानसिक अवसाद की पुष्टि हुई।
उनकी बेटी बताती हैं, “दिन के अधिकांश समय माँ ने केवल मेरी नौकरी के बारे में चिंताएं ज़ाहिर करतीं और कोविड को शाप देतीं। कुछ पल ऐसे भी आए जब हमने भी खुद को बेबस पाया। लेकिन फिर हमें अपनी भावनाओं को संभालना पड़ा क्योंकि ये उनके उपचार में बाधक सिद्ध होता।” माया देवी ने अपनी सामान्य गतिविधियों को फिर से शुरू कर दिया है, लेकिन 6 सदस्यों वाले उनके परिवार के लिए महामारी के दौर में आर्थिक समस्याओं की छाया एक चिंता का कारण बनी हुई है।
माया देवी के लिए जहाँ अपने बच्चों की रोज़गार संबधी चिंताएं मांसिक स्वास्थ्य संघर्ष का एक दौर ले कर के आयीं, वहीँ इंदौर मध्यप्रदेश की भूमिका देवी (बदला हुआ नाम) के लिए दूसरे लहर की विभीषिका मानसिक अवसाद का कारण बनी। कोविड के कारण अपने चचेरे भाई के निधन की खबर ने उन्हें भीतर तक झकझोर दिया। घटना के एक सप्ताह बाद भूमिका कुछ अधिक असहज रहने लगीं, और मृत्यु के भय ने उन्हें घेर लिया। उनके पति, वरुण झा (बदला हुआ नाम), द वॉइसेस को बताते हैं, “वह बेचैन रहने लगीं। उन्हें डर था कि वह कोविड के कारण अपने परिवार में सभी को खो देंगी। हालात बिगड़ते चले गए और उन्होंने रोज़मर्रा की गतविधियों में भाग लेना पूरी तरह से बंद कर दिया। हम आश्चर्यचकित थे क्योंकि कभी हमारे घर में मानसिक स्वास्थ्य जटिलताओं का ऐसा कोई इतिहास नहीं था।”
ऐसे मामलों में महामारी के दौर में परिवार के अन्य सदस्यों से भी सहायता लेना चुनौतीपूर्ण कार्य होता है। स्वास्थ्य और आवागमन सम्बंधित नियामकों के चलते रिश्तेदार भी बहुत सहज आ जा नहीं सकते। वरुण बताते हैं “ये संभव नहीं था कि किसी रिश्तेदार को यहाँ बुला लिया जाये। पर ये भी आवश्यक था कि उनकी बेहतरी के लिए कुछ किया जाये। हम कार से 1200 किलोमीटर की दूरी तय करके अपने गृह राज्य बिहार चले गए। कोविड से संबंधित समाचारों तक उसकी पहुंच को पूरी तरह से रोक दिया और चिकित्सकों के परामर्श के अनुसार अन्य प्रयास किये। मेरा बेटा छोटा है और उसके लिए भी यह नया और भयभीत करने वाला अनुभव था।”
वरुण का अनुभव एक परिवार के स्तर पर कोविड मौजूदा दौर में मानसिक स्वास्थ्य संकट से संघर्ष की जटिलताओं का एक बयान है। दिल्ली में रहने वाले एक युवा विद्यार्थी शोएब खान (बदला हुआ नाम), 24, से बातचीत में इस संकट के कुछ अन्य आयाम सामने आये। पहले सी ही मानसिक अवसाद से ग्रसित लोगों पर महामारी का प्रभाव और गंभीर रहा। शोएब 2017 में कुछ मामलों के चलते डिप्रेशन का शिकार हो गए थे। स्वस्थ्य सलाहकारों से परामर्श के एक लम्बे दौर के बाद वो बेहतर हो रहे थे और व्यस्त रहने हेतु उन्होंने बच्चों के पढ़ाना शुरू कर दिया। बीएड की पढाई पूरी करते ही वो एक निजी स्कूल में भी पढ़ाने लगे। परन्तु लॉकडाउन उनपर कहर बनकर टूटा। उनकी शिक्षण गतिविधियां, लोगो से मिलना जुलना सब बंद हो गया। अब उनकी बहनें भी साथ में नहीं थी। इन हालातों में दवाइयों पर उनकी निर्भरता अत्यधिक बढ़ गयी और सितम्बर 2020 में एक सामान्य अवसाद ने बाइपोलर डिस्आर्डर, और सिजोफ्रेनिया का रूप ले लिया। इन दोनों बीमारी की उपज शोएब की वह घुटन थी जिसका सामना उनको लॉकडाउन के समय करना पड़ा। अनलॉक होने के बावजूद “फियर ऑफ़ सेपरेशन” आज भी उनके ज़ेहन में कायम है। शोएब कहते हैं “अब कोई बात करना चाहे भी तो बात करने का मन नहीं करता है हर पल फियर ऑफ़ सेपरेशन बना रहता है कि फिर से लॉकडाउन लगेगा और सब मुझे छोड़ के चलाए जाएंगे”
दी वॉइसेस ने जब उनसे उनकी काउंसलिंग के बारे में बात की तो उन्होंने बताया कि फरवरी 2020 के बाद से उनकी काउंसलिंग नहीं हुई है, क्योंकि कोविड की वजह से सारे सेंटर्स बंद हो चुके थे। बहुत लेम समय के बाद ऑनलाइन कॉउन्सिलिंग जैसी सुविधाओं को शुरू किया गया। नॉन कोविड मरीज़ों को स्वास्थ्य सुविधाओं में इस व्यवधान से काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। शोएब उस बड़े वर्ग की महज़ एक आवाज़ हैं।
आंकड़ों की नज़र से…
महामारी से उपजे मानसिक स्वास्थ्य संकट की तस्दीक कई अध्ययनों से भी हुई। हाल ही में एजवेल फाउंडेशन द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, 82.4 प्रतिशत वृद्ध लोगों ने अप्रैल महीने के दौरान कोविड महामारी की दूसरी लहर की वभीषिका के कारण मानसिक स्वास्थ्य संबंधी शिकायतों में अभिवृद्धि की पुष्टि की। 70.2 प्रतिशत बुजुर्ग लोगों ने जहाँ नींद और डरावने स्वप्न सम्बन्धी समस्यों का ज़िक्र किया वहीँ अकेलापन और सामाजिक अलगाव 63 प्रतिशत बुजुर्गों के लिए अवसाद का कारण रहे। इस संबंध में, एजवेल फाउंडेशन के संस्थापक का कहना है कि, “अप्रैल महीने में महामारी की दूसरी लहर के दौरान, अवसाद, चिंता, नींद न आना जैसे मनोवैज्ञानिक समस्याओं के लिए परामर्श /सहायता प्राप्त करने वाले वृद्ध लोगों की संख्या में 50% की वृद्धि हुई। संसाधनों तक पहुंच होने के बावजूद, अधिकांश वृद्ध व्यक्ति, तेजी से फैल रहे कोविड-19 संक्रमण के कारण खुद को असहाय और असुरक्षित महसूस कर रहे थे।”
इस असुरक्षा बोध से कोई भी वर्ग अछूता नहीं रहा। अकेलेपन की त्रासदी, अभिभावकों परिजनों की अकाल मृत्यु और बेरोज़गारी की बढ़ती मार से जूझते युवा वर्ग पर इसका विशेष प्रभाव देखा गया। एक अध्ययन के अनुसार वर्तमान में, भारत में 18-24 वर्ष की आयु के 65% से अधिक लोग अवसाद से पीड़ित हैं। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार यदि भारत मानसिक स्वास्थ्य संकट को रोकने के लिए व्यापक कार्यवायी नहीं करता है, तो भारत के युवाओं पर गंभीर और दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है जो उनकी उत्पादकता को प्रभावित करेगा जिसका सीधा प्रभाव राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर होगा।
विशेषज्ञ की नज़र से
संघर्ष के इस दौर में लोगों ने परामर्श, उपयोगी सुझावों और सूचनाओं, स्वास्थ्य देखभाल के साथ-साथ भावनात्मक समर्थन हेतु मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का रुख किया । मानसिक स्वास्थ्य संकट पर लखनऊ के एमपॉवर स्किल फाउंडेशन की फाउंडर और काउंसलर वर्षा श्रीवास्तव दी वॉइसेस को बताती हैं “महामारी के दौर में उपजी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को एक सूत्र में बांधा जाए तो इसका एक मुख्य कारण है, अकेलापन। जब लोग बाहर निकल रहे होते हैं, लोगो के बिच में उठ-बैठ रहे होते हैं, उनसे बात कर रहे होते हैं, उनके पास करने को काम होता है तो लोग उसमे व्यस्त रहते हैं। कोरोना महामारी के दौरान जब सब एकदम से बंद हो गया तो लोग तनावग्रस्त रहने लगे। अपनों से मिलना, उनसे बातें करना बंद हो गया; आय के स्रोत पर भी प्रभाव पड़ा। अचानक से बंद हुए कामकाज की वजह से लोगो को यह चिंता सताने लगी कि अब घर कैसे चलेगा। सोशल एक्टिविटी में आये व्यवधान से लोग रिजर्व्ड रहने लगे, और धीरे – धीरे तनावग्रस्त होते चले गए।”
समस्या ने निपटने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों ने विभिन्न कदम उठाये। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने काउंसलिंग हेतु एक कॉमन हेल्पलाइन नंबर जारी किया। राज्यों के स्तर पर जहाँ राजस्थान सरकार ने ‘संवाद’ हेल्पलाइन शुरुआत की वहीँ केरल सरकार ने केरल मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत कौंसलर्स की संख्या में व्यापक अभिवृद्धि का निर्णय लिया। विशेषजों की माने तो परिवार, समाज और सरकार की विभिन्न इकाइयों को एक समन्वित और स्थायी योजना पर कार्य करना होगा जिससे कि मानसिक स्वास्थ्य संकट और इसके पीछे के कारणों का समाधान निकाला जा सके।
संपादक: एन. के. झा
2 Comments
Great job, superbly written Ms. Mittu.
“महामारी के दौर में उपजी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को एक सूत्र में बांधा जाए तो इसका एक मुख्य कारण है, अकेलापन। जब लोग बाहर निकल रहे होते हैं, लोगो के बिच में उठ-बैठ रहे होते हैं, उनसे बात कर रहे होते हैं, उनके पास करने को काम होता है तो लोग उसमे व्यस्त रहते हैं। कोरोना महामारी के के दौरान जब सब एकदम से बंद हो गया तो लोग तनावग्रस्त रहने लगे। अपनों से मिलना, उनसे बातें करना बंद हो गया; आय के स्रोत पर भी प्रभाव पड़ा। अचानक से बंद हुए कामकाज की वजह से लोगो को यह चिंता सताने लगी की अब घर कैसे चलेगा। सोशल एक्टिविटी में आये व्यवधान से लोग रिजर्व्ड रहने लगे, और धीरे – धीरे तनावग्रस्त होते चले गए।”
अति सुन्दर व्याख्यान
Congratulations
Mitu (Lko) Ji!
& Nk Jha Ji!!