“शिक्षा के द्वारा ही मानव मस्तिष्क का सदुपयोग किया जा सकता है। अत: विश्व को एक ही इकाई मानकर शिक्षा का प्रबंधन करना चाहिए” – डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
इंटरनेट और ‘डाटा क्रान्ति’ से, पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का उपरोक्त कथन सार्थक हुआ है, इससे विश्व एक इकाई में तब्दील हो गया है। वैश्विक महामारी कोविड काल में जब सारे शिक्षण संस्थान बंद कर दिए गए हैं, तब ऑनलाइन कक्षाओं के ज़रिए विद्यार्थियों तक पहुँचने की कोशिश की गई। छत्तीसगढ़ सरकार ने ‘पढ़ई तुंहर दुआर’ पोर्टल के माध्यम से बच्चों के लिये ऑनलाइन शिक्षा का प्रबंध किया। हालांकि, शासकीय विद्यालयों में ये सारी व्यवस्थाएँ धरातल पर अपेक्षित परिणाम नहीं दे सकी। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार ने ऑनलाइन कक्षाओं के प्रचार-प्रसार के लिये कई अभियान चलाए, इसके बावजूद बच्चे ऑनलाइन कक्षाओं से नहीं जुड़ सके।
ऑफलाइन कक्षाओं के विपरीत सूनी-सूनी ऑनलाइन कक्षाएँ
इस संबंध में रायपुर जिले के दौंदेकला, गरियाबंद जिले के पोंड़ और बस्तर जिले के शिक्षकों से बातचीत करने पर वस्तुस्थिति मालूम हुई। विभिन्न कक्षाओं में विद्यार्थियों की औसत दर्ज़ संख्या 90 है। कोरोना काल से पहले कक्षाओं में विद्यार्थियों की औसत उपस्थिति 90-100 प्रतिशत तक होती थी। ऑनलाइन कक्षाओं में यह घटकर 8-10 प्रतिशत रह गई, इसमें 8-9 से ज्यादा विद्यार्थी शामिल ही नहीं होते थे। कभी-कभी तो हालात ये रहते हैं कि शिक्षक प्रतीक्षा करते रहते हैं और विद्यार्थी नहीं आते। जब छत्तीसगढ़ सरकार ने ऑनलाइन कक्षाएँ आरंभ की थीं, तब उपस्थिति संख्या 15-17 रहती थी। तब उम्मीद जताई गई कि आगे यह संख्या बढ़ेगी, लेकिन उम्मीद के विपरीत ऑनलाइन कक्षाओं में उपस्थिति घटने लगी।
ऑनलाइन कक्षाओं के लिंक छात्रों को भेजने के लिए शिक्षकों द्वारा साझा व्हाट्सएप ग्रुप बनाया गया है। इस ग्रुप में कक्षाओं के लिंक व संदेश भेजने के अलावा शिक्षकों ने छात्रों को निजी संदेश भी भेजे, फोन पर बात करके भी प्रोत्साहित किया। परन्तु स्थिति में कोई विशेष परिवर्तन नहीं हुआ। आमतौर पर गांव के बच्चे और अभिभावक भी बच्चों की पढ़ाई को लेकर बेहद जागरूक हैं। कोविड काल से पहले चाहे तूफान हो या बारिश, बच्चे भीगकर ठिठुरते हुए ही सही, कक्षाओं में पहुँचते थे। इसके विपरीत ऑनलाइन कक्षाओं में शिक्षकों का अनुभव बिल्कुल ही अलग था।
ऑनलाइन कक्षाओं में उपस्थिति में कमी का कारण
शिक्षकों से बात करने पर ऑनलाइन कक्षाओं की कई समस्याएं सामने आयीं। कमज़ोर नेटवर्क के कारण बच्चे कक्षाओं से जुड़ नहीं पाते। यह समस्या सुदूर ग्रामीण अंचलों में और गंभीर हो जाती है । इस तरह डाटा सस्ता होने का कोई खास फायदा उन्हें नहीं मिलता।
दूसरा, गांव में अमूमन परिवार में एक ही फोन होता है, जो घर के मुखिया के पास होता है। इसलिये फोन की अनुपलब्धता बच्चों के लिये बाधक बन जाती है । क्योंकि वे अपने साथ फोन लेकर काम पर चले जाते हैं, कई बच्चे इसलिये भी ऑनलाइन कक्षाओं में नियमित रूप से शामिल नहीं हो पाते। हालाँकि शिक्षकों ने इस समस्या का संज्ञान लेते हुए अभिभावकों की सुविधा के अनुसार भी कक्षा लेने का विकल्प दिया। । ऐसा भी हुआ कि परिवार में एक से अधिक बच्चे हैं, ऐसे में कोई एक ही ऑनलाइन कक्षाओं में उपस्थित हो सकता था।
ऑनलाइन कक्षाओं में बच्चों की अनुपस्थिति का तीसरा कारण कमज़ोर आर्थिक स्थिति रह रही है। कृषकों के बच्चे कृषि लागत कम करने के लिये खुद खेतों में काम करते। जिनके परिवार में खेत नहीं है वो अन्य कार्यों के लिये जाते। अनलॉक के बाद भी कक्षाएँ आरंभ नहीं हुई, लेकिन कई तरह की आर्थिक गतिविधियाँ आरंभ हो गईं। लॉकडाउन के कारण लोगों की आर्थिक स्थिति पर बहुत फर्क पड़ा था। बड़ी कक्षा के विद्यार्थियों ने ऑनलाइन कक्षाओं पर काम को तरज़ीह दी, ताकि वे परिवार की आर्थिक मदद कर सकें।
ऐसा भी नहीं कि ऑनलाइन कक्षाओं का लाभ बिल्कुल नहीं हुआ। बस्तर जिले के शिक्षक मनोज सिंह का कहना था कि किसी-किसी कक्षा में दो सौ से अधिक विद्यार्थी सम्मिलित हुए। ऐसा सीजी स्कूल पोर्टल और ‘पढ़ई तुंहर दुआर’ ऐप के ज़रिये संभव हुआ, जिसमें शिक्षकों द्वारा साझा किये गए लिंक का लाभ विद्यार्थियों ने उठाया। पढ़ई तुंहर दुआर एप और सीजी स्कूल पोर्टल के ज़रिये भौगोलिक सीमाओं से पार पाया गया। विद्यार्थियों के पास प्रदेश के किसी भी जिले की कक्षा में शामिल होने का विकल्प था। हालांकि यह विद्यार्थियों और विद्यालयों की संख्या के मुकाबले बहुत कम था। शिक्षकों के मुताबिक फिलहाल ग्रामीण क्षेत्रों में ऑनलाइन शिक्षा के विस्तार हेतु बहुत ज़्यादा मेहनत करने की ज़रूरत है।
संपादक – एन के झा