शाम के तकरीबन सात बजे का वक्त, रायपुर शहर का जाना माना कैफे नुक्कड़ अपनी चिर-परिचित जगमगाहट से साथ जीवंत नज़र आ रहा था। टेबल पर दो नवयुवा बैठे अपने ऑर्डर का इंतज़ार कर रहे थे। जल्द ही उनका इंतज़ार खत्म हुआ। अस्मिता अपने अंदाज़ में ट्रे के ऊपर पास्ता का सजा हुआ बाउल लेकर आयीं और टेबल पर रख दिया। दोनों ग्राहकों ने पास्ता का आनंद लेना शुरू किया।
उपरोक्त वाकिया देखने-सुनने में एक आम वाकिया लगता है, जो अक्सर रेस्टोरोंट या कैफे में दिखाई दे जाता है। मगर यह आम वाकिया नहीं बल्कि एक खास वाकिया है। युवा जोड़े को पास्ता सर्व करने वाली अस्मिता लड़की नहीं बल्कि किन्नर थीं।
वक्त के साथ किन्नर या ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों के प्रति ज़माने की नज़र बदली है। इसी के साथ उन्हें मुख्यधारा में शामिल करने के प्रयासों में वृद्धि हुई है। ऐसे ही एक प्रयास की अगुवाई रायपुर (छत्तीसगढ़) के चर्चित नुक्कड़ कैफ़े के संचालक प्रियंक पटेल कर रहे हैं।
प्रियंक पटेल का कहना है कि समावेशी और बराबरी का माहौल तैयार करने के उद्देश्य से उन्होंने ट्रांसजेंडर्स को नुक्कड़ की टीम में शामिल किया है। अपने रेस्टोरेंट में उन्होंने उन लोगों रोज़गार दिया जो समाज में हाशिये पर थे। उन्होंने पहले मूक-बधिरों को मौका दिया, और इसी कड़ी में ट्रांसजेंडर लोगों को साथ लेकर आगे बढ़े। उनकी कोशिश इनको मौका देकर मुख्यधारा से जोड़ने की है।
“काफी हद तक हम अपने उद्देश्य में सफल हैं, एक सफल उदाहरण के तौर पर अब लोग हमें देखते हैं। हमारी अपनी झिझक भी दूर हुई है। हम समाज के पूर्वाग्रहों से लड़ रहे हैं, ये लड़ाई लंबी है और बदलाव के लगातार प्रयासों से ही सम्भव हो पाएगी। नुक्कड़ जैसे और ढेरों प्रयोग ही ट्रांसजेंडर समुदाय को मुख्य धारा से जोड़ने में सहायक होंगे” – प्रियंक पटेल (संचालक – नुक्कड़ कैफे, रायपुर)
मुख्यधारा में ट्रांसजेंडर समुदाय के लिये सम्मानित जीवन का विकल्प
इस संबंध में प्रियंक के साथी संचालक टुपेश चंद्राकर ने द वॉइसेज़ को बताया कि उनका एक आउटलेट नेहरू नगर भिलाई में है। जहाँ उन्होंने सबसे पहले ट्रांसजेंडर समुदाय के दो लोगों – चांद और नाज़ को नौकरी दी। शुरू में उनके सामने बहुत मुश्किलें पेश आईं। किन्नरों के बात करने का लहजा कठोर हुआ करता था। कई बार रेस्टोरेंट के विज़िटर सहज नहीं हो पाते थे। तब उन्हें रेस्टोरेंट के माहौल के हिसाब से प्रशिक्षण दिया गया। धीरे-धीरे नए माहौल में वे ढलने भी लगे। हालांकि, चांद और नाज़ अभी नुक्कड़ के साथ नहीं हैं, लेकिन वे दोनों यहाँ से एक सुखद अनुभव लेकर गये।
“ये आर्थिक से ज्यादा एक सामाजिक प्रयोग था। समाज में ट्रांसजेंडर समुदाय को एक सम्मानजनक जगह की तलाश हमेशा से थी। नुक्कड़ ने उनके सामने एक विकल्प बनने की कोशिश की है। निःसंदेह इससे आर्थिक स्वतंत्रता भी मिली है, लेकिन बड़े विचार के रूप में जरूरतमंद तृतीय लिंगी सदस्य हमसे एक सामाजिक सम्मान की तलाश में ही जुड़े हैं” – प्रियंक पटेल (संचालक – नुक्कड़ कैफे, रायपुर)
प्रियंक की तरह टुपेश भी कहते हैं कि तृतीय लिंगी समुदाय के लोग आर्थिक नहीं बल्कि सामाजिक कारणों से उनसे जुड़े हैं। पैसे तो वे बाहर ज्यादा कमा लेते हैं, लेकिन जो पहचान और सामाजिक मान्यता उन्हें नुक्कड़ में आने के बाद मिली, वो किन्नरों के पारंपरिक तरीकों से नहीं मिल सकती थी।
शुरूआती झिझक के बाद खुले दिल से लोगों ने स्वीकार किया
जैसा कि प्रियंक पटेल ने द वॉइसेज़ को बताया, शुरुआत में वे आशंकित थे कि कस्टमर शायद जल्दी सहज न हों। ट्रांसजेंडर समुदाय के प्रति पूर्वाग्रह बहुत नकारात्मक और उपेक्षापूर्ण हैं। नुक्कड़ के प्रयासों से समाज का ध्यान ट्रांसजेंडर समुदाय की खूबियों की तरफ गया, अंततः लोगों ने इन्हें खुले दिल से स्वीकार करना शुरू किया।
इस संबंध में नुक्कड़ के ग्राहकों का कहना है कि पहले ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को नुक्कड़ में देखा तो हैरानी हुई। इसके अलावा उन्हें और कुछ खास महसूस नहीं हुआ, उन्होंने बाकी लोगों की तरह इन्हें भी स्वीकार किया।
नुक्कड़ के ट्रांसजेंडर एम्प्लॉयी अस्मिता ने द वॉइसेज़ को बताया कि वह ग्रैजुएट हैं, उन्होंने कृति इंस्टीट्यूट से बीसीए किया है। अस्मिता ने यह भी बताया कि स्कूल लाइफ में सबसे ज्यादा उन्हें सहपाठियों की उपेक्षा का सामना करना पड़ा था। कॉलेज में यह परिस्थिति उत्पन्न नहीं हुई। नुक्कड़ में आने से पहले अस्मिता ने टीचिंग का काम भी किया। किसी कारणवश इसे वे आगे बढ़ा नहीं सकीं, और बाद में एक उन्होंने एक डेंटल क्लिनिक में काम किया। वहां के साथी स्टाफ का उनके प्रति व्यवहार सम्मानजनक नहीं था जिस कारण उन्हें वह नौकरी छोड़नी पड़ी। ऐसे में जब नुक्कड़ से ज़ुड़ने का मौका मिला तो उन्होंने लपक लिया।
कब बदलेगी ज़माने की नज़र
“शुरू में जब नुक्कड़ जॉइन किया था तो मन डर था कि ग्राहकों के साथ हमारा तालमेल बैठेगा या नहीं बैठेगा? तब प्रियंक सर ने हमसे कहा कि आप भी इन्सान हो, वो भी वही हैं। उनकी बातों से मेरी हिम्मत बढ़ी” – अस्मिता (नुक्कड़ की ट्रांसजेंडर एम्प्लॉयी )
नुक्कड़ में अस्मिता की साथी इलियाना और विशाखा ट्रांसजेंडर एम्प्लॉयी हैं, वे भी नुक्कड़ कैफे में आकर खुश हैं। यहाँ तक पहुँचने से पहले वे प्रताड़नाओं के कई दौर से गुज़रे। उन्हें लोगों का साथ भी मिला मगर नाकाफी था। नुक्कड़ में आने के बाद उनकी स्थिति में बदलाव आया है; अब वो सब कर सकती हैं जिसके लिये पहले उपहास का सामना करना पड़ता था।
उन्हें नुक्कड़ के ग्राहक अजीब नज़रों से नहीं देखते। उनका कहना है कि नुक्कड़ के बाहर भी लोगों की नज़रों में बदलाव आया है। हालांकि उनका यह भी मानना है कि यह पहचान उन्हें नुक्कड़ के कारण मिली है, वरना ट्रांसजेंडर समुदाय के प्रति अब भी लोगों की नज़रों में बड़े स्तर पर बदलाव की आवश्यकता है।
संपादक: एन. के. झा