सत्तारूढ़ जनता दल की विधानसभा उपचुनावों में जीत जीत, पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव की घर वापसी, और भाजपा जदयू सत्ता संतुलन से पोषित बिहार की राजनीतिक गहमा गहमी के बीच बिहार में पंचायती चुनाव जारी हैं। इस बार को खास बात ये है कि इस बार पंचायत चुनाव में केवल वोट देने का प्रतिशत ही नहीं बढ़ा बल्कि चुनावी मैदान में उतरने और जीतने वाली महिलाओं की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है। महिला आरक्षित सीटों से इतर गैर आरक्षित सीटों पर भी अधिक संख्या में महिला उम्मीदवारों का चुनाव लड़ना और विजय प्राप्त करना राज्य में सुर्खियों बटोर रहा है।
स्थानीय पत्रकार मनोज कुमार बताते हैं, “पिछले कुछ वर्षों में बिहार में महिला समाज की राय न केवल स्वतंत्र राजनीतिक राय बन कर के उभरी है बल्कि उनकी राजनीतिक प्रतिभागिता मताधिकार के प्रयोग से आगे बढ़ चली है। वर्तमान सरकार ने कई योजनाएं महिलाओं को ध्यान में रख कर बनायीं। ऐसे में इस समाज का आत्मविश्वास बढ़ा और इनके भीतर खुद को स्वतंत्र पहचान देने की चाह भी। आज भी कई ऐसी महिलाएं हैं जो पारिवारिक दबाव में या परिवार की राजनीतिक परंपरा के कारण चुनावी मैदान में हैं। पर उन महिलाओं की भी संख्या में व्यापक बढ़ोतरी देखी गयी है जो वास्तव में अपनी इच्छा से समाज का प्रतिनिधित्व करना चाहती हैं।”
चुनाव के पहले चरण में ही महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत पुरुषों से नौ प्रतिशत का अधिक रहा। और तो और, पहले दो चरणों में पुरुषों की अपेक्षा अधिक महिलाओं ने नामांकन किया। महिला उम्मीदवारों के जीत के किस्से छाये हुए हैं। कानपुर के ईंट भट्ठे में मजदूरी करने वाली रेखा देवी जमुई की सोहड़ा पंचायत से मुखिया के पद पर निर्वाचित हुईं। वहीं पटना में खुसरूपुर प्रखंड के हरदास बीघा पंचायत से २१ वर्षीय नीतू कुमारी निर्वाचित हुईं जो बीए फाइनल वर्ष की छात्रा हैं। एक अन्य प्रेरक प्रसंग में शादी से ठीक पहले ससुराल वालों के सहयोग उत्साहवर्धन से मात्र 22 साल की खुशबू लखीसराय में जिला परिषद के लिए निर्वाचित हुईं।
गौरतलब है कि बिहार में महिलाओं के लिए पंचायत चुनाव में 50% आरक्षण का प्रावधान है, जो विशेषज्ञों के अनुसार महिला प्रतिभागिता का मुख्य पोषक है। आंकड़ें बताते हैं कि महिलाओं ने इस अवसर का पूरा पूरा लाभ उठाया है। बिहार जेंडर रिपोर्ट कार्ड 2019 के अनुसार बिहार में पंचायती व्यवस्था में ५२% वैधानिक पदों पर महिलाएं काबिज़ हैं।
हाल ही में बिहार चुनाव आयोग ने महिला हेतु आरक्षित सीटों पर प्रत्याशियों के लिए अन्य राज्यों से जारी जाति प्रमाण पत्र को भी नामांकन हेतु वैध करार दिया। अब महिला के पिता की जाति के आधार पर अन्य प्रांत से जारी जाति प्रमाण पत्र भी मान्य होगा। विशेषज्ञों की माने तो चुनाव आयोग के इस फैसले से भी महिला प्रतिभागिता के आंकड़ों को बल मिलेगा। ये खबर उन सभी महिला प्रत्याशियों के लिए राहत की खबर है जिनका मायका बिहार से बहार अन्य राज्यों में है।
पंचायत चुनाव के इस संस्करण में ग्राम पंचायत के मुखिया के 8072 पद, सरपंच के 8072 पद, ग्राम पंचायत सदस्य के 113307 और पंच के 113307 पद, पंचायत समिति सदस्य के 11104 पद और जिला परिषद सदस्य के कुल 1160 पदों का चयन होना है। गौरतलब है कि पंचायती राज चुनाव मई के महीने में निर्धारित थे। कोरोना महामारी की दूसरी लहर के कारण राज्य चुनाव आयोग ने इसे टाल दिया था। 24 अगस्त 2021 को बिहार चुनाव आयोग ने त्रिस्तरीय पंचाट चुनाव की अधिसूचना जारी की। 3 नवंबर 2021 को 11 चरणों में होने वाले इस चुनाव के छटे चरण का मतदान संपन्न हुआ। 12 दिसंबर 2021 को २० जिलों के 38 प्रखडों में मतदान के साथ ही यह चुनाव संपन्न होगा।
वर्तमान पंचायत चुनाव के सम्बन्ध में अत्यंत रोचक तथ्य तो ये है कि इस चुनाव में दिल्ली के मशहूर कॉलेज मिरांडा हाउस जैसे कॉलेज से पढ़ी हुई युवतियां जो मल्टीनेशनल कंपनी में काम कर चुकी हैं वे भी अपनी दावेदारी पेश कर रही हैं।
बिहार राज्य के सीतामढ़ी जिले के सोनबरसा के बिशनपुर गोनाहि से ताल्लुक रखने वाली और मुखिया के पद के लिए उम्मीदार प्रियंका ऐसी ही एक उम्मीदवार हैं।
साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाले प्रियंका के लिए प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करना किसी पहाड़ की चढाई से कम न था। परिवार ने जब आर्थिक सहयोग देने से मना कर दिया तो प्रियंका ने ट्यूशन पढ़ाकर अपनी शिक्षा जारी रखी। आठवीं कक्षा में ही उनके परिवार ने उनका विवाह करना चाहा। अपने भाई विशाल के सहयोग से उन्होंने विवाह को टाला, आगे की पढाई संपन्न की और दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस में दर्शनशास्त्र में स्नातक हेतु दाखिला लिया। इसी दौरान उन्हें देश की पहली एमबीए डिग्री धारक महिला सरपंच छवि राजावत के विषय में पता लगा। यही से उन्होंने मुखिया बनने की प्रेरणा हासिल की और मौजूदा पंचायती चुनाव में नामांकन भरा।
महिलाओं के मनोबल को बढ़ाती हुई ऐसी ही कहानी 31 वर्षीय डॉली की भी है। डॉली बिहार के गया जिले में शादीपुर पंचायत से सरपंच पद की उम्मीदवार हैं।
डॉली दी वॉइसेस को बताती हैं “मैंने सिम्बायोसिस इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी, पुणे से एमबीए किया है। 2018 से पहले मैंने बहुत सारे कॉरपोरेट के क्षेत्र में काम किया और काफी अनुभव हासिल किया। ग्रामीण जीवन की समस्याओं के प्रति मैं अत्यंत चिंतित रहती थी। इसलिए ग्रामीण क्षेत्र में बदलाव लाने के लिए मैंने अपना सेटल्ड कैरियर छोड़ गाँव की ओर रुख किया।” गौरतलब है कि उनके क्षेत्र में आने वाली कचहरी बिहार की सबसे प्रथम डिजिटलाइज्ड ग्रामीण कचहरी बनी जिसे पूरे जिले में सर्वश्रेष्ठ ग्रामीण कचहरी का दर्जा भी मिला।
पश्चिम बंगाल पर आधारित 2003 के एक अध्ययन के अनुसार महिला प्रधान द्वारा संचालित गावों में शिकायत की सुनवाई की सम्भावना (पिछले छह माह में) उन गावों के दोगुनी पायी गयी जहाँ पुरुष प्रधान रहे। विशेषज्ञों ने ग्रामीण सामाजिक व्यवस्था में महिला प्रतिभागिता के क्रांतिकारी आयामों की परिकल्पना में असंख्य वृत्तांत लिखे हैं। परन्तु सभी का मानना है कि इस प्रतिभागिता के सकारात्मक परिणामों को देखने के लिए आवश्यक है कि महिलाएं सत्ता की नामांकित केंद्र से बढ़कर वास्तविक केंद्र बनकरके उभरें। बिहार जैसे राज्य में महिला प्रतिनिधि की आड़ में परिवार के पुरुष सदस्यों की मनमर्ज़ियों की चर्चाएं प्रचलित रही हैं।
संपादक: एन के झा