हाल ही में संसद में , महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी द्वारा बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक, 2021 पेश किया गया। इस विधेयक में लड़कियों की शादी की उम्र 18 से 21 करने के लिए बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 और इससे संबंधित अन्य अधिनियमों (भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम-1872, पारसी विवाह और तलाक अधिनियम-1936, विशेष विवाह अधिनियम-1954 की धारा 4(c), हिंदू विवाह अधिनियम-1955, हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षणकर्ता अधिनियम-1956, हिंदू दत्तक ग्रहण और रखरखाव अधिनियम-1956, विदेशी विवाह अधिनियम-1969) में संशोधन का प्रस्ताव पारित किया गया है।
कानून क्या कहता है?
भारतीय दंड संहिता-1860 की धारा 375 में 18 वर्ष से कम लड़की से सहवास को बलात्कार माना गया था। बाल विवाह प्रतिबंध अधिनियम-1929 में लड़कियों के शादी की न्यूनतम आयु 14 वर्ष निर्धारित की गई थी । 1940 में बाल विवाह प्रतिबंध अधिनियम में संशोधन कर, शादी की उम्र 15 वर्ष कर दी गयी। साथ ही धारा 375 को भी संशोधित करके सहमति से सहवास (ऐज ऑफ़ कन्सेंट ) की उम्र 16 वर्ष कर दी गई। बाल विवाह अधिनियम-1929 को 1978 में पुनः संशोधित किया गया, जिसे शारदा एक्ट के नाम से भी जाना जाता है। इस संशोधन में लड़कियों की शादी की न्यूनतम आयु को बढाकर 18 वर्ष कर दी गई और लड़कों की शादी की न्यूनतम आयु 21 वर्ष निर्धारित कर दी गई।
2006 में उच्चतम न्यायालय में, दिल्ली राज्य महिला आयोग और राष्ट्रीय महिला आयोग के द्वारा एक रिट याचिका दायर की गई। जिसमें ‘बालिग’ की परिभाषा की विसंगतियों को न्यायालय से स्पष्ट करने का अनुरोध किया गया। याचिका में कहा गया कि भारतीय बहुमत अधिनियम और किशोर न्याय (देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000 के अनुसार 18 वर्ष से कम के सभी लोग बालिग हैं, जबकि बाल विवाह निरोध अधिनियम-1929 और हिंदू विवाह अधिनियम-1955 की धारा 5 (c) लड़की को 18 और लड़के को 21 वर्ष की उम्र में, वयस्क मानता है। यद्यपि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 में ऐज ऑफ़ कंसेंट 16 वर्ष को माना गया है, जबकि शरीयत में शादी की उम्र 15 वर्ष मानी गयी है। सभी कानूनों में ‘बालिग’ की आयु और ऐज ऑफ़ कंसेंट की आयु में अंतर है। याचिका में न्यायालय से सभी कानूनों में संशोधन करके वयस्क की परिभाषा को एकसमान करने के लिए सरकार को आदेश देने के लिए कहा गया। इसके परिणामस्वरूप सरकार ने बाल विवाह निषेध अधिनियम -2006 पारित किया।
जया जेटली की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिशों को सरकार ने स्वीकार कर बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक, 2021 को क़ानूनी मंजूरी के लिए संसद में पेश किया है, फिलहाल यह विधेयक चर्चा के लिए संसदीय समिति को सौंप दी गई है।
बाल-विवाह और उसके प्रभाव
बाल विवाह एक ऐसी प्रथा है जो एक बच्चे से उसके सारे अधिकार छीन लेती है। यह एक सदियों पुरानी सामाजिक बुराई है जो हमारे समाज में आदि-काल से प्रचलित है। 2011 की जनगणना के बाल विवाह संबंधित आंकड़ो के अनुसार हर तीन विवाहित महिलाओं में से लगभग एक की शादी तब हुई जब वह 18 साल से कम उम्र की थी। 2011 तक 78.5 लाख लड़कियों की शादी 10 साल की उम्र से पहले कर दी गई थी, यह आंकड़ा उन सभी महिलाओं या लड़कियों का 2.3% है जिनकी कभी शादी हुई थी।
दी वॉइसेस की टीम ने इस मुद्दे पर बिहार के विभिन्न जिलों के विभिन्न वर्ग की लड़कियों, महिलाओं, शिक्षाविदों, विशेषज्ञों के विचारों को जानने का प्रयास किया है।
अनुग्रह नारायण स्मारक कॉलेज, नवीनगर, औरंगाबाद(बिहार), के मनोविज्ञान के प्रोफेसर डॉ ऋतिक ने द वॉइसेस को बताया कि बाल विवाह एक समाजिक बुराई है, जिसके प्रचलन से लड़कियों के विभिन्न अधिकारों पर प्रभाव पड़ता है।
प्रोफेसर डॉ ऋतिक के अनुसार बाल-विवाह के पीछे पृतसत्तात्मक मानसिकता जिम्मेदार है। वे बताते हैं कि बाल-विवाह कम दहेज़ में हो जाता हैं। बहुत से माता-पिता ये मानते हैं कि कम उम्र में शादी से लड़कियों के कौमार्य की सुरक्षा होती है।
“ग्रामीण पृष्ठभूमि के लोगों में अशिक्षा अभी भी बहुत ज्यादा है। उन्हें लड़कियों की शारीरिक परिपक्वता की उम्र की समझ नहीं होती। इसके पीछे एक कारण ये भी होता है कि बेटे की चाहत में ग्रामीण दंपति एक से अधिक बच्चियों को जन्म देते हैं। उनकी आय कम होने के कारण, सिर्फ उत्तरदायित्व पूरा करने के लिए, कम उम्र में ही लड़कियों की शादी कर देते हैं।”
डॉ. रजनीश चंद्र (मोतिहारी, बिहार)
प्रोफेसर ऋतिक कहते हैं कि बाल विवाह प्रथा को बढ़ावा देने के पीछे सबसे बड़ी वजह है, बहुत से माता-पिता को इसके हानिकारण प्रभाव का ज्ञान नहीं होता है।
“ग्रामीण स्तर पर लड़के और लड़कियों की शादी की उम्र में भी काफी अंतर देखा जाता है। लड़की की कम उम्र होने के कारण उसके ऑर्गन पूर्ण रूप के विकसित नहीं होते, शादी होने के बावजूद पति द्वारा उसकी इच्छा के विरुद्ध व्यवहार किया जाता है। इसका असर उस पर न सिर्फ़ शारीरिक बल्कि मानसिक रूप से भी होता है।”
डॉ. रजनीश चंद्र (मोतिहारी, बिहार)
‘बाल विवाह के कारण लड़कियों का संपूर्ण शारीरिक विकास नहीं हो पाता। यह मातृत्व मृत्यु दर में वृद्धि का एक कारण है। कम उम्र की माताओं के गर्भ से जन्म लेने वाले बच्चे कमजोर होते हैं और बहुत सी बीमारियों के शिकार होते हैं”
डॉ ऋतिक, प्रोफेसर – मनोविज्ञान विभाग, अनुग्रह नारायण स्मारक कॉलेज, नवीनगर, औरंगाबाद, बिहार
स्वास्थ्य मंत्रालय के नमूना पंजीकरण प्रणाली 2018 के अनुसार, अखिल भारतीय स्तर पर 2018 में शिशु मृत्यु दर 32 प्रति 1000 जीवित बच्चे है। स्वास्थ्य मंत्रालय के रिपोर्ट के अनुसार भारत में मातृ मृत्यु अनुपात 113 है। असम 215 मातृ मृत्यु अनुपात के साथ देश में शीर्ष स्थान पर है।
मेरे पास एक 16 वर्षीया शादी-शुदा मरीज आयी, उसकी आंत में छेद हो गया था। गांव के झोला छाप डॉक्टर ने उसकी सर्जरी द्वारा प्रसव करवाया था। उसे सेप्टीसीमिया हो गया था, उसे पटना रेफर करना पड़ा, लेकिन उसे बचाया नहीं जा सका। जागरूकता में कमी के कारण उस मरीज़ को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। कहीं न कहीं कम उम्र में विवाह उसकी मौत का कारण बना।”
डॉ. रजनीश (मोतिहारी, बिहार)
मनोविज्ञान के प्रोफेसर डॉ ऋतिक के अनुसार कम उम्र में शादी करने से लड़कियों में अवसाद, चिंता, शर्मीलेपन और अधिक जिम्मेदारियों के कारण समाज से अलगाव जैसी समस्याएँ देखने को मिलती है।
प्रोफेसर ऋतिक कहते हैं, सरकार के फैसले से लड़कियों को भी अपनी पढाई पूरी करने का मौका मिलेगा। शारीरिक और मानसिक रूप से उनका सशक्तिकरण होगा। जिससे समाज में उनकी भागीदारी में वृद्धि होगी, साथ ही उनकी कार्यकुलता से परिवार के निर्णय में उनकी अहमियत बढ़ेगी, इससे लैंगिक असमानता कम होगी।
बुलंदशहर के गिरौरा निवासी, रविंद्र कुमार बताते हैं कि सरकार द्वारा लिया गया निर्णय अच्छी पहल है, लेकिन उनका कहना है कि इसका लाभ उच्च और मध्यम वर्ग के लोगों को ही होगा।
“मेरे गाँव में अल्पसंख्यक वर्ग के लोग आज भी अपनी लड़की की शादी कम उम्र में करते हैं। अशिक्षा को इसका सबसे बड़ा कारण माना जा सकता है।”
रविंद्र कुमार, गिरौरा(जिला बुलंद शहर, उप्र)
बिहार के पश्चिम चम्पारण से लक्की पांडेय बताती हैं कि कम उम्र में शादी आज भी समाज में प्रचलित है खासकर हमारे राज्य में, इसके पीछे सबसे बड़ा कारण लड़की को पराया धन मानने की परम्परा का आज भी चलन है। दूसरा कारण अशिक्षा और तीसरा कारण गरीबी।
मोतिहारी की ब्यूटी पांडेय जो एक माध्यम वर्गीय परिवार से हैं, उनसे जब सरकार के इस निर्णय के बारे में बात हुई तो उनका मत कुछ अलग था। उन्होंने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि बिहार सरकार द्वारा महिलाओं के लिए सरकारी नौकरियों में अलग से 35% आरक्षण का प्रावधान किया गया है। उनका कहना है कि इस कारण आज गरीब भी अपनी बेटी को पढ़ाना चाहता है।
“लोग आज भी एक घटिया मानसिकता को मानते है कि ‘बेटी ज्यादा पढ़-लिख लेगी तो ,ज्यादा बढ़ा-लिखा लड़का खोजना पड़ेगा और ज्यादा पढ़ा-लिखा लड़का ज्यादा दहेज़ की मांग करेगा।”
ब्यूटी पांडेय(मोतिहारी, बिहार)
ब्यूटी पांडेय ने पूछने पर द वाइसेज़ को बताया कि उन्होंने कम उम्र में होने वाली बहुत सी शादियाँ देखी हैं।
“जब मैं सातवीं क्लास में पढ़ती थी तो मेरे साथ की एक लड़की की शादी हो गई थी। जब वो मां बनी तो उसके शरीर में खून की कमी हो गई और उसकी मृत्यु हो गई। आज भी कम उम्र में शादी होती है और लड़कियों के शरीर के साथ खिलवाड़ होता है। बहुत लडकियाँ तो मां बनते ही मर जाती हैं।”
ब्यूटी पांडेय (मोतिहारी, बिहार)
उनके अनुसार समाज में आज भी 75 प्रतिशत माता-पिता को ये लगता है कि बेटी बोझ (उत्तरदायित्व) और बेटा कुल का दीपक है, इसलिए बेटी की जल्दी शादी करके गंगा नहा लो। हालांकि उनका ये भी मानना है कि 25 प्रतिशत माता-पिता मानते हैं कि बेटी बोझ नहीं हैं और हमारे विरासत को ये भी बढ़ा सकती हैं।
नरकटियागंज से वंदना मिश्रा बताती हैं कि उनके साथ की कई लड़कियों की शादी कम उम्र में और उनकी मर्जी के बिना ही हो गई हैं। उनको पढ़ने का मन था लेकिन घरवालों ने इच्छा के विरुद्ध शादी कर दी। उनके घरवालों के अनुसार, आज अच्छा लड़का मिल रहा है, कम दहेज में ही बात बन जाएगी।
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के द्वारा जारी जिला स्तरीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण (DLHS) -3 (2007-2008),के आंकड़ों से भी इस बात की पुष्टि होती है कि बिहार बाल-विवाह के मामले में शीर्ष राज्य (68.2%) है। लोकसभा में राज्य मंत्री (स्वास्थ्य और परिवार कल्याण),अश्विनी कुमार चौबे ने एक लिखित जवाब में, बिहार में मातृत्व मृत्यु दर जो कि 2014 में प्रति 1000 पर 165 थी, 2016-18 में 149 है, होने की पुष्टि की।
दिल्ली की जैनब फातिमा सरकार के इस फैसले को सही मानती हैं।
“सरकार को कम उम्र शादी के दुष्प्रभावों का प्रचार करना चाहिए ताकि उनके जैसी लडकियों को पढ़ने का मौका मिल सके।”
जैनब फातिमा(दिल्ली)
अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (IFPRI) द्वारा किये गए शोध से, जिसका प्रकाशन 2019 में हुआ था, पता चला है कि किशोर माताओं (10-19 वर्ष) से पैदा हुए बच्चों में, वयस्क माताओं (20-24 वर्ष) से पैदा हुए बच्चो के मुकाबले, 5 प्रतिशत अधिक बौनापन देखा गया है। यूनिसेफ के अनुसार, भारत में प्रत्येक वर्ष 1.3 मिलियन लड़कियों की शादी 18 वर्ष से कम उम्र में हो जाती है।
बिहार के चंपारण क्षेत्र के बेतिया व मोतिहारी की लड़कियाँ इस नए कानून को अपने लिए अनुकूल मानती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इस फैसले का प्रचार किया जाना चाहिए, ताकि अधिक से अधिक लोगों तक जानकारी पहुँचे। कानून के उलंधन पर त्वरित कार्यवाही की व्यवस्था भी होनी चाहिए। अब यह देखना है कि आने वाले समय में इस कानून से महिलाओं के जीवन में क्या और कितना परिवर्तन आता है।
संपादक – शिज्जु शकूर