कश्मीर के मशहूर शिकारे जिस पानी में तैरते हैं, अब वो मुश्किल में है। जैव विविधताओं से समृद्ध, कभी पर्यटकों की आकर्षण का केंद्र रही, कश्मीर के रामसर क्षेत्र में स्थित वूलर झील मानवनिर्मित समस्याओं की बीच अपनी खूबसूरती खो रही है। इस मौजूदा संकट का कारण झील के किनारे नगरपालिका द्वारा अनुपचारित ठोस कचरे की लापरवाही भरी डंपिंग है।
“इन सबकी शुरूआत कोविड-19 महामारी के दौरान मार्च 2020 में लगाए गए लॉकडाउन के दौरान हुई, जब नगर निगम, सोपोर ने सोपोर शहर से एकत्र किए गए ठोस कचरे को वुलर झील के किनारे डंप करना शुरू किया।”
ऐजाज़ अहमद डार, सदस्य – केंद्रीय औक़ाफ़ समिति तार्ज़ू, सोपोर
वुलर झील 30 ग्रामों से घिरी हुई है जिनकी संयुक्त जनसंख्या लगभग 3.5 लाख है, इन गांवों में 52265 परिवार रह रहे हैं। इन क्षेत्रों से ठोस कचरे के संग्रहण, पृथक्करण और निपटान की ज़िम्मेदारी मुख्य रूप से दो नगरीय निकाय- बांदीपोरा नगर निगम समिति और सोपोर नगर निगम समिति के ऊपर है। हाल के दिनों में, दोनों स्थानीय प्राधिकरणों को कचरों के कथित असुरक्षित डंपिंग के बारे में बार-बार कहा गया, जिसकी वजह से झील और उस पर निर्भर पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक बड़ा खतरा उत्पन्न हो रहा है।
वुलर झील
केंद्रशासित प्रदेश कश्मीर के उत्तरपूर्वी जिलों बांदीपोरा और बारामुला में स्थित वुलर झील झेलम नदी के बहाव से निर्मित घोड़े की नाल के आकार की झील है। 1986 में भारत सरकार द्वारा वुलर झील को ‘वेटलैंड’ कार्यक्रम के तहत राष्ट्रीय महत्व के ‘वेटलैंड’ के रूप में मान्यता दी गई थी।
‘वेटलैंड’ वो विशेष निर्धारित क्षेत्र हैं, जहाँ प्राणी एवं पादप जीवन सहित आसपास का वातावरण पानी की उपस्थिति द्वारा शासित होता है। वेटलैंड का उभार आमतौर पर वहाँ देखा जाता हैं, जहाँ जल स्तर भूमि की सतह के करीब होता है या फिर थलीय क्षेत्र उथले पानी से घिरा होता है। अक्सर वेटलैंड को ‘पृथ्वी का गुर्दा’ कहा जाता है, क्योंकि अपशिष्ट यौगिकों से नाइट्रोजन और फॉस्फोरस को अवशोषित करने के अलावा, वेटलैंड भूमि में पर्याप्त मात्रा में पानी को रोककर रखते हैं। इस तरह ये नम दिनों में बाढ़ से और सूखे मौसम में अकाल से क्षेत्र को बचाने में सहायता करते हैं।
इस संघशासित प्रदेश की डायरेक्टरी में कुल 565 झीलें/वेटलैंड सूचीबद्ध किए गए हैं। इनमें से तीन कश्मीर खंड की होकरासर और वुलर झील और जम्मू खंड की सुरिनसर-मानसर झील रामसर क्षेत्र की सूची में हैं। रामसर सूची का उद्देश्य वेटलैंड का विकास और रखरखाव है, जो पारिस्थितिक तंत्र और संबद्ध लाभकारी प्रक्रियाओं को बनाए रखते हुए वैश्विक जैविक विविधता के संरक्षण और मानव जीवन की आजीविका के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय वेटलैंड दिवस पर, 2 फरवरी, 2022 को दो और वेटवैंड- खिजाड़िया पक्षी अभयारण्य, गुजरात और बखीरा वन्यजीव अभयारण्य, उत्तर प्रदेश को रामसर की तरह रामसर सचिवालय से मान्यता मिली है। इसके साथ ही भारत के रामसर क्षेत्र में वेटलैंड की संख्या 49 हो गई है। वेटलैंड के संरक्षण को लेकर उठाए गए इन कदमों से परे, वुलर जैसे मौजूदा वेटलैंड की असुरक्षित स्थिति एक अलग कहानी बयाँ कर रही है।
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वुलर झील को संकट से बचाने के प्रयास
पर्यावरण कार्यकर्ता डॉ. राजा मुज़फ़्फ़र भट ने द वॉइसेज़ को बताया-
“वुलर लेक को वर्ष 1990 में रामसर सम्मेलन में संरक्षित क्षेत्र के रूप में निर्दिष्ट किया गया है। क्षेत्र में हाल के कचरा प्रबंधन संबंधी कार्यकलाप जीवन शक्ति के अनुकूल नहीं है। नगर निगम, बांदीपोरा और नगर निगम सोपोर ने नुसरू ज़लवान क्षेत्र(उत्तर-पूर्वी तटीय क्षेत्र) और तार्ज़ू(पश्चिमी तटीय क्षेत्र) को कचरे के निपटान के लिए चुना है। उनके तरीकों से सिद्ध होता है कि नगर निगम ठोस अपशिष्ट नियम 2016 और वेटलैंड संरक्षण नियम 2017 का उल्लंघन हो रहा है।”
रामसर सम्मेलन सरकारों के बीच हुई है एक संधि है जिसे 2 फरवरी, 1971 को रामसर, ईरान में अपनाया गया। इसके अनुसार, किसी भी सदस्य देश को वेटलैंड के संरक्षण और विवेकपूर्ण उपयोग के लिए सामूहिक अंतरराष्ट्रीय प्रयासों का हिस्सा बनना होगा। वर्तमान में, 171 राष्ट्र ने रामसर सम्मेलन के तहत संधि पर हस्ताक्षर किए हैं।
वुलर झील के अंतर्राष्ट्रीय महत्व को देखते हुए वर्ष 2012 में जम्मू-कश्मीर सरकार द्वारा इसके संरक्षण और बचाव के लिए वुलर संरक्षण और प्रबंधन प्राधिकरण (वुकमा) का गठन किया गया।
जलग्रहण क्षेत्र के उपचार परियोजना, वुकमा के परियोजना सह-समन्वयक मुदासिर महमूद मलिक ने द वॉइसेज़ से हालिया संकट के संदर्भ में बात की और वुलर के संरक्षण के लिए मूल चुनौतियों के बारे में बताया।
“वुलर झील झेलम नदी द्वारा पोषित बेसिन है। श्रीनगर झेलम नदी में निपटाया गया कचरा अंततः वुलर झील तक पहुंच जाता है, इसमें जो शामिल है उसका बड़ा महत्व है। मगर स्थानीय कचरा प्रबंधन भी यहाँ महत्व रखता है।”
मुदासिर महमूद मलिक, परियोजना सह-समन्वय, जलग्रहण क्षेत्र उपचार, वुकमा
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झील के पास डंपिंग क्षेत्रों को बंद करने के मुद्दे पर एक गहरे कानूनी संघर्ष में वुकमा भी एक पक्ष रहा है। मुदासिर मलिक कहते हैं-
“ठोस कचरा प्रबंधन नियम 2016 और वेटलैंड प्रबंधन नियम 2017 के उल्लंघन के लिए पर्यावरण कार्यकर्ता डॉ. राजा मुज़फ़्फ़र भट्ट ने दोनों नगर निगमों के विरुद्ध नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में मुकदमा दाखिल किया था। 2010 में . वुकमा ने तार्ज़ो में झील के आसपास डंपिंग साइट से संबंधित मामले में जम्मू एंड कश्मीर उच्च न्यायालय के समक्ष एक हलफनामा दाखिल किया था। इसके बाद उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल द्वारा क्षेत्र का दौरा किया गया, जिन्होंने डंपिंग क्षेत्र को बंद करने का आदेश दिया था। इसके जवाब में, नगर निगम बांदीपोर और नगर निगम सोपोर ने दोनों डंपिंग क्षेत्रों- ज़लवान (बांदीपोर) और तार्ज़ू (सोपोर), को बंद किए जाने की पुष्टि करते हुए क्लोज़र रिपोर्ट दाखिल की।”
बांदीपोरा नगर निगम ने वुकमा को सूचित करते हुए बताया कि वर्तमान में बांदीपोरा जिला प्रशासन द्वारा बांदीपोरा के पास उपलब्ध कराए क्षेत्र में कचरा डंप कर रहे हैं, जो कि झील की परिधि से लगभग 1650 फीट दूर है। इसी सूचना में उल्लेख किया गया है कि नगर निगम व जिला प्रशासन द्वारा निरंतर डंपिंग क्षेत्र के रूप में विकसित करने के लिए मादर कुनान, बांदीपोरा में भूमि की पहचान कर ली गई है।
सोपोर के अतिरिक्त उपायुक्त परवेज़ सज्जाद गनी ने इस मुद्दे पर नगर निगम का पक्ष स्पष्ट करते हुए द वॉइसेज़ को बताया-
“हालांकि यह डंपिंग क्षेत्र झील के पास नहीं, फिऱ भी पर्यावरण कार्यकर्ता और वुकमा ने इसे बंद करने की माँग की है। न्यायालय के निर्देशों का पालन करत हुए हमने झील के पास के डंपिंग क्षेत्र को पहले ही बंद कर दिया है और अस्थायी रूप से निंगली वन रेंज में एक क्षेत्र की पहचान की है। लैंडफिल साइट के रूप में विकसित करने के लिए हमने परिवेश पोर्टल के माध्यम से 19 कनाल वन्य भूमि की प्राप्ति हेतु मांगपत्र दाखिल किया है”
हालांकि, अस्थायी रूप से पहचान किए गए क्षेत्र को भी अलग-अलग विषयों पर चुनौती दी जा रही है।
“निंगली वन रेंज पिछले डंपिंग साइट से सिर्फ 1 किलोमीटर दूर है। वन मार्ग, जहाँ पर कचरा डंप किया जा रहा है, वह एक पंचायत भूमि है और ग्रामीण विकास विभाग के कार्यक्षेत्र में आता है।”
इश्फाक़ अहमद डार, अध्यक्ष- युवा फोरम, तार्ज़ू, सोपोर
नए डंपिंग क्षेत्र के दायरे में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भी है। पीएचसी सोपोर के डॉ. तनवीर हुसैन ने द वॉइसेज़ को बताया कि यह डंपिंग क्षेत्र स्थानीय लोगों के लिए स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ उत्पन्न कर सकते हैं।
डंपिंग क्षेत्र के विरुद्ध जनहित याचिका दायर करने वाले वकील शफ़क़त हुसैन, जिन्होंने जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को क्षेत्र के निरीक्षण के लिए प्रेरित किया था, से द वॉइसेज़ की टीम ने बात की।
“निंगली वन्य रेंज इकलौता वन्य रेंज है जहाँ विलो पेड़ पाए जाते हैं। यह जंगल पंचायत भूमि से लगा हुआ है जो वन मार्ग का निर्माण करता है। यह वो इलाका है जिसके आसपास प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, एक ईदगाह, धान के खेत और एक जलधारा है। इस संबंध में हमने एक हलफ़नामा जम्मू एवं कश्मीर उच्च न्यायालय में दाखिल किया और इस डंपिंग साइट को बंद करने का अनुरोध किया है”
शफ़कत हुसैन
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वैटवैंड में संकट का कारण
राज्य पर्यावरण नीति 2018 के तहत पर्यावरण विभाग, पारिस्थितिकी और सदूर संवेदन, जम्मू एवं कश्मीर द्वारा तैयार किए गए मसौदे के अनुसार, वेटलैंड पारिस्थितिकी में हो रहा नुकसान प्रमुख पर्यावरण संबंधी चुनौती है जिसका सामना वर्तमान में यह संघ शासित प्रदेश कर रहा है। वुलर झील में यह संकट अनेक संकटों में से महज़ एक है।
विशेषज्ञों का कहना है कि वेटलैंड की जर्जर स्थिति के पीछे अतिक्रमण भी एक बड़ा कारण है। जम्मू एवं कश्मीर के पर्यावरण विभाग के वैज्ञानिक माजिद फारूक़ कहते हैं-
“अतिक्रमण वेटलैंड की बाढ़ अवधारण क्षमता को कमज़ोर कर देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप आसपास के क्षेत्र के जान और माल के लिए बड़ा खतरा उत्पन्न हो जाता है। मौसम की अनिश्चितता ने भी संकट को और बढ़ा दिया है।”
उन्होंने आगे कहा-
“पर्यावरण विभाग ने वेटलैंड का संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए नीतिगत हस्तक्षेपों की श्रृंखला का विस्तार किया है, जिसका क्रियान्वयन प्रदूषण नियंत्रण मंडल एवं संबद्ध सुरक्षा बलों द्वारा किया जाना है। मगर फिर भी इस समस्या की प्रकृति है ऐसी है कि ये पूर्ण रूप से किसी विशेष विभाग के कार्यक्षेत्र में नहीं आते हैं, इसलिए परिणामस्वरूप नीतियों को लागू करना एक कठिन काम है।”
यद्यपि, जम्मू एवं कश्मीर प्रदूषण नियंत्रण मंडल(जेकेपीसीबी) इस समीकरण में स्वयं को सलाहकार निकाय के रूप में रखता है। मंडल के अनुसार, वर्तमान में संघशासित प्रदेश जम्मू एवं कश्मीर में ठोस अपशिष्ट के संग्रहण, पृथक्करण और निपटारे के लिए 42 स्थानीय निकाय संचालित हैं। इसके बावजूद लगातार असुरक्षित डंपिंग की समस्या बनी हुई है।
जम्मू एवं कश्मीर प्रदूषण नियंत्रण मंडल की वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं ठोस अपशिष्ट प्रबंधन प्रभारी डॉ. सबीना ने द वॉइसेज़ से बातचीत के दौरान कानूनी कार्यवाही की पुष्टि की-
“नगर निगम के ठोस कचरे के डंपिंग के तहत अपराधों के संबंध में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के नवीनतम दिशानिर्देशों के अनुसार, हमने नगर निगम बांदीपोरा और नगर निगम सोपोर पर पर्यावरण क्षतिपूर्ति के रूप में 64.21 लाख रूपए और 130.46 लाख रूपए का जुर्माना लगाया है।”
फिर भी, डॉ. सबीना का विश्वास है कि जुर्माना लगाना इस संकट का स्थायी इलाज नहीं है। वह कहती हैं-
“केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा निर्धारित मानदंडों के अनुसार डंपिंग साइटों की पहचान करने की आवश्यकता है। साथ ही डंपिंग क्षेत्रों में एकीकृत सुविधाएँ स्थापित की जानी चाहिए जहाँ जैविक कचरे को एक ऑटो-कम्पोस्ट संयंत्र में संसाधन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। यहाँ अजैविक कचरे को, जो कि संकट का वास्तविक कारण है, क्योंकि अब तक कोई उपचार उपलब्ध नहीं होने के कारण यह निष्क्रिय अपशिष्ट में बदल जाता है, इसे री-सायक्लिंग कर पुनः उपयोग में लाया जा सकता है।”
डॉ. सबीना रास्ते में आने वाली बाधाओं को भी स्वीकार करती हैं, उनका कहना है-
“डंपिंग साइट की पहचान करना एक मुश्किल काम है क्योंकि इसे समाज के सभी वर्गों की नाराजगी का सामना करना पड़ता है।”
ठोस कचरे को संभालने के लिए उचित कचरा निपटान क्षेत्र और आधुनिक प्रौद्योगिकी द्वारा चलित यांत्रिकी की अनुपब्लधता के कारण, कश्मीर के अधिकांश नदी निकायों और झीलों को नगर निगम द्वारा डंप किए जाने वाले कचरों के दुष्प्रभावों का बोझ वहन करना पड़ रहा है।
कश्मीर विश्वविद्यालय में पर्यावरण विज्ञान विभाग के वरिष्ठ सहायक प्राध्यापक, डॉ. अर्शिद जहाँगीर ने द वॉइसेज़ को बताया-
“कचरा संग्रहण के लिए अनेक प्रणालियाँ कार्यरत हैं, लेकिन घरेलू स्तर पर ही कचरे का पृथक्करण नहीं किया जाता। ग्रामीण क्षेत्रों में खुली हवा में कचरे के निपटारे का तरीका बड़ा विचित्र और अधिक चिंताजनक हैं।”
डॉ. जहाँगीर ये मानते हैं कि स्रोत पर ही कचरे का सुव्यवस्थित तरीके से पृथक्करण, संग्रहण या निपटान के अलावा, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए स्थापित कानूनी प्रावधानों का सख्ती से पालन कराना ही एक रास्ता है।
अब तक निंगली वन रेंज में डंपिंग क्षेत्र को बंद कर दिया गया है। ऐजाज़ अहमद डार कहते हैं-
“लगातार प्रयासों से, हमने निंगली वन रेंज में नगरनिगम सोपोर द्वारा बनाए गए नए डंपिंग क्षेत्रों को बंद करवाने में हमने सफलता प्राप्त की है। लेकिन मौजूदा कचरों को किसी दूसरी यथोचित जगह पर स्थानांतरित किए जाने की ज़रूरत है।”
जैसा कि विशेषज्ञों का सुझाव है, उपयुक्त कानूनी हस्तक्षेप की सहायता से निरंतर समुदाय आधारित सतर्कता ही वेटलैंड के जीवनदायी पहलुओं को पल-पल खत्म होने से बचा सकती है।
मूल लेखक – सैयद टूबा
अनुवादक – शिज्जु शकूर
संपादक – पूनम आत्रेया