भारत माता के चरणों का फूल क्यों मुरझा रहा है?
उन्नति की दौड़ में वो अपनों से क्यों पिछड़ रहा है?
माला के मोती जैसे, बंग सागर में बिखरे से दिखते हैं ,
ऊँचे लाइट हाउस, हर चुनौती पे पहरेदार से दिखते हैं।
कितने नाम लूँ जिनके खून ने, असंभव को संभव बना दिया,
इतिहास के ‘काले पानी’ को, दूध सा पावन बना दिया।
प्रभु राम पहुंचे थे, वानर सेना के साथ छुड़ाने,
तब राक्षसों की कैद में माँ जानकी थी,
नेता जी पहुंचे, आज़ाद हिन्द फ़ौज के साथ छुड़ाने,
तब राक्षसों की कैद में माँ भारती थी।
मृग, खरगोश खुले घूमते हैं आज जहां,
इंसान कालकोठरियों में कैद थे वहां।
रॉस द्वीप के तीर पे जापानी बंकर ने क्या कमाल दिखाया था,
सबसे पहले आज़ादी का, परचम वहीँ लहराया था।
कहर वालों की रियासतें और सियासतें, आज बस खँडहर हैं,
रहम और दुआ वाले सब यूँ ही, सदियों से सलामत हैं।
हैवलॉक का स्कूबा और कोरल रीफ, लगता है अति सुन्दर,
और लगती है सुन्दर सबको, पोर्ट ब्लेयर की सेलुलर जेल।
शाहजहां दीवाना था प्रेमिका के लिए,
संगेमरमर का शानदार ताजमहल बना गया,
आज़ादी के परवाने, मातृ प्रेम में, भूखे, लहूलुहान,
पत्थर कूट कूट कर, यादगार काल कोठरी बना गए।
गुलामी की बेड़ियाँ क्या कम थी, जो लोहे की ज़ंजीरें भी पहनाई,
सूरज और हवा को भी, हुक्म नहीं था वहाँ जाने का।
संकरी अँधेरी कोठरियां, और ऊँची ऊँची दीवारें,
कोई तरीका नहीं था वहाँ से, ज़िंदा लौट के आने का।
कालेपानी की सजा सुनाई जिसको, उस हर वीर की माँ रोई होगी,
आज वहाँ ‘लाइट एंड साउंड शो’ को देख, हर माई का लाल रोता होगा।
वहाँ दफ़न दो सौ साल की कुर्बानियां, क्या कोई कभी सुन पायेगा?
वीर सावरकर के लिखे शब्दों में, लहू और आंसू कभी देख पायेगा?
उन वीरों को आज़ादी के सपने का, क्या क्या मोल चुकाना पड़ा,
ऐ हिंदोस्तानियों! आज़ाद साँसों का मोल तो तुम्हे भी चुकाना होगा ।
चलो अंडेमान! वहाँ जाओगे, देखोगे, महसूस करोगे, तो ही जानोगे,
अपने ज़मीर में उन वीरों के प्रति, क़र्ज़ का एहसास तो जगाना होगा।
रचना- ममता बांसल
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