राजस्थान, में होली का दहन के दूसरे दिन के बाद गणगौर पर्व 18दिन तक मनाया जाता हैं यह माना जाता है कि माता गवरजा होली के दूसरे दिन अपने पीहर आती हैं 18 दिनों के बाद ईसर जी (शिव जी) उन्हें फिर लेने के लिए आते हैं। यह पर्व इसलिए मनाया जाता हैं क्योंकि मान्यता है कि गणगौर, भगवान शिव और देवी पार्वती के मिलन का जश्न है, जिसे वैवाहिक और दाम्पत्य सुख का प्रतीक माना जाता है। यह पर्व विशेष रूप से महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि महिलाएं अपने लिए अखंड सौभाग्य, और अपने पति और ससुराल की समृद्धि के लिए प्रार्थना करती है और इस दौरान महिलाएं अपने पतियों के सुखी जीवन की कामना भी करती हैं और अविवाहित महिलाएं अच्छे जीवनसाथी को पाने के लिए गणगौर माता की पूजा और उपवास करती है
पूजा की विधि
गणगौर की पूजा होली के बाद 16 दिनों तक की जाती है। इन 16 दिनों के दौरान महिलाएं शिव और पार्वती की मिट्टी की मूर्तियाँ बनाती हैं, उन्हें सुंदर वस्त्रों से सजाती हैं और प्राण प्रतिष्ठा के द्वारा भक्ति के साथ पूजा करती हैं। हल्दी, मेहंदी, काजल और रोली से बने 16 बिंदियाँ सफेद कागज परलगा कर भगवान को अर्पित करती हैं। यह इसलिए किया जाता हैं क्योंकि देवी पार्वती ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए 16 दिनों तक व्रत और तपस्या की थी और यही कारण भी हैं कि गणगौर पूजा 16 दिनों तक मनाई जाती है और ये 16 बिंदियाँ इस भक्ति का प्रतीक मानी जाती हैं। सभी महिलाएं दूब को दूध और पानी में डुबोकर, भगवान शिव और पार्वती की मूर्तियों पर छिड़कती हैं और साथ ही ‘गोरगोरगोमति’ गीत गाती हैं।

प्रसाद के रूप में गुणा बनाया जाता है. जो चने के आटे या गेहूं के आटे से बने होते है पूजा के बाद महिलाएं ‘गुणा विनिमय’ करती हैं जिसमें वह अपनी चुनरी दूसरे की चुनरी पर रखती हैं और एक दूसरे के द्वारा आशीर्वाद का आदान प्रदान करते हैं। यह परंपरा समाज में सौहार्द और प्रेम बढ़ाने का कार्य करती है। सिर्फ यही नहीं बल्कि पूजा के बाद ‘गुणा प्रसाद’ का वितरण होता है ।

यह प्रसाद पारंपरिक रूप से सास और बुजुर्गों में वितरित किया जाता है जिससे समृद्धि, सम्मान और पारिवारिक कल्याण बढ़ता हैं। जिसमें सभी महिलाएँ एक साथ बैठकर गणगौर की पूजा करती और गीत गा कर उनकी विदाई करती हैं।
राजस्थान जयपुर निवासी ने साझा किया अपना अनुभव
जयपुर निवासी मधु जी से बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि उनके घर में यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है। वे बताती हैं कि विवाह के बाद उन्हें गणगौर की मूर्तियां उनकी माँ से उपहार में मिली थी और यह परंपरा अब उनकी बेटी प्रांजल तक पहुंच चुकी है। गणगौर का उत्सव उनके घर में होली के ठीक बाद शुरू हो जाती है और मूर्तियों को 16 दिनों तक पूजा के लिए रखा जाता है। वे रोज सुबह और शाम आरती करती है और पूजा करती हैं और देवी-देवताओं को जल पिलाया जाता हैं और मिठाई अर्पित की जाती हैं। उन्होंने यह भी बताया कि कैसे “गणगौर पर्व के 16 दिनों में सोसाइटी की सभी महिलाएँ सजधज कर एक साथ गणगौर की पूजा करती हैं, गीत गाती हैं, हँसी-खुशी से गणगौर माता की विदाई करती हैं। साथ ही, सभी महिलाएँ प्रार्थना करती हैं कि गणगौर माता हर साल इसी तरह आकर अपना आशीर्वाद देती रहें।यह परंपरा केवल एक अनुष्ठान नहीं बल्कि हमारी विरासत का हिस्सा है, जो पीढ़ियों से चली आ रही है।”

परंपरागत व्यंजनों का खास आकर्षण

कोई भी पर्व खानपान के बिना पूरा ना हो ऐसा हो नहीं सकता। गंगौर पर्व के अवसर पर भी परंपरागत व्यंजनों की अहम भूमिका हैं जो कि इसे खास बनाती है। इस दिन विशेष रूप से राजस्थान (बीकानेर) में फोग के ढोकले और बाजरे के ढोकले बनाए जाते हैं जो स्वाद और सेहत का अद्भुत संगम होते हैं। राजस्थान के कई इलाकों में महिलाएं और युवतियां गणगौर पूजन के बाद इन खास पकवानों का आनंद लेती हैं। गणगौर पर्व न केवल एक धार्मिक उत्सव है, इस पर्व के माध्यम से न केवल महिलाएं अपने आस्थाओं और परंपराओं को निभाती हैं, बल्कि यह समाज में प्रेम, सौहार्द और सामूहिक बंधन को प्रगाढ़ बनाने का भी काम करता है.
संपादन -शिज्जु शकूर