2020 में शिक्षा का एक अलग ही रूप नज़र आया। यूनेस्को की रिपोर्ट के अनुसार विश्व भर में 186 देशों के कुल 1. 2 बिलियन छात्र पारंपरिक स्कूलों का रुख नहीं कर सके। आर्थिक और तकनीकी रूप से सम्पन्न सामाजिक व्यवस्थाओं ने स्टडी फ्रॉम होम के अवसरों को महौया अवश्य कराया परंतु दुनिया भर में ऐसे कई बच्चे थे जिन्हें साधन न होने के कारण शिक्षा से वंचित रहना पड़ा। यूनिसेफ़ की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में भी प्रत्येक चार छात्रों में महज़ एक के पास ही डिजिटल शिक्षा की बुनियादी सुविधाएं मौजूद हैं । ऐसे में दी वॉइसेस की पड़ताल में महामारी से जूझते दौर में शिक्षा हासिल करने के संघर्ष के कई महत्वपूर्ण आयाम सामने आए।
हिंदुस्तान में कुल 325760 निजी और 1083678 सरकारी स्कूल हैं। इनमें से अधिकतर के पास आधारभूत संरचना के नाम पर सिर्फ दीवारें हैं । बच्चों के लिए साधन का व्यापक अभाव है। ऐसे में अनायास ही आ धमकने वाला लॉकडाउन किसी भीषण परीक्षा से कम नहीं था।
24 मार्च 2020 को लगे लॉकडाउन का असर बच्चों से लेकर स्कूल प्रशासन तक को झेलना पड़ा। गाज़ियाबाद के एक निजी स्कूल के छठी कक्षा के छात्र रोनित चौधरी ने दी वॉइसेस को बताया “लॉकडाउन में हमें बहुत परेशानी हुई। हमें किताबें मई के महीने में मिली थीं, और तब तक पढ़ने की कोई सुविधा नहीं थी। सिर्फ व्हाट्सअप पर होमवर्क आता था। मम्मी जब जॉब से रात को घर आती थी तब फ़ोन से होमवर्क करता था। जब परीक्षा होती थी तो मम्मी फ़ोन घर पर छोड़ कर जाती थी। शुरूआती दिनों में हमारी कोई ऑनलाइन क्लास नहीं होती थी।”
2020 में किताबों की जगह स्मार्टफोन्स ने ली। परंतु आधुनिक तकनीकी विकल्पों को अपनाने के बाद भी परेशानियां खत्म नहीं होतीं। बच्चों ने तो स्मार्टफोन से दोस्ती कर ली परंतु शिक्षकों और स्कूल प्रशासन के बीच स्थितियाँ तनावपूर्ण रहीं ।
“बोर्ड से इ- लर्निंग पर जाना हमारे लिए बहुत कठिन और चुनौतीपूर्ण था। हमें खुद बहुत कुछ सीखना पड़ा जैसे कि Teams में फॉर्म्स बनाना, वीडियो रिकॉर्डिंग करना। हमारी दिन में वर्कशॉप्स होती थीं। आधे अधूरे करेक्शंस होते थे। पिछले रिजल्ट को जारी करने का तो दबाव था ही, पर साथ ही जब जुलाई में नया सत्र शुरू हुआ तो 30 % पाठ्यक्रम कम करने को कहा गया। समस्या यह भी थी कि किसी भी प्रकार के ऑडर्स लेट आते थे” पुष्प विहार में एक निजी स्कूल में अध्यापन करने वाली विनीता ने बताया।
जाते जाते 2020 शिक्षक और छात्रों को व्हाट्सप्प कम्यूनिकेशन की आदत तो डाल गया लेकिन मौजूदा स्थिति की भी अपनी समस्याएं हैं । अनलॉक के आदेश के बाद कई राज्यों ने तमाम शर्तों के साथ विद्यालयों को खोलने का निर्णय लिया है। परंतु हालिया दिनों में जिस तरह से महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, गुजरात में कोरोना के मामलों में बढ़ोतरी दर्ज कि गई है ऐसे में यह जानना रोचक है कि क्या स्कूल प्रषासन lockdown 2. 0 के तैयार है? के.बी. मॉडर्न पब्लिक स्कूल के निदेशक रितेश बताते हैं ” हम अपनी तरफ से पूरी तयारी कर रहे हैं। हमने बेहतर टेक्नोलॉजी इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। ऑनलाइन सॉफ्टवेयर्स खरीदे हैं । अगर किसी भी प्रकार की विकट स्थिति आती है तो इनके ज़रिये बच्चों से संपर्क में रहेंगे।”
बच्चों और स्कूल की समस्याओं को देखते हुए सरकार ने भी हर संभव प्रयास किए ।ग्यारहवीं और बारहवीं के छात्रों के लिए ऑनलाइन कक्षाएं, तथा कक्षा 8 के छात्रों को परीक्षा के बिना पदोन्नति, छात्रों के लिए डेटा पैकेज, दैनिक गतिविधियों के लिए माता-पिता को नियमित एसएमएस / आईवीआर इस संदर्भ में साहसिक प्रयास थे। टीवी के ज़रिये पाठ्यक्रम के आधार पर कक्षाओं का प्रसारण भी किया गया। इतना ही नहीं दिल्ली सरकार ने तो कई स्कूलों में स्मार्टफ़ोन भी बांटे गए।
अप्रैल 2020 में ही इस क्षेत्र में सकारात्मक प्रयासों की श्रृंखला का आरंभ हो गया था । ‘भारत पढ़े अनलाइन’ कार्यक्रम के तहत अनलाइन शिक्षा प्रणाली को बेहतर बनाने के लिए मानव संसाधन मंत्रालय ने सुझावों को आमंत्रित किया । पीएम ई विद्या कार्यक्रम के अंतर्गत अनलाइन शिक्षा के सभी प्रयासों को समाहित किया गया। जहां दीक्षा पोर्टल के तहत छात्रों और शिक्षकों के लिए उत्तम श्रेणी के पाठ्य सामग्री को उपलब्ध कराया गया वहीं मनोदर्पण पोर्टल के तहत छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने के लिए कई कार्यक्रमों को शुरू किया गया।
फरवरी 2021 में गूगल ने भी अपने क्लासरूम एप में 50 नई सुविधाओं को जोड़कर लॉकडाउन में शिक्षा को आसान बनाने में अपना एक योगदान दिया। कुछ सिखाते सिखाते 2020 तो जा चूका है पर 2021 में कोविड महामारी के बाद शिक्षा प्रणाली में हुए सुधारों का क्या असर होगा ये तो समय ही बताएगा। तब तक घर ही स्कूल है और स्मार्टफोन्स किताबें।
2 Comments
अत्यंत सारगर्भित लेख के लिए साधुवाद। जब स्थिति विकल्पहीनता की हो तो थोड़े बहुत ही प्रयास सकारत्मकता लाते हैं इस लेख का सार है। अत्यंत सधी हुई लेखनी।
आभार
Very well written Garima. It’s indeed unfortunate. This is going to widen the learning gap between privileged and lesser privileged kids. Considering the current scenario, schools must take some creative steps to solve the issue.