कुछ ऐसी थी बरसात उस रोज़ भी
बड़ी तन्हा थी रात उस रोज़ भी
रही अश्क से तर ब तर बे-सदा
हमारी मुलाकात उस रोज़ भी
यही शोर था बादलों का, यही
चमकती हुई बिजलियाँ और ये
बरसती हुई बूंदें करती रहीं
बयाँ दिल के हालात उस रोज़ भी
ज़बाँ पर न अल्फ़ाज़ थे और न ही
कलम में कोई बात उस रोज़ भी
लरज़ते थे लब और इन पलकों से
टपकते थे जज़्बात उस रोज़ भी
ये बरसात बे-रहम क्यों है भला?
भला क्यों ये बूँदें मुझे चुभती हैं?
परेशान करते रहे थे मुझे
यही कुछ सवालात उस रोज़ भी
Photograph by: Shijju Shakoor