संसद के हालिया सत्र में, मोदी सरकार ने बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक, 2021 पेश किया, जिसमें महिलाओं के लिए शादी की उम्र 18 साल से बढ़ाकर 21 साल की गई थी। अध्ययनों के अनुसार कम उम्र में विवाह भी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनता है, इसलिए कानूनी उम्र बढ़ने से युवा दुल्हनों में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों की संभावना कम हो जाएगी।
भारत में दुनिया में सबसे अधिक बाल वधुएँ हैं, यूनिसेफ का अनुमान है कि भारत में 47% लड़कियों की शादी 18 साल की उम्र से पहले कर दी जाती है। राजस्थान का उत्तरी क्षेत्र इस राष्ट्रीय संकट के केंद्र में है जहाँ 65% लड़कियों की शादी अल्पायु में हो जाती है, उनके अठारहवें जन्मदिन से पहले।
बाल विवाह को लेकर देश में राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में सबसे ख़राब स्थिति है – यूनिसेफ के अनुसार राजस्थान में 82 प्रतिशत विवाह 18 साल से पहले ही हो जाते है। वहीं 22 फीसदी बच्चियां 18 वर्ष की उम्र से पहले ही मां बन जाती है। आज जीवित 65 करोड़ से अधिक महिलाएं बाल विवाह के प्रत्यक्ष परिणाम भुगत रही हैं। प्रारंभिक गर्भावस्था के दौरान जटिलताएँ इस हानिकारक प्रथा के सबसे खतरनाक परिणामों में से एक है।
बाल विवाह के संबंध में, दी वॉइसेस ने सारथी ट्रस्ट की संस्थापक डॉ. कृति भारती, उत्तराखंड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर गिरिजा पांडे और स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ स्वस्ति चौधरी से संपर्क किया और बाल विवाह और उसके परिणामों पर चर्चा की।
बाल विवाह एक डार्क रूम: डॉ. कृति भारती
डॉ. कृति भारती बाल विवाह को एक ऐसा ‘डार्क रूम’ बताती हैं, जहां बच्चे अपना भविष्य नहीं देख सकते। उनका संगठन, सारथी ट्रस्ट, बच्चों को प्रकाश देखने में मदद करने के लिए काम कर रहा है। बाल विवाह रुकवाना, जिनका बाल विवाह हो चुका है उनको कोर्ट ले जाकर विवाह कैंसल करवाना, उसके अलावा ओरिएन्टेशन कैंप के माध्यम से गाँवों में लोगों को बाल विवाह न करवाने की शपथ दिलवाना जैसे काम सारथी ट्रस्ट कर रहा है। इंडिया का फर्स्ट चाइल्ड मैरिज सारथी ट्रस्ट ने कैंसल करवाया है.
बाल विवाह बाल अधिकार का उल्लंघन है, यह एक ऐसे मुद्दा है जिससे कई अन्य मुद्दे भी जुड़े हैं जैसे यौन अपराध, घरेलू हिंसा या शिक्षा-स्वास्थ्य से वंचित होना। बाल विवाह की परिणति एचआईवी संक्रमण और मानव तस्करी भी हो सकती है। बाल विवाह राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ा मुद्दा है। कई समुदाय ऐसे हैं जहाँ 10 से 11 महीने तक की बच्चियों की शादी कर दी जाती है। जब कोई लड़की बालविवाह को मानने से इंकार करती है, उनको रद्द करवाना चाहती है तो समुदाय इसे स्वीकार नहीं करता है। अक्सर गांवों में स्थानीय सामाजिक संस्था या जातिगत पंचायतों द्वारा ऐसी परिस्थिति में परिवार का बहिष्कार कर दिया जाता है या भारी जुर्माना लगा दिया जाता है। आर्थिक रूप से कमज़ोर परिवार ऐसी परिस्थिति में जुर्माना देने की स्थिति में नहीं होते हैं।
“समाज के दबाव में मजबूरन लड़की को माता पिता के दवाब में आकर ये शादी निभानी पड़ती है। तो इस क्षण पर लड़कियों का सारा उत्तरदाईत्व, शेल्टर सारी चीजे हमारे ऊपर आ जाती है। जब केस प्रक्रिया शुरू होती है तो परिवार की काउंसलिंग शुरू की जाती है, साथ ही ससुराल पक्ष की भी काउंसिलिंग भी शुरू की जाती है। लड़कियों के लिए पुनर्वास कार्यक्रम चलता है। इसमें हम उनको शिक्षा और सशक्तिकरण कार्यक्रम से जोड़ते है, साथ ही साथ उनकी काउंसिलिंग भी चलती है।”
डॉ. कृति भारती, संस्थापक – सारथी ट्रस्ट
वैश्विक महामारी कोविड-19 महामारी का दुष्प्रभाव बच्चियों पर भी पड़ा है, 2020 के बाद से बाल विवाह की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है। लोगों की आर्थिक स्थिति में आई अप्रत्याशित गिरावट इसका एक प्रमुख कारण है। किसी भी महामारी का सबसे बड़ा असर कमजोर वर्ग पर पड़ता है और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सबसे पहले शिकार औरतें और बच्चे ही होते हैं।
“बालविवाह का नाता न तो शिक्षा से है न पैसों से है, यहाँ पढ़े लिखे और पैसे वाले लोग भी बालविवाह में शामिल होते हैं। पारंपरिक प्रथा मानकर लोग इस कुप्रथा छोड़ना नहीं चाहते है। दूसरा डर जो लोगों के मन में है वह है लड़कियों को लेकर असुरक्षा की भावना। आये दिन यौन अपराध की ख़बरें सुर्खियों में होती हैं। इस डर से जीवन की सुरक्षा के लिए भी बालविवाह कर दिया जाता है। अगर हम 50-60 साल पहले की बात करें तो गरीबी या अशिक्षा इसका कारण हो सकता था, पर जो मैंने महसूस किया है पिछले 10-15 वर्षों से वर्तमान स्थिति में बालविवाह का कारण गरीबी और अशिक्षा नहीं है।”
डॉ. कृति भारती, संस्थापक – सारथी ट्रस्ट
बाल विवाह के कारणों का पता लगाना ज़रूरी: प्रोफेसर गिरिजा पांडे
स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज के डायरेक्टर और उत्तराखंड विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर गिरिजा पांडे कहते हैं कि आज जबकि पहले से कानून बना हुआ तो इसकी संभावना कम ही है कि 18 वर्ष से पहले किसी का विवाह हो जाए। अगर अपवादस्वरूप ऐसा हुआ भी है तो यह अजीबोगरीब परिस्थितियों में ही हुआ होगा।
“बाल विवाह के लिए तो परिस्थितियों को भी देखना पड़ेगा। वह कौन सी परिस्थितियाँ है जिसमें एक बालिका को पढ़ने लिखने के कम अवसर मिले हैं, आर्थिक स्थिति के कारण या उसके सामाजिक संरचना के कारण चाहे उसके सांस्कृतिक व्यवस्थाओं के कारण यह दबाव तो नहीं आई। परिवार या समाज ऐसे निर्णय ले रहा है तो इसका मतलब हमारा समाज अभी शिक्षित नहीं हुआ है। उन समुदाय में जहां पर यह प्रवृत्ति दिख रही है, वहां की साक्षरता दर बहुत कम होगी। और मेरा तो मानना है कि 21 ही क्यों उससे आगे छोड़ देना चाहिए।”
प्रोफेसर गिरिजा पांडे – डायरेक्टर, स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज एंड प्रोफेसर ऑफ हिस्ट्री, उत्तराखंड विश्वविद्यालय
प्रोफेसर गिरिजा पांडे कहते हैं कि बड़े शहरों में जहां चेतना का अवसर बढ़ा है, उनकी शिक्षा के अवसर बढ़े हैं। आज लड़कियाँ निर्णय लेने लगी हैं कि कब शादी करनी है। समाज में आ रहे बदलाव को उन्होंने देखा है, पढ़ा लिखा वर्ग आज अपने लिए खुद से निर्णय ले रहा है।
“जहाँ पर ऐसी कुरीतियाँ है, उन समाजों को शिक्षित करना चाहिए, क्योंकि इसके बाद जब भी हम कानून के रूप में कोई बाध्यता सामने आती है तो उससे रुकता कुछ नहीं बल्कि उनको तोड़ने की व्यवस्थाएँ भी बनने लगती हैं। यह छुपकर एक अपराध के रूप में समाज में ही रहता है।”
प्रोफेसर गिरिजा पांडे – डायरेक्टर, स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज एंड प्रोफेसर ऑफ हिस्ट्री, उत्तराखंड विश्वविद्यालय
पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं को एक अलग नजरिए से देखा जाता है और उसके अधिकारों को अगर एक नागरिक के रूप में देख लिया जाए जो उनके अधिकार है वह उन्हें दिया जाए तो फिर तो यह समस्या नहीं आ सकती। लोकतंत्र के भीतर जो अधिकार एक पुरुष का है वही अधिकार एक महिला का भी होता है। जब महिलाओं को शिक्षा के अवसर, स्वावलंबन के अवसर मिलेंगे तो वह खुद से समझने लगेंगी कि उनके लिए क्या उचित है और क्या अनुचित। शिक्षा के स्वरूप को बदलना चाहिए, उन सारे मूल्यों की चर्चा करनी चाहिए, महिलाओं को आगे बढ़ाने के कार्य करने चाहिए और जब तक हम यह नहीं करेंगे तब तक हम आगे नहीं बढ़ सकते। इसके लिए समाज में चेतना और परिवार की आर्थिक स्थिति भी मजबूत होनी चाहिए क्योंकि जब तक परिवार का आर्थिक स्वावलंबन ठीक नहीं होगा तब तक वह इस तरह के परिस्थितियां से गुजरता रहेगा।
कम उम्र में विवाह से एनिमिया और शिशु की मृत्यु का जोखिम
पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर स्वस्ति चौधरी ने बाल विवाह के चिकित्सीय पहलू पर प्रकाश डाला।
“किशोरावस्था में प्रेगनेंसी से माँ एनिमिक हो सकती है। उसमें हीमोग्लोबिन कम होगा, खून की कमी हो जाएगी, 9 महीने से पहले प्रसव हो सकता है। इस दौरान माँ की उम्र कम होने के कारण ब्लड प्रेशर बढ़ने का खतरा ज्यादा होता है। साथ ही किशोरावस्था में गर्भधारण से बच्चे का विकास बाधित होता है। किशोरावस्था में गर्भाशय का मार्ग अच्छे से विकसित नहीं होता है तो नॉर्मल डेलिवरी की संभावना कम होती है। प्रसव के बाद भी किशोरी के मासिक चक्र में समस्या हो सकती है।”
डॉ. स्वस्ति चौधरी, स्त्री रोग विशेषज्ञ, जलपाईगुड़ी, पश्चिम बंगाल
डॉ. स्वस्ति चौधरी ने एक हैरान करने वाली बात बताई कि 19 वर्ष से कम उम्र की गर्भवती लड़कियों में 19 वर्ष से अधिक उम्र की गर्भवती महिलाओं की तुलना में मलेरिया के मामले अधिक देखे गए हैं। उन्हें मलेरिया से संबंधित जटिलताओं जैसे गंभीर एनीमिया, फेफड़ो में सूजन का भी खतरा होता है।
बच्चे जब समय से पहले पैदा होते हैं तो उनके पेट में संक्रमण होता है। बच्चे में एनीमिया के कारण खून की कमी हो सकती है। श्वसन संबंधी विकार, बच्चा मानसिक विकार का शिकार हो सकता है या किसी भी तरह की कोई समस्या एक उम्र के बाद बच्चे में देखने को मिल सकती है। समय पूर्व गर्भधारण से गर्भनाल भी भ्रूण का सही तरीके से पोषण नहीं कर पाती है। ऐसी परिस्थिति में गर्भ में बच्चे का सही विकास नहीं हो पता है। कुपोषण की वजह से शिशु की मृत्यु का भी खतरा बना रहता है। डॉ. स्वस्तिका कहती हैं कि ऐसे बच्चों पर किसी भी बीमारी से जल्दी संक्रमित होने का जोखिम हमेशा बना रहता है।
संपादक – शिज्जु शकूर