शम्मा रह गई है और परवाना चला गया है। लंबी बीमारी के बाद 98 वर्ष की उम्र में हिंदी सिनेमा के कोहिनूर और ट्रेजेडी किंग दिलीप कुमार ने मुंबई में कल अंतिम सांस ली।
1922 में पाकिस्तान के पेशावर में जन्मे दिलीप कुमार के वालिद पेशे से फलों के व्यापारी थे। कालांतर में, परिवार के साथ वह भी मुंबई आ गए। आरंभिक दौर में कांग्रेसी कैंटीन में नौकरी करने के उपरांत, एक रोज दिलीप कुमार मुंबई टॉकीज के दफ्तर पहुंचे जहां उनकी मुलाकात मशहूर अभिनेता अशोक कुमार और अभिनेत्री देविका रानी से हुई। गौरतलब है कि देविका रानी ने ही उन्हें पहली दफा फिल्मों में अभिनय हेतु पेशकश की।
1944 में फिल्म ज्वार भाटा से अपने सिनेमाई सफर की शुरुआत करने वाले दिलीप कुमार से रुपहले पर्दे पर मुग़ले आज़म,नया दौर, शहीद, मधुमति, देवदास, गोपी, कर्मा आदि कई ऐसी फिल्मों में काम किया जो हिंदी सिनेमा के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुई। सही मायनों में वह आजादी के बाद के भारत की आकांक्षाओं को पर्दे पर जीने वाले अभिनेता थे। उनके किरदारों में भारतीयता का उत्सव होता था, किसान और मजदूर के रुप में संघर्षशील वर्ग की चेतना होती थी, और अपनी संपूर्णता में प्रगतिशील समाज के लिए एक ‘पैगाम’ होता था। ब्रिटिश अर्थशास्त्री मेघनाद देसाई ने उन्हें ‘Nehru’s Hero’ का खिताब दिया।
अपने संजीदा किरदारों के लिए ट्रेजडी किंग का खिताब पाने वाले दिलीप कुमार अपने किसी भी किरदार पर महीनों मशक्कत करते थे। फिल्म लेखक और गीतकार जावेद अख्तर की माने तो दिलीप कुमार संभवत: दुनिया के पहले मेथड एक्टर हैं। अपनी ऐसी कार्य शैली के कारण दिलीप कुमार ने अपने सिनेमाई जीवन में कई बड़ी फिल्मों का हिस्सा बनने से इनकार किया जिसमें गुरुदत्त द्वारा निर्देशित प्यासा भी शामिल है। फिल्म जगत में अपने उत्कृष्ट अभिनय के लिए दिलीप कुमार को 1991 में पद्म भूषण, 1995 में दादा साहेब फाल्के पुरस्कार और 2015 में पद्म विभूषण से नवाजा गया।
महज 62 फिल्मों में अभिनय करने वाले दिलीप कुमार की बेमिसाल अदायगी ने उन्हें एक संस्थान का दर्जा दिया। धर्मेंद्र, मनोज कुमार सरीखे समकालीन अदाकारों से लेकर, मौजूदा दौर में मनोज बाजपई, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, पंकज त्रिपाठी जैसे उभरते हुए अभिनेता भी उन्हें अपनी प्रेरणा का स्रोत मानते हैं। हैरानी नहीं होती जब सदी के महानायक अमिताभ बच्चन यह कहते हैं कि ” अगर हिंदी सिनेमा का इतिहास कभी लिखा जाएगा, उसके दो हिस्से होंगे, एक दिलीप कुमार से पहले दिलीप कुमार के बाद”।
8 दशकों के करिश्माई अभिनय की विरासत के कुछ आयाम जानने हेतु, दिलीप कुमार पर विशेष प्रस्तुति के पहले हिस्से में दी वॉइसेस के गरिमा जैन और एन के झा ने मशहूर फिल्म ट्रेड एनालिस्ट कोमल नाहटा से बात की। प्रस्तुत है उसके कुछ अंश
दिलीप कुमार पर इस विशेष प्रस्तुति के दूसरे हिस्से में दी वॉइसेस से उनके व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन के कई अनछुए पहलुओं को साझा करेगा।
इंटरव्यू निर्माता: सुनील कुमार गुंद
संपादक: रघुजीत रंधावा
2 Comments
A great pice work…
This is a great tribute to the legendary actor Dilip Kumar ji. The interview disclosed many facts which we may not know and that too came from the experts of film trade industry. Listening to the interview, felt like I am in front of Dilip ji and he is telling his journey.
Thanks to the interviewers and Sh Komal nahata for bringing us such a legendary actor’s journey.