पिछले चार दशकों से नर्सिंग के पेशे में होने के बावजूद कमला एल्बर्ट के लिए महामारी के इस दौर में अपनी ज़िम्मेदरियों को निभाना किसी ‘सौभाग्य’ से कम नहीं। जहाँ एक और उनका परिवार उनके स्वास्थ्य को लेकर चिंतित अवश्य रहता है परन्तु उसी परिवार के सदस्य पूरे उत्साह के साथ उन्हें रोज़ अस्पताल तक छोड़ने भी जाते हैं। ग़ज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश में एक सरकारी अस्पताल में कार्यरत कमला उन असंख्य फ्रंटलाइन कर्मियों में से एक हैं, जिनकी बदौलत मानवता इस भीषण समय में भी उम्मीद की डोर थामे हुए है। अंतराष्ट्रीय नर्स दिवस (International Nurse Day) के अवसर पर दी वॉइसेस ने स्थितियों का ज़ायज़ा लेने का प्रयास किया।
मौजूदा दौर में नर्सों को अभूतपूर्व चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर में कार्यरत शास्वती सिंह ने सात महीने पहले ही नर्सिंग करियर का आगाज़ किया। उनके आरम्भिक प्रशिक्षण का दौर पिछले वर्ष कोरोना काल में ही सम्पूर्ण हुआ। इस कारण वह दशकों से कार्यरत नर्सों की अपेक्षा स्वयं को मानसिक तौर पर अधिक तैयार तो पाती हैं, परन्तु दूसरों की तरह ही लम्बे शिफ्ट्स में पीपीई किट (PPE Kit) में सेवा देना उनके लिए भी किसी चुनौती से कम नहीं। वो बतलाती हैं “दस दस घण्टे तक किट को पहने रखना पड़ता है जिस कारण इस अवधि में कुछ खा पी नहीं सकते। पसीने से शरीर तर बदर हो जाता है। और सब करने के बाद चाह कर भी घर का रुख करना असंभव है।”
पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी में एक सरकारी अस्पताल में कार्यरत डॉक्टर स्वस्ती चौधरी के अनुसार “नर्सों की स्थिति हम डॉक्टरों से भी अधिक मुश्किल है। हम तो चार पांच घंटे के राउंड के बाद पीपीई किट खोल सकते हैं, परन्तु उनके पास ये विकल्प भी नहीं। मरीज़ की हर शारीरिक समस्या को सँभालने की पहली ज़िम्मेदारी भी उनकी ही हो जाती है। यहाँ तक कि मरीज़ों को भावनात्मक तौर पर मज़बूत रखने का भार भी उन्हें ही संभालना पड़ता है। ऐसे कई अवसर आते हैं जब हम डॉक्टर्स को नर्सों को भावनात्मक स्तर पर संभालना पड़ता है।”
गौरतलब है कि महामारी के इस दौर में नर्सों के लिए भावनात्मक स्तर पर चुनौतियों का संज्ञान लेते हुए करेल सरकार ने उनके लिए प्रशिक्षित मनोचिकित्सकों के माध्यम से कॉउंसलिंग सुविधाओं का आगाज़ किया। उनकी आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा हेतु कई राज्य सरकारों ने विशेष जीवन सुरक्षा बीमा योजनाओं की घोषणा की। बीते सप्ताह केंद्र सरकार ने भी फ्रंटलाइन कर्मियों के लिए बीमा योजना को 6 अतिरिक्त महीनों के लिए बढ़ाने की घोषणा की।
15वें वित्त आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में नर्स और आबादी का औसत 1:670 है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा प्रस्तावित औसत 1:300 है। भारत में इस पेशे में पुरुषों का प्रतिनिधित्व 10 प्रतिशत के करीब है। विशेषज्ञों के अनुसार दोनों पक्षों में सुधार हेतु केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा कार्य हो रहा है और समय के साथ जो परिणाम आएंगे वो इस क्षेत्र में गुणात्मक अभिवृद्धि का कारण बनेंगे।
विश्व नर्स दिवस – इतिहास के झरोखे से
1965 में इंटरनेशनल कौंसिल ऑफ़ नर्सेज द्वारा एक प्रस्ताव के अनुमोदन के उपरांत, आधुनिक नर्सिंग की जनक फ्लोरेंस नाइटिंगल के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में, प्रत्येक वर्ष की 12 मई को अंतराष्ट्रीय नर्स दिवस मनाया जाता है। 1853 से 1856 तक चले क्रीमिया के युद्ध में घायल सैनिकों की चिकित्सा हेतु उन्होंने कई नर्सों को प्रशिक्षण दिया, जिसके उपरांत उनकी ख्याति विश्व भर में फैली। इसके उपरांत नर्सों को पेशेवर प्रशिक्षण देने हेतु उन्होंने कई कदम उठाये, जिसमें लंदन में, सेंट थॉमस अस्पताल में उनके द्वारा स्थापित नर्सिंग स्कूल खासा चर्चित हुआ। इस वर्ष नर्स दिवस की थीम थी “नर्स: भविष्य में स्वास्थ्य योजना की संकल्पना का नेतृत्व करती एक आवाज़”। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस दिवस को नर्स समुदाय के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर बताया।
संपादक: रघुजीत रंधावा
8 Comments
First I want to say happy international nurse day ….Govt. ko nursing sector me bht kaam ki jarurat hai because when I saw the ratio ,that is really shocking ……The way you described the personal experience of nurses and doctors, that is really nice….Keep it up…😀😀
No word to explain the duty of nurse
,………real hero ……….
such a beautiful story. Nurses are really being brave in the fight with the Covid situation…salute to them
Really it’s a very hardship time us and them also . They make patience for our health and security . Future of word is on their shoulders and they keep their shoulders straight only because for our bright future . What’s a Nice article bhaiya to brifely explain the feelings of our nurse team…….!!!!👍👍
I dnt knew about the international nurse day. Thank you very much sir for bringing up this article and letting know everyone of us about these front line warriors, their management with family and patients, how they are caring the patients, emotionally handling themselves… Yes the interviews are full of information.
Very informative article. Really it’s a tribute to all the front line warriors who are taking care of all patients as well as managing their families.
इतना सुंदर लेख है।। सभी फ्रंटलाइन वर्कर्स को सलाम। हम सभी जानते हैं कि यह कठिन समय है और ये लोग निस्वार्थ भाव से अपना कर्तव्य निभा रहे हैं ताकि भारत फिर से मजबूत हो सके।
इतने ज्ञान के लिए धन्यवाद श्री निधि झा
ऐसे और लेखों की प्रतीक्षा रहेगी!
Very beautifully written ….!!!