गत माह, 23 अक्टूबर को केशव सूरी फाउंडेशन ने होटल द ललित, नई दिल्ली में मीडिया पेशेवरों के लिए जेंडर क्वेरिंग कार्यशाला की मेज़बानी की। इस कार्यशाला में मीडिया पेशेवरों को जेंडर स्पेक्ट्रम की विविधता का परिचय दिया गया और साथ ही लैंगिक सन्दर्भों में अनेकों भ्रांतियां, पूर्वाग्रहों पर व्यापक परिचर्चा हुई। परिचर्चा का उद्देश्य मीडिया कर्मियों को समाज की लैंगिक संरचना में उभरते आयामों से परिचित कराना था।
मानवाधिकार शुरू से ही इस तथ्य पर आधारित है कि सभी लोगों को समान बनाया गया है। लिंग के द्वारा लोगों की पहचान करना उन प्रमुख कारकों में से एक है जिन पर लोगों को भेदभाव का सामना करना पड़ता है। मौजूदा दौर में लैंगिक स्पेक्ट्रम में अभूतपूर्व विस्तार हुआ है। ऐसे में लैंगिक विषयों पर रिपोर्टिंग करने वाली मीडिया की भूमिका अहम हो जाती है। एक जिम्मेदार मीडिया एक संवेदनशील सूचना तंत्र को तैयार करता है जो सामाजिक प्रतिक्रियाओं का आधार होता है। ऐसे में वर्तमान में जेंडर रिपोर्टिंग पर मीडिया प्रशिक्षण एक आवश्यक हस्तक्षेप सिद्ध हुआ है।
कार्यशाला में वक्ताओं के रूप में समाजसेवी संस्थान ‘कथा स्टूडियो’ की संस्थापक स्वाति जैन और केशव सूरी फाउंडेशन के सदस्य गौरव सिंह ने शिरकत की। लिंग और यौन पहचान के साथ साथ लैंगिक सन्दर्भ में प्रयोग होने वाले सर्वनामों का परिचय देते हुए उन्होंने किसी व्यक्ति के उन्मुखीकरण और पसंद के बीच का अंतर स्पष्ट किया। वक्ताओं ने LGBTQIA+ समुदाय का परिचय भी दिया और साथ ही उन आम धारणाओं पर चर्चा की जिसके कारण थर्ड जेंडर हाशिये पर धकेल दिया जाता है। सत्र ने न केवल संदेहों को दूर किया, बल्कि वैचारिक बदलाव का आग्रह भी किया।
कार्यशाला में मुख्यधारा और वैकल्पिक मीडिया हाउसेस के राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मीडिया पेशेवरों ने भाग लिया। प्रतिभागियों में युवा मीडिया इंटर्न्स भी थे और वरिष्ठ पत्रकार भी, जो इस पहल की नवीनता और रोचकता को लेकर बहुत उत्साहित दिखे। कार्यशाला के बाद सभी प्रतिभागियों ने एक विशेष संवाद सत्र में हिस्सा लिया जहाँ जेंडर से जुड़े मुद्दों पर, रिपोर्टिंग पर गंभीर परिचर्चा हुई।
कार्यशाला में प्रतिभागी राजन (बदला हुआ नाम) बताते हैं, “इस कम्युनिटी को लेकर मेरे मन में बहुत शंकाएँ थी, मुझे वास्तव में बस हिजड़ा समुदाय के बारे में पता था। मैं गे या लेस्बियन को हिजड़े समुदाय से ही सम्बंधित समझता था। मगर इस सेशन के बाद इस सम्बन्ध में मेरी समझ बेहतर हुई है। मैं इस पहल के लिए वक्ताओं और आयोजकों का आभारी हूँ।”
पत्रकार वीना ने भी दी वॉइसेस से अपना अनुभव साझा किया। वो बताती हैं “मैं अब इस समुदाय की आंतरिक विविधता को और उनके लिए प्रयोग किये जाने वाले प्रोनाउन (सर्वनामों) को बेहतर समझ पा रही हूँ। मीडिया के क्षेत्र में निरंतर ऐसे विषयों का सामना करना पड़ता है। लम्बे समय से इस सन्दर्भ में मैं जानकारी हासिल करना चाह रही थी। मैंने गूगल का इस्तेमाल किया पर मुझे अक्सर इस सम्बन्ध में अधिक पेशेवर तरीके से जानने की इच्छा थी। इसलिए मैं इस वर्कशॉप का हिस्सा बनी और मुझे खुशी हुई कि हाशिए पर माने जाने वाले समुदाय के बारे में इतना कुछ जान पायी।”
प्रतिभागियों की एक आम राय ये रही कि इस प्रकार के आयोजनों को और गति देने की आवश्यकता है। इससे लैंगिक विषयों पर रिपोर्टिंग में संवेदनशीलता और बढ़ेगी क्योंकि हालिया दिनों में कई अवसरों पर ऐसे विषयों पर कवरेज के दौरान मीडिया ने अपने को प्रश्नों के घेरे में पाया है। इसके बावजूद कि लैंगिक विषयों पर मीडिया रिपोर्टिंग के लिए यूनाइटेड नेशंस और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के दिशानिर्देशों की लम्बी श्रृंखला है, व्यवहार में लैंगिक संवेदनशीलता पर रिपोर्टिंग पत्रकारिता के लिए एक जटिल लक्ष्य रहा है।
केशव सूरी फाउंडेशन के संस्थापक श्री केशव सूरी के अनुसार ऐसे प्रयास से लैंगिक विषयों पर मीडियाकर्मियों की समझ और रिपोर्टिंग में परिपक्वता आएगी। अपनी संस्था के कार्य के बारे में बताते हुए वो कहते हैं, “मुझे अपनी इस संस्था की नींव रखे हुए 3 साल हो चुके हैं। हमारी संस्थान में हमारे काम के तीन महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। शिक्षा और रोज़गार के अतिरिक्त कार्यस्थलों को लैंगिक रूप से संवेदनशील बनाना हमारा एक मुख्य लक्ष्य है। समानता की मंज़िल अभी भी कोसों दूर है और हम एक समतामूलक राष्ट्र के निर्माण के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर रहे हैं। क्योंकि मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है, इसलिए हमने एक विशेष मीडिया कार्यशाला की योजना बनाई। इस सन्दर्भ में मीडियाकर्मियों के भीतर शंकाओं का, पूर्वाग्रहों का निवारण समाज को सूचनासंपन्न बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा। ऐसे प्रशिक्षण उन्हेंं समाज मेंं पूर्वाग्रहों को दूर करने हेतु सक्षम बनाएंगे।”
वो आगे बताते हैं, “मैं इस देश की मीडिया का बहुत आभारी हूँ, जो हमेशा सकारात्मक रही है और लैंगिक अधिकारों के संघर्ष के हर पहलू की आवाज़ बनती रही है।” गौरतलब है कि इससे पहले भी केशव सूरी फाउंडेशन LGBTQIA+ समुदाय के सशक्तिकरण के लिए विविध माध्यमों से कार्यरत रहा है। इस समुदाय के 2000 से अधिक लोगों को कौशल प्रशिक्षण देने के अतिरिक्त 50 से अधिक कॉरपोरेट्स को लैंगिक समावेशन में आगे बढ़ने में मदद की है।
संपादक: शिज्जु शकूर