मैं थक चुकी हूँ भागते भागते,
दो पल अभी मुझे रुकना है।
खुद के विचारों को अब मुझे
इस मेज़ पर रखना है।
यूं तो मैं चुप थी सालों से,
अब मुझे कुछ कहना है।
कह लो बदतमीज तुम्हें अगर मन हो तो,
पर अब मुझे और नहीं सहना है।
सालों बाद मैंने खुद के विचारों को पाया है,
अपने ही अंदर छुपी थी मैं,
अब जाकर उसे गले से लगाया है।
जो हूं जैसी भी हूं,
पसंद हूँ खुद को मैं।
और यह भी जानती हूँ,
ना कभी गलत थी ना अब गलत हूं मैं।
सहा था अपमान मैंने,
क्योंकि करती तुम्हारा सम्मान थी।
उसे प्यार ही समझ लेना मेरा,
वरना ऐसे ही नहीं मैं तुमसे हारती।
बस हुई अब नौटंकी पूरी,
बस हुआ अब रोना रुलाना।
खुद की शर्तों पर जीना है अब,
अब नहीं और खुद को छुपाना।
-पूनम आत्रेया।
3 Comments
When I heard it’s so soothing voice with a voice to struggle. Very well written and I think it’s a voice of every woman who is excluded from raising her voice!!!!
Touched.
Loved the poem . .nd ur voice too