जब भी किसानों की आय की बात होती है, सबसे पहले स्वामीनाथन आयोग का ज़िक्र होता है। उन्होंने कृषि सुधारों के लिये 201 बिंदुओं की अपनी रिपोर्ट यूपीए सरकार को सौंपी थी। इस रिपोर्ट में उन्होंने न्यूनतम समर्थन मूल्य(एमएसपी) के लिये जिस फॉर्मूले का ज़िक्र किया, उसके अनुसार लागत का कम से कम डेढ़ गुना समर्थन मूल्य होना चाहिये।
खरीफ विपणन वर्ष 2020-21 के लिये छत्तीसगढ़ सरकार ने लगभग 92 लाख मीट्रिक टन धान का उपार्जन किया है, यह छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण के बाद सर्वाधिक है। द वॉइसेज़ ने जनसंपर्क विभाग, छत्तीसगढ़ की वेबसाइट से धान खरीदी के संदर्भ में प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण किया। यह पता लगाने की कोशिश की धान के मूल्य में वृद्धि से किसानों के रूख में क्या परिवर्तन आया।
हालांकि, उपरोक्त चार्ट में 2017-18 के आंकड़े ऋणात्मक है, इसका मुख्य कारण था- अल्प वर्षा। छत्तीसगढ़ के कई जिले सूखे की चपेट में आ गये थे, इससे धान के उत्पादन में कमी आई।
खरीफ विपणन वर्ष 2017-18 के बाद उत्पादन में बेतहाशा तेज़ी
खरीफ विपणन वर्ष 2017-18 के बाद से किसानों का रुख बदलना शुरू हुआ। किसान धान की तरफ तेज़ी से लौटने लगे, उनकी उत्पादकता बढ़ने लगी। खरीफ़ विपणन वर्ष 2015-16 में 11.05 लाख किसानों ने एमएसपी पर धान बेचा, जिसका रकबा 16.02 हज़ार हेक्टेयर था। यह आंकड़ा 2020-21 में बढ़कर 20.53 लाख किसान और 24.86 हेक्टेयर हो गया। पाँच वर्षों में एमएसपी पर धान बेचने वाले किसानों की संख्या में 85.74% और धान के रकबे में लगभग 55.18% वृद्धि हुई।
एमएसपी में वृद्धि से बढ़ा किसानों का रूझान
इस तस्वीर में वर्षवार एमएसपी के आंकड़े हैं, जो कि बढ़ते क्रम में है। खरीफ़ विपणन वर्ष 2017-18 में, केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को बोनस भुगतान की अनुमति प्रदान की। एमएसपी मिलाकर किसानों को प्रति क्विंटल धान के लगभग 2100 रूपये मिले। अगले वर्ष छत्तीसगढ़ सरकार ने धान की कीमत प्रति क्विंटल 2500 रूपए की दर से अदा की। इसमें केंद्र सरकार द्वारा तय एमएसपी के अतिरिक्त राशि राज्य सरकार ने अपने मद से दी ।
छत्तीसगढ़ के सीमांत किसान नीलम दीक्षित से जब द वॉइसेज़ ने बात की तो ज्ञात हुआ कि धान की कीमत बेहतर मिल रही है, इसलिये किसान उत्साहित हैं। इतना ही नहीं, मौसम का भी साथ मिला, जिस कारण उन्होंने धान पर ज्यादा ध्यान दिया।
इस तस्वीर में दर्शाए गए न्यूनतम समर्थन मूल्य वो हैं, जो केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित किये गए। उसी के अनुसार इसमें 20.51 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाई गई है। वास्तव में यह वृद्धि लगभग 64.51 प्रतिशत है। एमएसपी पर फसलों के उपार्जन का मतलब है- फसल की पर्याप्त मांग के साथ-साथ लागत से अधिक कीमत सुनिश्चित होना। जबकि खुले बाज़ार में इसकी कीमत 1100-1200 रूपये प्रति क्विंटल है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य से किसानों की आय
उपरोक्त आँकड़े सिर्फ एक ही पहलू दिखाते हैं। इससे यह पुष्टि नहीं होती कि सीमांत किसान कितना कमा रहे हैं, जिनकी संख्या छत्तीसगढ़ में सबसे ज़्यादा है।
द वॉइसेज़ के साथ बातचीत में नीलम दीक्षित ने बताया कि उनके पास तीन एकड़ खेत है। इस वर्ष उसमें धान की पैदावार 38 क्विटंल हुई यानि लगभग 13 क्विंटल प्रति एकड़। उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य व राजीव गांधी किसान न्याय योजना के तहत दी जाने वाली राशि मिलाकर लगभग 95 हज़ार रुपये मिले। उनका कहना है कि कई किसान 17 क्विंटल प्रति एकड़ तक भी धान की उपजा लेते हैं। हालांकि सरकार प्रति एकड़ 15 क्विंटल की दर से धान उपार्जित करती है।
एक अन्य किसान अमित वर्मा से बात हुई तो उन्होंने बताया कि उनके यहाँ लगभग 17 क्विंटल प्रति एकड़ की दर से धान की पैदावार हुई है। इसमें से प्रति एकड़ 15 क्विंटल धान छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा खरीदा गया। सरकार से उन्हें जो राशि प्राप्त हुई वो लगभग 2500 रूपये प्रति क्विंटल के बराबर है। दोनों किसानों का कहना है कि वे खरीफ सीज़न में धान उगाते हैं। साल में एक ही बार धान की फसल लेने के कारण इनकी कृषि आय लगभग 8000 और 10000 प्रति माह रहती है। यह स्थिति कमोबेश छत्तीसगढ़ के हर सीमांत किसान की है।
किसानों की आय बढ़ाने का उपाय
आंकड़ों के अध्ययन से साफ़ है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि तथा विक्रय की गारंटी ने किसानों को धान के उत्पादन के लिये प्रोत्साहित किया। खुले बाज़ार में उन्हें वो कीमत नहीं मिलती, जो सरकार से एमएसपी के रूप में मिल रही है।
किसान बाज़ार की मांग के अनुरूप अन्य फसलें उगाते हैं, तो अक्सर ये होता है कि बाज़ार तक पहुँचते-पहुँचते आपूर्ति मांग से अधिक हो जाती है। ऐसे में फसल की उचित कीमत नहीं मिलती और बिक्री भी कम होती है।
अभी दो-तीन महीने पहले खुदरा बाज़ार में टमाटर की कीमत 40 रुपये प्रति किलो थी। अब इसका उत्पादन बढ़ा, तो कीमत गिरकर 10 रूपये प्रति किलो से भी कम हो गई, किसानों की लागत तक वसूल नहीं हुई। ऐसी परिस्थितियों में किसान खेती से विमुख होने लगता है या उन फसलों की तरफ भागता है, जिसमें समर्थन मूल्य की गारंटी होती है।
अमित वर्मा कहते हैं कि किसानों की आय बढ़ाने के लिये एमएसपी के साथ क्रॉप डाइवर्सिफिकेशन को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिये। उनका मत है कि एमएसपी की सुरक्षा के साथ-साथ ऐसी व्यवस्था की ज़रूरत है, जहाँ मांग-आपूर्ति में संतुलन बना रहे। मांग अच्छी होती है तो खुले बाज़ार में फसलों की कीमत भी अच्छी मिलती है। वो इसके लिये खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को एक बेहतरीन विकल्प मानते हैं। इससे खपत बढ़ेगी, किसान एक फसल पर ही निर्भर नहीं रहेंगे, और फसल विविधता (क्रॉप डाइवर्सिफिकेशन) को बढ़ावा मिलेगा।
संपादक – एन के झा
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Shijju sir thanks for coming up with this piece…really a needed intervention in the times and the way you have explored the govt data is quite revealing…The crop diversification shall be really looked upon…