“विजयी विश्व तिरंगा प्यारा
झंडा ऊंचा रहे हमारा”
श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद’ द्वारा रचित इस लोकप्रिय गीत का सौंदर्यशास्त्र तिरंगे पर आधारित है। परंतु इस तिरंगे के अंतिम स्वरूप के उद्भव की कहानी भी अत्यंत रोचक है। और आज, भारत के ध्वज पुरुष (फ्लैग मैन) पिंगाली वैंकैया की 58वीं पुण्यतिथि के अवसर पर दी वॉइसेस भारत के राष्ट्रीय ध्वज के विकास की कहानी साझा कर रहा है।
सन 1857 की क्रांति के बाद, भारत पर अपने औपनिवेशिक शासन की प्रतीकात्मक पुष्टि करने हेतु, अंग्रेजों ने एक ध्वज का निर्माण किया। पश्चिमी प्रारूप पर आधारित इस ध्वज के बाएं कोने पर जहां ब्रिटिश हुकूमत का चिन्ह ‘यूनियन जैक’ था वहीं दाएं हिस्से में ‘स्टार ऑफ इंडिया’ स्थित था।
‘निवेदिता फ्लैग’
भारत की ओर से प्रथम राष्ट्रीय ध्वज निर्माण करने का श्रेय स्वामी विवेकानंद की आयरिश अनुयायी सिस्टर निवेदिता को जाता है। 1904 में उनके द्वारा बनाए गए ध्वज को ‘निवेदिता फ्लैग’ भी कहा जाता है। मूलतः लाल रंग के ध्वज में पीले रंग का बॉर्डर था। इसके बीचो बीच भगवान इंद्र के अस्त्र -‘वज्र’ और ‘कमल’ एक संयुक्त चिन्ह स्थित था। इस ध्वज में लाल रंग संघर्ष का प्रतीक था, पीला रंग विजय का, वज्र शौर्य और पराक्रम का, और कमल शुचिता का। इसके बीचो-बीच बांग्ला में वंदे मातरम लिखा हुआ था।
‘कलकत्ता फ्लैग’
भारत के राष्ट्रीय ध्वज का एक अन्य संस्करण 7 अगस्त, 1906 को कोलकाता के ग्रीन पार्क में फहराया गया। राष्ट्रीय ध्वज के इस प्रारूप में लाल, पीले और हरे रंगों की तीन पट्टियां थीं। माना जाता है कि इस ध्वज का डिजाइन स्वतंत्रता सेनानी सचिंद्र प्रसाद बोस और हेमचंद्र कानूनगो ने किया था। ‘लोटस फ्लैग’ या ‘कोलकाता फ्लैग’ के नाम से प्रसिद्ध है इस ध्वज में बीचोबीच स्थित पीली पट्टी पर वंदे मातरम लिखा हुआ था। इसके अतिरिक्त इस ध्वज में, एक सूर्य, एक अर्धचंद्र, कमल के 8 पुष्पों का प्रयोग किया गया था।
इसी ध्वज का एक संशोधित संस्करण 1907 में सामने आया। मैडम भीकाजी कामा और उनके सहयोगी क्रांतिकारियों के संयुक्त प्रयास से तैयार किया गया यह ध्वज 22 अगस्त 1907 को जर्मनी के स्टुटगार्ड में फहराया गया। किसी विदेशी धरती पर फहराया गया यह भारत का पहला ध्वज था। इस ध्वज के एक अन्य संशोधित संस्करण में एक कमल और 7 तारकों (stars) का प्रयोग किया गया था। यह सात ‘तारे’ सप्तऋषि का प्रतीक थे।
होम रूल लीग का ध्वज
1916 में मद्रास हाई कोर्ट के आर्थिक सहयोग से पिंगाली वेंकैया ने एक बुकलेट तैयार की जिसमें राष्ट्रीय ध्वज के 30 नमूने शामिल थे। इसके पश्चात 1917 में होम रूल मूवमेंट के दौरान बाल गंगाधर तिलक और अनी बेसेंट ने एक नए राष्ट्रीय ध्वज का अनावरण किया। इसमें चार हरी और पांच लाल पट्टियां थीं। इस के दाएं हिस्से में अर्धचंद्र और एक तारा स्थित था तो वही बाएं हिस्से में ऊपर की तरफ अंग्रेजी यूनियन जैक मौजूद था। इसके अतिरिक्त सप्तऋषि के प्रतीक के रूप में 7 तारकों का भी प्रयोग किया गया था। यह वह पहला ध्वज था, जिस के प्रयोग पर अंग्रेजी हुकूमत द्वारा प्रतिबंध लगाया गया। प्रतिबंध लगने के बाद देशभर में व्यापक स्तर पर राष्ट्रीय ध्वज के महत्व की चर्चाएं होने लगीं। 1920 में लीग ऑफ नेशंस में भारतीय प्रतिनिधि मंडल द्वारा एक ध्वज के प्रयोग पर भी ज़ोर दिया गया।
गाँधी ध्वज से स्वराज ध्वज तक
सन 1921 में गांधीजी ने अपनी पत्रिका ‘यंग इंडिया’ के एक लेख में राष्ट्रीय ध्वज के विचार पर देते हुए ऐसे ध्वज का सुझाव प्रस्तुत किया जिसके बीच में चरखा हो। ध्वज में चरखे का विचार पहली बार लाला हंसराज द्वारा रखा गया था। इस सुझाव पर कार्य करने हेतु गांधी ने पिंगाली वेंकैया से आग्रह किया।
‘गाँधी ध्वज’ की इस संकल्पना में मूल रूप से दो ही रंग थे – लाल और हरा। धार्मिक संवेदनशीलता का संज्ञान लेते हुए इसमें अन्य सभी धर्मों को समाहित करने हेतु लाल और हरे के अतिरिक्त एक सफेद पट्टी का सुझाव रखा गया। बाद में राष्ट्रीय ध्वज की संकल्पना को धार्मिक बहस से मुक्त करने हेतु गांधी ने रंगों की प्रतीकात्मकता को सत्य, शांति, शौर्य, पराक्रम जैसे व्यापक मूल्यों से जोड़ दिया।
13 अप्रैल सन 1923 को कांग्रेस की नागपुर कमेटी के कार्यकर्ताओं ने जलियांवाला बाग घटना से संबंधित एक कार्यक्रम में इस ध्वज का प्रयोग किया। इस प्रयोग पर पुलिसिया कार्रवाई में 5 कांग्रेस सदस्यों को हिरासत में लिया गया। कार्रवाई के विरोध में जमुना लाल बजाज ने मई में ध्वज सत्याग्रह का आगाज किया। जुलाई 1923 में कांग्रेस की एक बैठक में सरोजिनी नायडू और नेहरू के आग्रह पर ध्वज सत्याग्रह को व्यापक समर्थन देने की मांग हुई। समर्थन दिया भी गया और आंदोलन के अंत तक लगभग 1500 से अधिक स्वतंत्रता सेनानियों को जेल का रुख़ भी करना पड़ा।
अंततः सन 1931 में कांग्रेस ने कराची अधिवेशन में स्वराज ध्वज को अपनाया। पिंगाली वेंकैया द्वारा निर्मित इस ध्वज में ऊपरी पट्टी के रंग को लाल की जगह केसरिया रखा गया जो कि शौर्य और साहस का प्रतीक था। सबसे निचली पट्टी हरे रंग की थी और बीच में सफेद रंग की पट्टी पर चरखे का चिन्ह बना हुआ था।
स्वराज ध्वज से तिरंगे तक
कालांतर में राष्ट्रीय ध्वज के इसी संस्करण में, चरखे की जगह 24 तीलियों वाले अशोक चक्र (धर्म चक्र) ने ली। इसी परिवर्तन के साथ, राष्ट्रीय ध्वज के इस स्वरूप को 22 जुलाई सन 1947 को संविधान सभा की एक बैठक में भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया।
इस नवीनतम राष्ट्रीय ध्वज में केसरिया रंग जहां अपनी प्रतीकात्मकता में शौर्य और साहस को समेटे हुए है,वहीं हरा रंग समृद्धि एवं प्रगति को और सफेद रंग शांति और सत्य को। अशोक चक्र एक धर्म चक्र के प्रतीक के रूप में स्थापित हुआ।
हालांकि इस बात को लेकर बहस बनी हुई है कि राष्ट्रीय ध्वज पर चरखे के स्थान पर धर्म चक्र का सुझाव किसने दिया। इस विचार के जनक के रूप में बदरुद्दीन और सुरैया तैयब जी का नाम सामने आता रहा है परंतु इस पर अभी एक आम राय नहीं बन पाई है।
पिंगाली वेंकैया की विरासत
2 अगस्त 1876 को आंध्र प्रदेश के मौसोलीपटनम में जन्मे पिंगाली वेंकैया की लेखन, कृषि, भूगर्भ विज्ञान में विशेष रुचि रही। दक्षिण अफ्रीका में अंग्रेजी सेना की तरफ से एंग्लो बोयर युद्ध में तैनाती के दौरान 19 वर्षीय पिंगाली वेंकैया की भेंट गांधी से हुई। गांधी के व्यक्तित्व और विचारधारा से प्रभावित होकर गांधी के पीछे पीछे वह भी भारत लौट आये और अपने अंतिम क्षणों तक स्वयं को भारतीय भूमि की सेवा में समर्पित किया। सन 2009 में पिंगाली वेंकैया पर एक डाक टिकट भी जारी हुआ और 2014 में उन्हें भारत रत्न देने की अनुशंसा भी की गई। यह प्रस्ताव अभी तक भारत सरकार के पास लंबित है। परंतु राष्ट्रीय ध्वज के चित्रकार पिंगाली वेंकैया अपने योगदान के कारण भारतीयता की संकल्पना का एक अभिन्न अंग बन गए हैं।
पिंगाली वेंकैया की पुण्यतिथि के अवसर पर भारत के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। उन्हें याद करते हुए उन्होंने ट्विटर पर लिखा “वो एक बहुआयामी प्रतिभा थे – वो शिक्षाविद, भूगर्भविद, कृषिविद और बहुभाषाविद थे; और यह देश राष्ट्रीय ध्वज का निर्माण करने के लिए उनका कृतज्ञ रहेगा।”
संपादक: शिज्जु शकूर