फट रही है ज्वालामुखी ह्रदय में मेरे
आंखों से बह रही है गरल धार।
बिखरे लट लग रहे हैं अद्भुत अस्त्र समान,
चेहरे पर है दहकता रिस भाव।
भग्न मूर्ति बनी मैं, काली समान।
रक्तबीज, तेरे विनाश की काया।
पाषाण सा ह्रदय मेरा
असुरों के रक्तपान को व्याकुल
सुलग रही है दहकती आग मुझमें
उनके अंत को व्याकुल ।
अब मैं सीता नहीं, जो तू मुझे हर ले।
मैं बनी हूं झांसी की रानी।
चमकती तलवार लिए फौलाद से हाथों में,
तेरी प्रतीक्षा कर रही हूं।
धड़ से सर अलग कर तेरा,
करूंगी मैं रक्तपान।
सावधान, ए दानव।
अब अबला नहीं, स्वयं काली रूप
धर चुकी हूं मैं।
शांति के अंजलि देनी है ह्रदय को
तुझे मारकर, ए दानव
तेरे विनाश की सौगात लिए
बढ़ रही हूं मैं तेरी तरफ।
सावधान, ए दानव।-
-पूनम आत्रेय
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Amazing poetry Poonam ji