द्वारा : पियूष गौतम
ना करना तुम शोक ना आँसू ना क्रोध। है जीवन ये कर्मों का जीवन के ऋण भुगतने का। आएगा अंत अनंत का प्रारम्भ होगा आरम्भ का। होगा फिर से कर्मकांड जाग उठेगा संपूर्ण ब्रम्हांड। फिर से राह पकड़ना होगा सत्य का आभूषण जड़ना होगा। जिवंत रहे उम्मीद की ज्योति ना भी मिले फलों की मोती। विश्वास का दीप प्रज्वलित रहे चाहे चिता हमारी हो , चलो सत्य को मित्र बनायें अब काहे को देरी हो।