आदिवासियों की एक विशिष्टता होती है कि वे प्रकृति के उपासक होते हैं। ओडिशा में रहने वाले 62 आदिवासी समुदायों में से डोंगरिया भी प्रकृति और देवी पूजन में विश्वास रखते हैं। डोंगरिया समुदाय के आदिवासी अपनी पारम्परिक ग्राम देवी और नियमगिरि के देवता नियम राजा को पूजते हैं। आदिवासी लोक-कथा के अनुसार ‘नियम राजा’ नियमगिरि और इन आदिवासियों के रक्षक हैं।
ओडिशा राज्य के दक्षिण में स्थित रायगड़ा जिले में नियमगिरि पूर्व घाट पहाड़ी क्षेत्र स्थित एक पर्वत श्रृंखला है। नियमगिरि पर्वत बॉक्साइट की प्रचुर उपस्थिति के लिए जाना जाता है। एक बात और इस क्षेत्र को खास बनाती है, वो है यहाँ का अनोखा आदिवासी समुदाय- डोंगरिया कंध आदिवासी समुदाय।
इनका रहन-सहन, पहनावा व भाषा सब पूरी तरह से अलग हैं। ओड़िया और कुई भाषा बोलने वाला ये समुदाय आज अपनी सदियों पुरानी परंपरा और संस्कृति लगभग भूलने लगा है। बिषम कटक गांव के निवासियों ने इस संबंध में द वॉइसेस से खुलकर चर्चा की।
बिषम कटक जगन्नाथ मंदिर का इतिहास
रायगड़ा जिले का नियमगिरि पर्वत ही इन डोंगरिया आदिवासियों का घर, इनकी दुनिया है। रायगड़ा जिले का सबसे पुराना गांव और जगन्नाथ मंदिर बिषम कटक में स्थित है। इस गांव में रथयात्रा के समय डोंगरिया आदिवासी समुदाय के सारे जवान लड़के-लड़कियाँ एकत्र होते हैं। यहाँ का जगन्नाथ मंदिर लगभग 500 साल पुराना माना जाता है।
मंदिर के मुख्य पुजारी रघुनाथ रथ ने द वॉइसेज़ को बताया कि बिषम कटक के जगन्नाथ मंदिर का इतिहास 500 साल से भी ज्यादा पुराना है। बिषम कटक के आखिरी राजा गोविंद चंद्र महोदेव तत्कालीन रायगड़ा के थाट राजा को यह गढ़ (बिषम कटक गांव) सहित सारी संपत्ति का दायित्व सौंपकर चले गए थे। इसमें जगन्नाथ मंदिर का दायित्व भी आता है। सन 1936 में स्वतंत्र ओडिशा प्रांत का निर्माण हुआ। सन् 1939 में महाराजा गोविन्द चंद्र देव की याद में जीसीडी हाईस्कूल की स्थापना की गई। यह जिले का सबसे पुराना स्कूल है।
आज़ादी के बाद यह मंदिर ओडिशा सरकार के देवोत्तर विभाग के अंतर्गत आ गया है। बाद में यहाँ एक नया मंदिर भी बनाया गया है। जगन्नाथ संस्कृति यहाँ के आदिवासियों की परम्परा के साथ घुल-मिल गई है। यहाँ प्रचलित बहुत सी लुप्तप्राय लोक-प्रथाएँ अतीत की तरह वर्तमान में भी अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रही हैं।
डोंगरिया समुदाय के लिये जगन्नाथ रथयात्रा का महत्व
विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ रथयात्रा इन आदिवासियों के लिए भी खास महत्व रखता है। 10 दिन की यह रथयात्रा बहुत से डोंगरिया युवा लड़के-लड़कियों के लिए संगम का समय होता है।
इन आदिवासियों के रीति-रिवाज आम प्रचलित रिवाजों से अलग और विशिष्ट होते हैं। डोंगरिया आदिवासी समुदाय में लड़का शादी के बाद लड़की के घर जाता है। इसमें दूल्हे को दुल्हन के साथ-साथ उसके घरवालों को खुश करना पड़ता है।
वैसे तो रथयात्रा ओडिशा के हर जिले हर गाँव मे बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। हालांकि ओड़िशा के अलग-अलग जगहों की स्थानीय परम्परा जगन्नाथ परम्परा के साथ जुड़ी हुई है। इस दौरान डोंगरिया आदिवासी युवा 10 दिन तक होने वाले इस रथयात्रा के समय अपनी जीवन संगिनी चुनते हैं।
डोंगरिया समुदाय की विशिष्ट वैवाहिक परंपरा
डोंगरिया आदिवासी लड़के को ‘धांगरा’ और लड़की को ‘धांगरी’ कहा जाता है। जिस धांगरा को जो धांगरी पसंद आती है वह उस पर एक नया कपड़ा डालता है। इसके ज़रिये धांगरा यह जताने की कोशिश करता है कि वो इसे पसंद करता है। इस तरह वो बाकी लड़कों, जो उसी लड़की को पसंद करते हैं, के लिए एक चुनौती भरा इशारा करता है।
अगर कोई और लड़का उसी लड़की को चाहता है तो वहाँ दोनों लड़कों के बीच लड़ाई होती है। जीतने वाला लड़की को खींचते हुए वहाँ से ले जाता है।
“जीतने वाले लड़के को लड़की और उसके घरवालों को राजी करना पड़ता है। जिसमें लड़के को आदिवासी परंपरा के अनुसार शराब, फल, पैसे आदि देना पड़ता है। फिर लड़का लड़की के घर कुछ साल रहता है। उनके लिए काम करता है फिर उसके बाद चाहें तो लड़का-लड़की अलग अपना घर बसा सकते हैं।”
– नंद वाडका (डोंगरिया आदिवासी युवा, नियमगिरि)
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नाच गाना करते हुए अदिबासी पुरूष ओर महिलाओं। -
आदिबासी समुदाय के कुछ लोग
इसी तरह 60 घर वाले आदिवासी गांव गोरथिली की मालती वाडका ने भी अपने समुदाय की परंपरा के बारे में बताया।
“शादी हो जाने के बाद नाच-गाने और अन्य आदिवासी पारम्परिक रीति-रिवाज के तहत आदिवासी समाज उनको पति पत्नी का दर्जा देता है। फिर भी लड़की के पास ये अधिकार रहता है कि लड़के के अपने घर में रहने के दौरान वो अपना रिश्ता ख़त्म कर सकती है।”
–मालती वाडका(गोरथिली गांव)
आधुनिकता की ज़द में लुप्त होती डोंगरिया परंपरा
डोंगरिया समुदाय के आदिवासियों का मानना है कि नगरीकरण और आदिवासी संस्कृति को संरक्षण न मिल पाने से ये अनुष्ठान व आचार-व्यवहार अब देखने को नहीं मिलते। हालांकि सरकार आदिवासियों के उन्नयन के लिए काफी पैसा खर्च कर रही है। फिर भी जागरूकता की कमी और आधुनिक जीवन की चाहत के आगे सभ्यता और संस्कृति हारी हुई प्रतीत होती हैं।
संपादक – शिज्जु शकूर
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Informative and beautifully structured.
Many congratulations to the writer.