दिल्ली: भारतीय सभ्यता के सांस्कृतिक, आर्थिक, एवं सामाजिक विकास में, नदियों का अप्रतिम महत्व रहा है। ये कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि नदियों ने एक विशेष भौगोलिक परिवेश को ही नहीं, बल्कि संस्कृतियों को अपनी समृद्धता से सींचा है। भारत में नदियों को देवी मानकर पूजा जाता रहा है। लेकिन मौजूदा दौर में भारत की कई बड़ी नदियों का जल, पीने तो दूर स्नान करने योग्य भी नहीं रह गया है। बीते वर्षों में दिल्ली की यमुना नदी के जल के गुणवत्ता मानकों में भीषण गिरावट दर्ज की गयी।
गंगा की सबसे बड़ी सहायक नदी, यमुना, की दिल्ली में पल्ला से बदरपुर के बीच की लम्बाई 44 कि.मी. है, जिसमें से 22 कि.मी. दिल्ली में है और बाकी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में। गौरतलब है कि दिल्ली में यमुना नदी की पूरी लम्बाई का महज़ 2% हिस्सा ही मौजूद है, परन्तु दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति के अनुसार सम्पूर्ण यमुना नदी के कुल प्रदूषण में इस क्षेत्र का 76% योगदान है।
भारत की राजधानी दिल्ली की जीवन रेखा माने जाने वाली यमुना का पानी अब बहुत विषैला हो गया है। दिल्ली और पड़ोसी राज्यों से भारी मात्रा में प्रवाहित होने वाले अनुपचारित अपशिष्ट इसके प्रमुख दोषी हैं। महज़ दिल्ली में ही, यमुना में 20 से अधिक छोटी-बड़ी नालियों का अपशिष्ट प्रवाहित किया जाता है। गत माह राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) के आदेश पर विशेष कार्यबल द्वारा छायसां क्षेत्र में यमुना के आसपास के गांवों के औचक निरिक्षण में भी अपशिष्ट प्रवाह की पुष्टि हुई।
दिल्ली के वजीराबाद क्षेत्र में यमुना नदी जरूर थोड़ी सी जीवित नजर आती है, जिस कारण यहां कुछ जलीय जीवों जैसे मछलियों और मगरमच्छों के साथ साथ जलीय पौधे भी देखने को मिलते हैं। दिल्ली के सोनिया विहार इलाके में रहने वाले अमित कुमार के अनुसार-
“वजीराबाद पुल के पास वाले हिस्से में जो यमुना का क्षेत्र हैं वहां का पानी बहुत अधिक मात्रा में स्वच्छ है। मैं अक्सर यहां सुबह-शाम घूमने चला आता हूँ। कई बार मैंने इस पानी में लोगों को नहाते हुए भी देखा है।”
इसके विपरीत वज़ीराबाद क्षेत्र के बाद यमुना के जल की गुणवत्ता में भारी गिरावट दर्ज की गयी है।
प्रसिद्ध पर्यावरणविद और यमुना रिवरफ्रंट निर्माण में दिल्ली सरकार के सहयोगी, सीआर बाबू, एनडीटीवी को दिए अपने साक्षात्कार में बताते हैं “वज़ीराबाद से नीचे की ओर नदी पारिस्थितिक रूप से मृत हैं क्योंकि इसमें कोई जलीय जीवन नहीं है। विघटित ऑक्सीजन का निम्न स्तर और प्रदूषण का उच्च स्तर वे कारण है जिन्होंने नदी को मार दिया है।”
वज़ीराबाद क्षेत्र के उपरांत यमुना में प्रदूषण के स्तर पर राजनीतिक रस्सा-कशी भी बहुत होती है, जिसमें कई दफ़ा सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी को हस्तक्षेप करना पड़ा है। अप्रैल 2021 में दिल्ली जल बोर्ड में एक याचिका दायर करते हुए हरियाणा सरकार पर यमुना में कम पानी और अनुपचारित अपशिष्ट छोड़ने का आरोप लगाया। याचिका में यमुना में वज़ीराबाद के बाद अमोनिया के बढ़ते स्तर के लिए उपर्युक्त दो कारणों को ज़िम्मेदार ठहराया गया। गौरतलब है कि अमोनिया के बढ़ते स्तर के कारण वज़ीराबाद, ओखला और चंद्रावल स्थित वाटर ट्रीटमेंट प्लांट की कार्यक्षमता प्रभावित होती है। इसका सीधा प्रभाव दिल्लीवासियों के लिए जल उपलब्धता पर भी पड़ता है। उदाहरण के तौर पर, जहाँ वज़ीराबाद ट्रीटमेंट प्लांट में 0.8 पीपीएम अमोनिया की मौजूदगी को ही ट्रीट करने की क्षमता है, वहीं यमुना(वज़ीराबाद क्षेत्र) में अमोनिया का स्तर 4.4 दर्ज किया गया।
याचिका के जवाब में हरियाणा सरकार का कहना है कि घटते जलस्तर का कारण यमुना के तल में दिल्ली सरकार द्वारा स्थापित रैनी कलेक्टर और शैलो ट्यूबवेल है जो सीधे-सीधे वज़ीराबाद पौंड के जलस्तर को प्रभावित करते हैं। इस तालाब में पर्याप्त जलस्तर की मदद से ही ट्रीटमेंट प्लांट अपनी क्षमता पर काम कर पाते हैं।
हरियाणा सरकार ने अपने हलफनामे में दिल्ली के वार्षिक आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट का भी ज़िक्र किया जिसके अनुसार दिल्ली में यमुना का 40% पानी अकारण ही बर्बाद हो जाता है।
यमुना नदी के दूषित होने के पीछे दिल्ली के अलग-अगल हिस्सों से निकलने वाली कुछ 21 नालियाँ भी हैं, जिनसे हर रोज तकरीबन 850 MGD (मिलियन गैलन प्रतिदिन) मल सीधे तौर यमुना में प्रवाहित होता है।
एक रिपोर्ट के अनुसार इन नालों में से 67 फीसदी प्रदूषण अकेले नजफगढ़ ड्रेन के कारण होता है। पिछले साल नवंबर के महीने में छठ पूजा के समय यमुना नदी का सफ़ेद झाग से ढक जाना इसकी विभीषिका का एक चित्र मात्र है। इसकी तस्दीक, बीते दिनों, विश्व पर्यावरण दिवस पर, कालिंदी कुञ्ज इलाके में यमुना नदी में तैरते ज़हरीले झाग की परतों से भी हुई।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की माने तो धोबी घाट, घरों, रंगाई उद्योग और अन्य औद्योगिक संयंत्रों के अनुपचारित अपशिष्ट जल में मौजूद अत्यधिक फॉस्फेट के कारण इसका निर्माण होता है।इस फॉस्फेट का मुख्य स्त्रोत, भारत में सहज रूप उपलब्ध वो डिटर्जेंट हैं, जिनमें से अधिकतर अंतरराष्ट्रीय मानकीकरण संगठन से प्रमाणित नहीं और इस कारण उनमें फॉस्फेट की मात्रा स्वीकृत मानक से कहीं ज्यादा है।
इसी बात का संज्ञान लेते हुए, 14 जून 2021 (सोमवार) को दिल्ली सरकार ने बीआईएस (Bureau of Indian standards – BIS) के मानकों का पालन न करने वाले साबुन और डिटर्जेंट की बिक्री, भण्डारण, परिवहन और प्रचार पर रोक लगाने का फैसला लिया। गौरतलब है कि यह सुझाव यमुना मॉनिटरिंग समिति की सिफारिशों का हिस्सा था, जिसे जनवरी 2021 में एनजीटी ने स्वीकृत किया था।
प्रयास है, तो प्रवाह है
समय-समय पर दिल्ली क्षेत्र में यमुना के पानी की गुणवत्ता में सुधार हेतु सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों ने कई प्रयास किये हैं। विशेषज्ञों ने नदी में घटते जलस्तर के कारण होने वाले विविध जैव-रासायनिक परिवर्तनों को भी प्रदूषण का विशेष कारण माना है। इसको देखते हुए हाल ही में यमुना में जलधारा की निरंतरता को बरक़रार रखने के लिए दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने यमुना के किनारों पर खैर, अर्जुन, कैथ आदि बाढ़ क्षेत्र के विशेष वृक्षों को लगाने का निर्णय लिया। यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क क्षेत्र में वृक्षारोपण के सकारात्मक परिणामों को देखते हुए, डीडीए ने इस परियोजना के विस्तार का निर्णय लिया। बाढ़ क्षेत्र के पौधों को नदी घाटी के पौधे भी कहा जाता है। इनका प्रयोग जलधारा को प्रभावित भी नहीं करता और भूजल में भी बढ़ोतरी सुनिश्चित करता है।
साल 2016 में भी केंद्रीय जल संसाधन और नदी विकास मंत्री उमा भारती ने यमुना नदी को साफ करने के लिए एक परियोजना की शुरुआत की। जैसा कि उन्होंने कहा था- “दिल्ली के कुल 18 नाले, जिनका पानी यमुना में बहता है, नदी में 80 प्रतिशत प्रदूषण पैदा करते हैं”; इसी परियोजना के तहत इस पक्ष पर विशेष काम होना था। इस परियोजना के तहत दिसंबर 2017 तक दिल्ली में यमुना के 20 किलोमीटर के हिस्से को साफ करने का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन साल 2020 के नवम्बर माह में जो रूप यमुना का देखने को मिला, उससे यह साफ़ हुआ योजना के क्रियान्वयन को और व्यापक प्रसार देने की आवश्यकता है।
जनवरी 2021 में यमुना निगरानी समिति (वाईएमसी) को एनजीटी ने भंग कर दिया। पिछले सप्ताह वाईएमसी को पुनर्बहाल करने की याचिका को ख़ारिज करते हुए एनजीटी ने कहा कि 2018 में गठित वाईएमसी ने दो वर्षों से भी अधिक समाय तक बेहतरीन सुझाव दिए। भविष्य में यमुना की निगरानी का भार दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिवों पर होगा।
हाल ही में एनजीटी ने उत्तर प्रदेश सरकार को भी यमुना में अनुपचारित अपशिष्ट के बहाव को नियंत्रित करने का आदेश दिया। पिछले सप्ताह, 9 जून 2021 को दिल्ली विकास प्राधिकरण द्वारा जारी किये गए दिल्ली मास्टर प्लान 2041 में भी स्वच्छ यमुना का लक्ष्य रखा गया है। भविष्य में यमुना के पानी की रंगत इन परियोजनाओं की सफलता या विफलता का प्रमाण होगी।
संपादक: एन के झा