ज़िन्दगी भी अजीब है
मगर फिर भी लगती है खूबसूरत
अपनी अपनी नाव में सवार हैं सब
कभी आगे तो कभी पीछे
कभी धीमे तो कभी तेज़
दिल कहीं, हम कहीं
फिर भी चले जा रहे हैं बेपरवाह
सफ़र में मुश्किलें तो बहुत सी हैं
फ़र्क बस इतना सा है
किसी को सहारे की ज़रुरत
और किसी को वो भी नहीं
मगर फिर भी जुड़े हम सब हैं
खुद से ज़्यादा एक दूसरे से;
मसला ये नहीं है
कि हम अकेले हैं इस राह में
या कोई हमसफ़र साथ नहीं चलना चाहता;
मसला तो असल में खुदसे है,
जिस डोर से हम सब बंधे हैं
उस डोर पर ऐतबार नहीं हमें;
नाव में सवार
बस चले जा रहे हैं बेसुध,
उस मंजिल की ओर जिसका अंदाज़ा नहीं;
सफ़र में छूट गए हज़ारों चेहरे
उनके होने न होने का अंदेशा तक नहीं
क्यूंकि पीछे मुड़ के कभी देखा जो नहीं
फिर भी हम सब चले जा रहे हैं बेमंज़िल
इस डर में कि पीछे न रह जाए कहीं;
तैरती नदी से वक़्त की दौड़ में किसी ने न पूछा
ज़िन्दगी से कि वो क्या चाहती है,
क्यों हर नाव कभी आगे तो कभी पीछे
शायद ज़िन्दगी कहना चाहती हो तुमसे
एक झलक वक़्त की नदी पर डालो
क्या पता शायद मैं मिल जाऊं तुम्हें..